लोग कोरोना-कोरोना चिल्लाते रहे, केस बढ़ते चले गए और अस्पतालों में बेड्स की संख्या लगातार कम होती गई... इसके बावजूद चुनावी रैलियों का रंग फीका नहीं पड़ा. तमाम नेता, यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रैली में उमड़ती भीड़ को देखकर समर्थकों की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. खुद गृहमंत्री ने कहा कि चुनाव से कोरोना को जोड़ना ठीक नहीं. लेकिन अब मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि सेकंड वेव के लिए चुनाव आयोग जिम्मेदार है. और शायद अफसरों पर मर्डर केस चलाना चाहिए. तो आखिर कोर्ट को इतनी तल्ख टिप्पणी करने की जरूरत क्यों पड़ी?
‘जब रैलियां हो रही थीं, तो क्या दूसरे ग्रह पर थे?’
चुनाव आयोग को मद्रास हाईकोर्ट से जमकर फटकार लगी है. मद्रास हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि कोरोना की दूसरी लहर का जिम्मेदार चुनाव आयोगी ही है. इतना ही नहीं मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए. मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने चुनाव आयोग से पूछा- ‘जब चुनावी रैलियां हो रही थीं तब क्या आप दूसरे ग्रह पर थे?’
मद्रास हाईकोर्ट ने कोरोना वायरस नियमों को लेकर चुनाव आयोग से ब्लू प्रिंट मांगा है, ऐसा नहीं करने पर कोर्ट की तरफ से 2 मई को आने वाले नतीजों को रोकने तक की बात कही गई है.
चुनाव आयोग को फटकार की नौबत क्यों?
पहले आपको ये बताते हैं कि चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों के लिए मौजूदा समय में क्या नियम बनाए हैं. चुनाव आयोग ने 6 चरण के चुनाव की वोटिंग के बाद 22 अप्रैल को बाइक रैलियों और रोड शो पर रोक लगाने का ऐलान किया. इसके अलावा कहा गया कि रैलियों और जनसभाओं में 500 से ज्यादा लोग शामिल नहीं होंगे, साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग का खयाल रखा जाएगा.
अब आप सोच रहे होंगे कि चुनाव आयोग ने देर से ही सही, कुछ तो नियम कायदे लागू किए. लेकिन नहीं, चुनाव आयोग ने ये नियम तब लागू किए, जब राजनीतिक दल लोक लज्जा के चलते पहले ही इसे लेकर ऐलान कर चुके थे.
राहुल गांधी और ममता ने की शुरुआत
अब कोरोना का विक्राल रूप देखकर भले ही चुनाव आयोग खामोश रहा हो, लेकिन नेताओं को लगा कि कहीं दो-चार राज्यों के चक्कर में देश के लोग ही दुदकारने न लग जाएं. सबसे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 18 अप्रैल को ट्वीट कर बताया कि वो बंगाल की सभी रैलियों को रद्द कर रहे हैं. उन्होंने लिखा,
“कोविड संकट को देखते हुए, मैंने पश्चिम बंगाल की अपनी सभी रैलियां रद्द करने का निर्णय लिया है. राजनैतिक दलों को सोचना चाहिए कि ऐसे समय में इन रैलियों से जनता व देश को कितना खतरा है.”राहुल गांधी
राहुल गांधी के इस ट्वीट के बाद बीजेपी ने जमकर मजाक उड़ाया और कहा कि कांग्रेस तो पश्चिम बंगाल में रेस में ही शामिल नहीं है. यानी चुनावी रैलियों से दूरी बनाने के फैसले को कांग्रेस की हार से जोड़ा गया.
लेकिन इसके ठीक एक दिन बाद ममता बनर्जी ने भी ये बता दिया कि वो कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए कोलकाता में अपनी चुनावी रैलियों को रद्द कर रहीं हैं. अब इसका जवाब बीजेपी के पास नहीं था, क्योंकि पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को भी रेस से बाहर नहीं बता सकते थे.
आखिरकार बीजेपी ने भी 19 अप्रैल की देर शाम चुनावी रैलियों को छोटा करने का फैसला किया. बीजेपी ने बताया कि पश्चिम बंगाल में अब सभी जगहों पर छोटी रैलियां की जाएंगी, जिनमें लोग कोरोना नियमों का पालन करेंगे. यहां तक कि पीएम मोदी और केंद्रीय मंत्रियों की की रैली में सिर्फ 500 लोगों की भीड़ जुटेगी.
नेताओं के बाद चुनाव आयोग को आया कोरोना का खयाल
अब राजनीतिक दल अपने प्रचार में कहां कोरोना नियमों का पालन करने वाले थे. इसके बाद भी धड़ल्ले से नियमों की अनदेखी हुई. इसे लेकर जमकर चुनाव आयोग की आलोचना हुई. साथ ही कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी रैलियों में उमड़ रही भीड़ को लेकर फटकार लगाई. तब जाकर चुनाव आयोग ने 22 अप्रैल को कहा कि, अब बाइक रैली या फिर रोड शो की इजाजत नहीं होगी. साथ ही कहा गया कि चुनावी रैली में 500 से ज्यादा लोग शामिल नहीं हो सकते हैं. यानी चुनाव आयोग ने वही बात दोहराई, जो बीजेपी करीब तीन दिन पहले ही कह चुकी थी.
अब देशभर में कोरोना से लोगों का बुरा हाल है. कोलकाता में तो इसकी रफ्तार काफी ज्यादा हो गई है. ये हालत तब है जब टेस्टिंग कम है. कोरोना की दूसरी वेव ने लाखों लोगों को एक साथ चपेट में ले लिया है. ऐसे में मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को जमकर फटकार लगाई. कोर्ट ने बताया कि कैसे चुनाव आयोग ने अपनी भूमिका नहीं निभाई और कोरोना के खतरे को नजरअंदाज किया.
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