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मैं अपनी फिल्म नहीं चुनता, फिल्म मुझे चुनती है : अमिताभ Exclusive

आयुष्मान के साथ काम करने और कई सारी चीजों पर अमिताभ बच्चन ने क्विंट से बात की

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शूजित सरकार की फिल्म 'गुलाबो सिताबो' इस साल की सबसे बड़ी रिलीज में से एक है और वो अमेजन प्राइम पर रिलीज हो गई है. फिल्म में अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना लीड रोल में हैं और क्रिटिक्स को ये फिल्म काफी पसंद आई है.

ट्रेलर के आने के बाद से ही अमिताभ के किरदार मिर्जा पर लोगों की नजर थी. फिल्म की OTT रिलीज, आयुष्मान के साथ काम करने और कई सारी चीजों पर अमिताभ बच्चन ने क्विंट से बात की.

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ये पहली बार है जब आप आयुष्मान खुराना के साथ काम कर रहे हैं. फिल्म में हम उन्हें अपने डायलॉग कॉन्फिडेंस के साथ बोलते हुए देखते हैं, लेकिन क्या वो आपके साथ नर्वस थे? सेट का कोई किस्सा बता सकते हैं?

अमिताभ बच्चन: आयुष्मान एक होनहार एक्टर है, जिसमें बहुत क्षमता है. मैं उनके साथ काम करके और उनसे सीख कर सम्मानित महसूस कर रहा हूं. ये जरूरी है कि एक समझदार साथी ऑन और ऑफ कैमरा आपके साथ हो और आयुष्मान उससे ज्यादा ही हैं. मुझे उम्मीद है कि वो भी ऐसा ही महसूस करते होंगे. फिल्म इंडस्ट्री में नई पीढ़ी में कॉन्फिडेंस और टैलेंट का शानदार मिक्स है. इनके बीच में रहना एक सीखने वाला अनुभव होता है.

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आप शूजित के साथ पहले भी चार बार काम कर चुके हैं और ऑडियंस ने हर फिल्म को पसंद किया. शूजित के साथ दोबारा काम करना कैसा रहा और आपकी जोड़ी में वो क्या बात है जो ऑडियंस को पसंद आ जाती है?

अमिताभ: शूजित के साथ इतने साल काम करने के साथ ही मेरे मन में उनकी क्राफ्ट के लिए इज्जत बढ़ गई है. वो जो सब्जेक्ट चुनते हैं, उसे समझते हैं और करैक्टर को सिनेमा के हिसाब से डिजाइन करते हैं. डायरेक्टर्स ऑल-राउंडर होते हैं. वो स्क्रिप्टराइटर, स्क्रीनप्ले सेटर, प्रोडक्शन डिजाइनर, म्यूजिक डायरेक्टर, एडिटर, एक्टर और मार्केटिंग-पब्लिसिटी गुरु होते हैं. शूजित की इन सभी क्वालिटी पर कमांड है. हर बार जब मैं सोचता हूं कि शूजित ये सोचा रहे होंगे, तो वो आते हैं और उससे भी अच्छे ऑप्शन देते हैं.

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मिर्जा के करैक्टर का आइडिया कैसे आया?

अमिताभ: मैं अपनी अगली फिल्म नहीं चुनता, फिल्म मुझे चुनती है. मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि कुछ ऐसे फिल्ममेकर हैं, जो मेरी उम्र के हिसाब से मेरे लिए रोल डिजाइन करते हैं. जहां तक मेरा सवाल है, गुलाबो सिताबो के केस में शूजित सरकार थे तो बस मैंने हां कर दी. वो प्रोजेक्ट लाए और मैंने आंख बंद करके हां बोल दिया. शूजित के साथ मैं कोई नेरेशन नहीं करता. वो आते हैं, एक आइडिया देते हैं और बस बात पक्की हो जाती.

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आपने प्रॉस्थेटिक्स को कैसे मैनेज किया

अमिताभ: प्रॉस्थेटिक्स में समय लगता है और ठीक से होने के लिए देखभाल और संयम की जरूरत होती है. गुलाबो सिताबो के लिए हर दिन मेक-अप चेयर पर 3-4 घंटे बीतते थे. शूजित एक रेफरेंस पिक्चर लाए थे कि मिर्जा कैसा दिखेगा और टीम ने उसे फॉलो किया. प्रॉस्थेटिक्स के साथ दिक्कत ये है कि वो शूट के समय तक लगा रहे. हमने गर्मी के दिनों में यूपी में शूटिंग की थी, तो ये एक मुश्किल काम था लेकिन मैनेज हो गया.

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फिल्म की OTT रिलीज के बारे में आप क्या सोचते हैं?

अमिताभ: क्रिएटिव काम हमेशा स्क्रूटिनी और असेसमेंट से गुजरता है. ऑडियंस फिल्म की तकदीर का फैसला करती है. स्थिति ऐसी थी कि गुलाबो सिताबो की रिलीज के लिए OTT का ऑप्शन देखा गया और प्रोड्यूसर्स ने इस फैसले को लेने से पहले कई फैक्टर्स को ध्यान में रखा. हर नई खोज की तरह हम इस एक्सपेरिमेंट के नतीजे का भी इंतजार करेंगे.

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