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'आधार' फिल्म से UIDAI को आपत्ति, डायरेक्टर बोले- 'रंग दे बसंती नहीं बना सकते आज'

Aadhaar फिल्म के डायरेक्टर सुमन घोष से खास बातचीत

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फिल्ममेकर सुमन घोष की फिल्म 'आधार' (Aadhaar) में एक डायलॉग है, जिसमें फिल्म का हीरो गांववालों को अखबार की खबर पढ़कर सुना रहा है कि आधार बनने से आपकी प्राइवेसी का उल्लंघन हो सकता है. इस पर गांव का ही एक आदमी कहता है, "हमारे पास खाने को कुछ है नहीं. प्राइवेसी का क्या करेंगे, अब और क्या सरकार हमारे गुसलघाने में घुस जायेगी."

फिल्म में कटाक्ष वाले ऐसे और भी डायलॉग हैं, जिन पर आधार कार्ड जारी करने वाली संस्था यूआईडीएआई ने आपत्ति जतायी है और इस कारण फिल्म की रिलीज टल गई है.

सेंसर बोर्ड से मंजूरी मिलने के बाद भी यूआईडीएआई ने इस फिल्म में 28 कट लगाने की मांग की है. फिल्म को 5 फरवरी 2021 को रिलीज होना था, लेकिन अब तक ये रिलीज का इंतजार कर रही है.

यूआईडीएआई की इस मांग का फिल्म डायरेक्टर सुमन घोष ने विरोध किया है और वो इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मानते हैं.

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सुमन घोष की क्विंट की खास बातचीत

घोष ने क्विंट को दिए इंटरव्यू में बताया कि फरवरी 2021 में ट्रेलर के बाद यूआईडीएआई ने फिल्म देखने की मांग की थी, जिसके बाद उनके लिए फिल्म की स्क्रीनिंग रखी गई. इसके बाद, यूआईडीएआई ने जियो स्टूडियोज को 28 कट की एक लिस्ट भेजी थी. घोष ने बताया कि उन्हें अभी तक ये लिस्ट नहीं भेजी गई है. जियो स्टूडियोज ने कहा है कि वो सरकार के साथ इस मसले को सुलझाने की कोशिश कर रही है.

Aadhaar फिल्म के डायरेक्टर सुमन घोष से खास बातचीत

'आधार' फिल्म में विनीत कुमार

(फोटो: ट्विटर)

क्या है 'आधार' की कहानी?

'आधार' फिल्म झारखंड के एक गांव पर बनी है, जिसमें पहली बार आधार के लिए रजिस्ट्रेशन हो रहे हैं. फिल्म के हीरो विनीत कुमार इसके लिए सबसे पहले सामने आते हैं, लेकिन आधार बनने में सरकारी काम काज में जो मुश्किल आती है, लालफीताशाही होती है या जो सरकारी नियम हैं, उनके चक्कर में विनीत कुमार की जिंदगी में जो ट्विस्ट आते हैं, ये फिल्म उसी पर व्यंग है.

फिल्म में सौरभ शुक्ला, रघुबीर यादव और संजय मिश्रा जैसे मंझे हुए कलाकार भी हैं. फिल्म जियो स्टूडियो के बैनर तले बनी है और इसे दृश्यम फिल्म्स ने प्रोड्यूस किया है.
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"नहीं बना सकते 'रंग दे बसंती' जैसी फिल्में"

सुमन घोष का कहना है कि फिल्म पिछले 6 महीने से लटकी पड़ी है. वो यूआईडीएआई के सीईओ को चिट्ठी, ईमेल सब लिख चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. घोष ने कहा कि सेंसर बोर्ड से मंजूरी मिलने के बाद भी सरकारी अफसरों के फिल्म में इस तरह अड़ंगा लगाने से वो काफी निराश हैं.

घोष ने सेंसरशिप के मुद्दे पर कहा कि आज सत्यजीत रे की 'हीरक राजार देशे' और 'रंग दे बसंती' जैसी क्लासिक फिल्में नहीं बनाई जा सकतीं.

सुमन घोष मयामी की एक यूनिवर्सिटी में इकनॉमिक्स के प्रोफेसर हैं और उनकी इस फिल्म का बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर भी हो चुका है. इससे पहले, उनकी डॉक्यूमेंट्री 'द आर्ग्यूमेंटेटिव इंडियन' पर भी विवाद हो चुका है.

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यूआईडीएआई को क्यों है ऐतराज?

फिल्म में सरकारी सिस्टम पर कई कटाक्ष भरे डायलॉग हैं, जो यूआईडीएआई को नहीं भाये. फिल्म में एक सीन है, जिसमें हीरो विनीत कुमार आधार के लिए फोटो क्लिक कराते वक्त मुस्कराता है, लेकिन सरकारी कर्मचारी बने सौरभ शुक्ला उनसे कहते हैं कि सरकारी काम में हंसना मना है. इस पर विनीत पलटवार करते हुऐ कहते हैं कि "कैसी सरकार है जो हमें हंसते हुए नहीं देख पा रही."

फिल्म में एक और डायलॉग है, जिसमें हीरो कहता है कि "मैं आधार हूं." इस डायलॉग पर भी यूआईडीएआई को आपत्ति है, लेकिन इसके जवाब में सुमन घोष का कहना है कि ये एक प्रतीकात्मक डायलॉग है, जिसमें फिल्म का हीरो गांव के लोगों को आधार लेने के लिए प्रेरित करता है. घोष ने कहा कि ये फिल्म आधार के समर्थन में है.

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में, यूआईडीएआई के सूत्रों से बताया गया है कि फिल्म कॉपीराइट का उल्लंघन करती है. फिल्म प्रोड्यूसर्स ने 2018 में आधार का नाम, लोगो और यूआईडीएआई के रीजनल ऑफिस रांची में शूटिंग की अनुमति मांगी थी, जिसके लिए यूआईडीएआई ने मना कर दिया था, लेकिन फिर भी फिल्म में आधार, लोगो का इस्तेमाल किया, जिसे देखकर ये लगता है कि फिल्म को यूआईडीएआई का सपोर्ट है.

इसी साल न्यू सिनेमेटोग्राफ (संशोधन) बिल 2021 लाया गया है, जिसके मुताबिक, किसी फिल्म को सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट मिलने के बाद भी केंद्र सरकार को उसमें बदलाव करने का अधिकार मिल गया है.

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