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CM धामी ने किया देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का ऐलान, लेकिन पर्यटन मंत्री बेखबर?

पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने देवस्थानम बोर्ड के भंग होने को लेकर कहा - मुझे अब तक इसकी सूचना नहीं

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उत्तराखंड सरकार ने चुनाव (Uttarakhand Elections) से ठीक पहले एक और मांग को आसानी से पूरा कर दिया है. इस बार मामला देवस्थानम बोर्ड (Devasthanam Board) से जुड़ा है, जिसे लेकर पिछले कई महीनों से विवाद चल रहा था. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Dhami) ने देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का ऐलान किया. लेकिन सरकार के जिस मंत्री के अधीन ये आता है, उसे ही इसकी जानकारी नहीं है.

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पर्यटन मंत्री ही फैसले से बेखबर?

पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से जब देवस्थानम बोर्ड को भंग करने को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने इस पर जानकारी होने से साफ इनकार कर दिया. जबकि इसकी रिपोर्ट खुद महाराज ने ही सीएम धामी को सौंपी थी.

दरअसल देवस्थानम बोर्ड को लेकर चल रही तनातनी के बीच पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने सीएम पुष्कर सिंह धामी को इसे लेकर रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट सौंपे जाने के ठीक अगले दिन सीएम ने ऐलान कर दिया कि चारों धामों के साधु-संतों की मांग को देखते हुए देवस्थानम बोर्ड को भंग कर दिया गया है.

इसके बाद पत्रकारों ने जब पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से पूछा कि आपकी रिपोर्ट में क्या बोर्ड को भंग करने की बात लिखी गई थी? इस पर सतपाल महाराज ने असहज होकर जवाब दिया कि रिपोर्ट गोपनीय होती है, ऐसे नहीं बता सकते हैं. जब उनसे कहा गया कि सीएम ने तो इसकी घोषणा भी कर दी है, तो महाराज ने कहा कि, अगर मुझे इसकी सूचना मिल जाएगी तो मैं आपको बता दूंगा. मैं खुद उनके संपर्क में हूं. इस दौरान मंत्री पत्रकारों के सवालों से बचते हुए नजर आए और सॉरी कहते हुए निकल गए.

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देवस्थानम बोर्ड पर मंत्री और सीएम की अलग राय?

उत्तराखंड सरकार में पिछले दिनों काफी उथल-पुथल देखने को मिली. बीजेपी के तीसरे मुख्यमंत्री पांचवे साल के अंतिम महीनों में सरकार चला रहे हैं. ऐसे में उनके पास न तो जनता तक पहुंचने का वक्त है और न ही जमीन पर काम करने या फिर करवाने का... इसीलिए पुष्कर सिंह धामी जब से सत्ता में आए हैं, तभी से लोक लुभावन घोषणाएं कर जनता को खुश करने की कोशिश में जुटे हैं. साथ ही जनाधार को देखते हुए कई मांगों का भी निपटारा चुनावी सीजन में किया जा रहा है.

लेकिन देवस्थानम बोर्ड को लेकर मंत्री सतपाल महाराज का जो रुख है, वो बताता है कि वो इस फैसले से कहीं न कहीं नाराज हैं. क्योंकि न तो उन्होंने इसे भंग करने पर कोई खुशी जाहिर की और इसके बारे में पता होने से भी साफ इनकार कर दिया.

बताया जाता है कि सतपाल महाराज उन मंत्रियों में शामिल हैं, जो देवस्थानम बोर्ड के पक्ष में थे. लेकिन अब सीएम ने इसे ही भंग करने का ऐलान कर दिया है. जिसके बाद अब अगर सतपाल महाराज वाकई में नाराज हुए तो चुनाव से ठीक पहले उन्हें मनाना पार्टी के लिए काफी जरूरी होगा.
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बता दें कि सतपाल महाराज कांग्रेस के बागी नेता हैं, जो पिछले चुनाव से ठीक पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे. लेकिन इस चुनाव में उनके और कुछ और बागियों के वापसी को लेकर संकेत मिल रहे थे. ऐसे में बीजेपी या फिर सीएम धामी बिल्कुल नहीं चाहेंगे कि ऐसे किसी मंत्री को नाराज किया जाए.

विपक्ष को मिला मौका

अब इस चुनावी मौके पर विपक्ष को बीजेपी सरकार पर हमले का एक और मौका मिल गया. पहले तो कांग्रेस ने देवस्थानम बोर्ड के फैसले पर सरकार के यू-टर्न का जमकर मजाक उड़ाया और कहा कि अब चुनाव को देखते हुए सरकार रंग बदल रही है.

कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि, इसका मतलब ये है कि सरकार में आज हुई इस बातचीत को लेकर गंभीर मतभेद हैं. हम पहले ही कह रहे थे कि बीजेपी सरकार में और पार्टी में जूतों में दाल बंट रही है. बीजेपी पूरी तरह से एक्सपोज हो चुकी है और इसमें सतपाल महाराज का बयान महत्वपूर्ण है.
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भूल सुधार के तौर पर पलटा गया अपनी ही सरकार का फैसला?

कुल मिलाकर देवस्थानम बोर्ड पर सरकार पहले ही फंसी हुई थी, क्योंकि इसी सरकार में 4 साल तक मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ये फैसला लिया था, इसके बाद तीरथ सिंह रावत की जल्दी विदाई हो गई तो उन्हें इस पर सोचने का ज्यादा मौका नहीं मिला. लेकिन अब पुष्कर सिंह धामी ने मौके की नजाकत को समझते हुए इसे भंग करने का ऐलान कर दिया. यानी पांच साल में एक ही सरकार के तीसरे मुख्यमंत्री ने अपनी ही सरकार के लिए गए फैसले को जनता के हित में बताते हुए पलट दिया.

अब जैसे मुख्यमंत्री बदलकर बीजेपी ने जनता के सामने भूल सुधार करने की कोशिश की, वैसे ही मुख्यमंत्री ने देवस्थानम बोर्ड को भंग करके इसे अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री की भूल बताते हुए भुनाने की कोशिश की है. लेकिन बागी नेता सतपाल महाराज के तेवर देखते हुए लगता है कि कहीं ये फैसला सीएम धामी के लिए महंगा न पड़ जाए.
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क्या है देवस्थानम बोर्ड?

साल 2017 में बीजेपी उत्तराखंड की सत्ता में आई थी. इसके बाद से देवस्थानम बोर्ड को लेकर काम शुरू हुआ. ये एक ऐसा बोर्ड है जिसके तहते उत्तराखंड में स्थित चारों धामों समेत 51 मंदिरों को शामिल किया गया. बताया गया कि बोर्ड इनका रखरखाव करेगा और तमाम सुविधाओं की जिम्मेदारी इस पर होगी.

कुल मिलाकर एक ही बोर्ड के जरिए सभी बड़े तीर्थों और मंदिरों की मॉनिटरिंग का प्लान था. इसके लिए 2019 में प्रस्ताव पास कर विधानसभा में बोर्ड को मंजूरी दी गई. लेकिन तभी से इसका विरोध शुरू हो गया. तीर्थ पुरोहितों ने कहा कि उनके हक और अधिकारों को छीना जा रहा है और इसके लिए उनके साथ कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया.

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