"हमला" या "दुर्घटना", "साजिश या" नाटक "- पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लगी चोट पर पार्टी की वफादारी लोगों का नजरिया तय करेगी. हालांकि, यह साफ है कि बनर्जी को लगी चोट ने पश्चिम बंगाल चुनाव की कहानी को फिलहाल कुछ समय के लिए नया मोड़ दे दिया है.
ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने आरोप लगाया है कि चार से पांच गुंडों के जरिए पहले से यह हमला प्लान किया गया था. साथ ही सुरक्षाकर्मियों की लापरवाही का भी आरोप लगाया है. बता दें कि फिलहाल पुलिस चुनाव आयोग के नियंत्रण में है.
राजनीतिक दृष्टिकोण से, इस घटना ने अब टीएमसी के चुनावी अभियान के कई दूसरे पहलुओं को दरकिनार कर दिया है. पार्टी 11 मार्च को अपना घोषणा पत्र जारी करने वाली थी, लेकिन ममता बनर्जी को लगी चोट की वजह से स्थगित हो गई.
बनर्जी ने कहा है कि वह चुनाव कैंपेन करेंगी, भले ही उसके लिए उन्हें व्हीलचेयर पर ही क्यों न आना पड़े.
‘गद्दारों को सबक सिखाएं’
इस घटना ने कई टीएमसी कार्यकर्ताओं और समर्थकों को पार्टी के स्थानीय नेतृत्व के प्रति असंतोष जताने और पार्टी की सर्वोच्च घायल नेता के साथ एकजुटता में रैली करने के लिए प्रेरित किया है.
जब क्विंट ने नंदीग्राम में टीएमसी समर्थकों से बात की तो जो सामान्य सी बात निकलकर आई वो थी, "गद्दारों को सबक सिखाना".
इस "हमले" ने ममता बनर्जी की उस पुरानी छवि को सामने ला दिया है जो उनके राजनीतिक जीवन की सबसे अहम गुण मानी जाती रही है- सड़क पर संघर्ष करने वाली नेता
फ्लैशबैक- 1990 और 2007
खासकर, इस घटना ने बनर्जी के करियर में दो अहम मील के पत्थर कहे जाने वाली यादों को फिर से ताजा किया है - 1990 में उनपर हुए हमले के साथ-साथ नंदीग्राम आंदोलन.
साल 1990 में कोलकाता में यूथ कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन के दौरान, उन्हें कथित रूप से वामपंथी कार्यकर्ताओं द्वारा एक मेटल रॉट से सिर पर मारा गया था. इससे उनके सिर पर गंभीर चोट लगी, जिस वजह से उन्हें 16 टांके लगे थे और एक महीने तक अस्पताल में रहना पड़ा था.
उस घटना ने एक स्ट्रीट फाइटर के रूप में बनर्जी की छवि को नया रूप दिया था और जो भय के माहौल में भी में हार नहीं मानी.
दिलचस्प बात यह है कि हमले का मुख्य आरोपी - सीपीएम के युवा कार्यकर्ता लालू आलम - 29 साल बाद 2019 में तब बरी हुए जब बनर्जी सत्ता में थीं.
जाहिर है, वाम मोर्चा सरकार ने 2011 तक मामले की उपेक्षा की थी और बहुत सारे सबूत खो गए थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तब से राजनीति छोड़ने वाले आलम ने उम्मीद जताई थी कि बनर्जी उन्हें माफ कर दें.
एक बार फिर ममता बैनर्जी साल 1993 में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान घायल हो गई थीं, इस दौरान कई प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने गोली मार दी थी.
टीएमसी समर्थकों के लिए, नंदीग्राम की घटना ने उसी क्षेत्र में वाम सरकार के भूमि अधिग्रहण के खिलाफ 2007 के आंदोलन की यादें ताजा कर दी. इस आंदोलन ने एक बड़े नेता के रूप में बनर्जी की लोकप्रियता को बढ़ावा दिया और बंगाल के गरीबों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले चेहरे के रूप में वामपंथियों की विश्वसनीयता को खत्म कर दिया.
10 साल की एंटी-इनकंबेंसी के असर के साथ-साथ बीजेपी की चुनावी मशीन से चुनौती का सामना करते हुए, अगर मतदाता अपने दिमाग में 1990 और 2007 की घटनाओं के साथ फैसला लेते हैं तो यह TMC के लिए फायदेमंद होगा .
उलझन में विपक्ष
इस घटना ने विपक्ष को भी उलझा दिया है कि वह कैसे प्रतिक्रिया दें. बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष, बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी, और सीपीएम के वरिष्ठ नेता मोहम्मद सलीम ने इसे "नाटक" कहा.
जिस वजह से सोशल मीडिया पर, इन नेताओं को एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की चोट पर "शालीनता" नहीं दिखाने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा.
इन नेताओं के उलट, बीजेपी के स्वपन दासगुप्ता और कांग्रेस के मनीष तिवारी जैसे लोगों ने हमले पर निंदा की.
ममता बनर्जी पर हुए हमलों में से कई लिंग के आधार पर थे, मसलन महिला होना. जिसमें उन्हें "नाटकीय" या "अस्थिर" के रूप में दिखाया गया है. बीजेपी के प्रचार में उनका मजाक उड़ाना एक अहम बिंदु है.
ऐसी स्थिति में जहां भावनाओं और वफादारी की धारणा का राजनीति से गहरा संबंध है, यह एक अत्यंत शक्तिशाली छवि है.
इसलिए, घायल ममता बनर्जी पर हमला करना विपक्ष के लिए बहुत उपयोगी रणनीति नहीं हो सकती है, जब्कि विपक्ष के पास सबसे अच्छा मौका स्थानीय स्तर पर टीएमसी के खिलाफ सत्ता विरोधी (anti-incumbency) रुझान को भुनाना था.
इनपुट- ईशाद्रिता लाहिड़ी
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)