एक और शुक्रवार. अपने से आधी उम्र की 25 साल की डेब्यूटेंट के साथ रोमांस करते हुए एक उम्रदराज बॉलीवुड एक्टर की एक और फिल्म. एक्टर जो मुस्लिम आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ रहा है और शेरों से भी. आखिर Bear Grylls के छोटे-मोटे ट्रिक्स पर क्यों रुकना, हाथी के गोबर वाली चाय से क्यों संतोष करना जब आप प्रचंड धार्मिक लहर की सवारी कर सकते हैं, खुद को महान दिखा सकते हैं और इतिहास फिर से लिख सकते हैं.
'सम्राट पृथ्वीराज' ने निश्चित रूप से 54 साल के अक्षय कुमार को खेलने के लिए जाना पहचाना मैदान दिया है. वो अक्षय जिनके के लिए पिछले दो साल कुछ खास अच्छे नहीं रहे.
2020 में उनकी बिग लॉकडाउन रिलीज 'लक्ष्मी' को संस्कृति के ठेकेदारों ने एंटी-हिंदू करार दे दिया,जिससे बॉक्स ऑफिस पर अक्षय कुमार को अच्छा रेस्पॉन्स नहीं मिला.
जब सिनेमा हॉल सामान्य रूप से खुलने लगे तो Bell Bottom (2021), सूर्यवंशी (2021) और बच्चन पांडे (2022) जैसी सभी फिल्मों से उम्मीद की गई थी कि इन्हें बड़ी सफलता मिलेगी, लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म असल में उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई.
हर बार इमेज की फिक्र
करीब 130 से ज्यादा फिल्में कर चुके अक्षय कुमार जिनके खाते में दर्जनों और फिल्में हैं, अपनी जेनेरेशन के सबसे सफल एक्टर हैं. दुनियाभर के किसी भी लीड पुरुष कलाकार की तरह, जिसने अपने आपको इतने लंबे समय तक लाइमलाइट में रखा, उनके लिए अपनी इमेज को बनाए रखना और इसे बार-बार गढ़ना जरूरी है.
साल 1992 में आई अक्षय कुमार की ब्रेक आउट फिल्म ने पिछले वीकेंड में अपनी 30वीं वर्षगांठ मनाई है. ये किसी बॉलीवुड फैन के लिए जो 1990 के दशक में बड़ा हुआ है, उसके लिए उदासी भरा हो सकता है, क्योंकि उस दशक में अक्षय कुमार की करीब सात ऐसी फिल्में आई थीं, जिनके टाइटल में खिलाड़ी शब्द था.
जहां संभवत: ये सोच विचार कर उठाए गए कदम की तरह नहीं शुरू हुआ, ये अभी भी उस सबसे अच्छी इमेज बिल्डिंग एक्सरसाइज की तरह है, जो बॉलीवुड ने कभी देखी हो.
ये दशक शायद ज्यादातर लोगों को इस तरह याद हो कि इसने शाहरुख खान को एक रोमांटिक सुपरस्टार के तौर पर स्थापित किया. लेकिन ये वो दशक भी था, जिसने अक्षय कुमार को भारत के निर्विवाद एक्शन हीरो के तौर पर स्थापित किया. उन्हें लंबे समय तक खिलाड़ी कुमार के नाम से जाना जाता और लंबा समय अभी आना बाकी था.
अक्षय कुमार, भारत के जैकी चैन
वो लड़का जो सिंगल स्क्रीन के बाहर टिकटों की कालाबाजारी करता है, उसके लिए अक्षय कुमार, जैकी चैन का भारतीय जवाब हैं. और शायद यहीं पर कहीं किसी ने ये जाना कि कॉमेडी अक्षय कुमार के सितारों को और ज्यादा चमकाने में मदद करेगी.
जैसे ही नया मिलेनियम आया, अक्षय कुमार ने कॉमेडी वाली भूमिकाओं के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया. ऐसा कुछ जो बाद में उनके करियर में भरपूर फायदा लेकर आने वाला साबित होता.
साल 2000 में आई प्रियदर्शन की हेरा फेरी को अभी भी बॉलीवुड की अब तक बनी कॉमेडी फिल्मों में बेस्ट माना जाता है और इसमें अक्षय कुमार की कॉमेडी टाइमिंग एक खुशनुमा सरप्राइज की तरह आई. खास तौर से उन लोगों के लिए जो उनकी एक्टिंग स्किल्स को संशय से देखते थे.
अगला डेढ़ दशक पूरी तरह से ‘Akki the Star’ के बारे उनकी खिलाड़ी वाली इमेज और उनकी सबसे बड़ी हिट फिल्मों से भी ऊपर उठकर उनके लिए फायदा उठाने वाला साबित हुआ, खास करके एक्शन कॉमेडी जोनर की फिल्मों में.
साल 2002 में आई आवारा पागल दीवाना, साल 2005 में आई गरम मसाला, साल 2006 में आई फिल्म भागम भाग, 2007 में आई भूल भूलैया, वेलकम, साल 2008 में आई सिंह इज किंग, 2010 में आई हाउसफुल और 2012 में आई राउडी राठौड़ जैसी फिल्में अक्षय कुमार के अचूक मुहर के साथ थीं, जो अपने आप में एक मिनी इंडस्ट्री बन गए थे.
रंक से राजा की कहानी अक्षय के काम आई
ये एक्ट थोड़ा पुराना होता जा रहा था और इसे उम्रदराज होते एक्टर से बेहतर कोई और नहीं जानता था. ये बदलाव का समय था.
ये वो समय था जब अक्षय कुमार की विनम्र शुरुआत को एक बड़ी भूमिका निभानी थी. देश बदलाव से गुजर रहा था और राष्ट्रीयता की भावना अपने उभार पर थी. इंडस्ट्री ने भी ये देखा और उसे बदलाव करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
इंडस्ट्री में नेपोटिज्म का मुद्दा उठा और एक बाहरी होना यहां एक फायदे वाली बात थी. कम से कम एक एक्टर की पब्लिक इमेज को लेकर. अक्षय कुमार आउटसाइडर थे, वो जिसने लीडिंग मैन होने का सपना देखने की हिम्मत की और शीर्ष पर पहुंचे.
उनके आभामंडल में जो चीज असल में जुड़ी, वो थी उनकी रंक से राजा बनने वाली दिलचस्प कहानी. आम भारतीय पहले से ही सुपरमैन वाले मिथ को हाथोंहाथ खरीद रहे थे, जो एक आम आदमी के रैंक से उभर कर बना हो. ये सबकुछ अक्षय कुमार के लिए बहुत ही सावधानी से बुनी गई स्टोरीटेलिंग का हिस्सा था, जिससे वो लहरों को पार कर सकें.
जाहिर है कि जहां अच्छा पीआर करोड़ों लोगों के लिए एक नया गाइडिंग फोर्स था. थोड़ा सा बढ़ा चढ़ाकर कही गई एक बैंकॉक के कुक की बैकस्टोरी जिसने कई तरह के martial arts की ट्रेनिंग ली हुई हो, ये किसी मूवी स्क्रिप्ट की तरह ही लगती है, लेकिन इसने अक्षय कुमार को एक ऐसी व्यक्ति के तौर पर अच्छी तरह स्थापित किया जो लोगों के बीच का है और फिर उनमें भगवान की तरह भी है.
उन्हें बस जरूरत थी कि वो इनमें से कुछ चीजों को अपने ऑनस्क्रीन अवतारों में लेकर आएं और ठीक ऐसा ही उन्होंने किया भी.
फसाने से अलग कहानियां
आने वाले कुछ सालों में उन्होंने ऐसी फिल्मों को चुना जो स्पष्ट रूप से उससे अलग थीं, वो जो बिना तर्क वाली फिक्शन से अलग थीं.
साल 2016 में उन्होंने समीक्षकों द्वारा सराही गई फिल्म एयरलिफ्ट में एक रियल लाइफ कैरेक्टर निभाया. वहीं साल 2016 में आई रुस्तम, 1959 के मशहूर नानावती मर्डर ट्रायल पर आधारित थी. इस फिल्म के लिए अक्षय कुमार को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला.
साल 2017 में आई फिल्म जॉली एलएलबी 2 में उन्होंने लखनऊ के उपेक्षित वकील का किरदार निभाया था. वहीं साल 2017 में आई फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा में उन्होंने ऐसे व्यक्ति का किरदार निभाया जो महिला अधिकारों से लेकर स्वच्छता के लिए लड़ता है. ये आगे भी जारी रहा और साल 2018 में आई फिल्म पैडमैन में अक्षय कुमार ने एक और रियल लाइफ कैरेक्टर निभाया, जहां वो एक ऐसी मशीन का आविष्कार करते हैं, जिससे भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं के लिए कम कीमत वाले सैनिटरी पैड तैयार किए जा सकें.
इसके बाद साल 2018 में ही आई फिल्म गोल्ड में अक्षय कुमार ने उस हॉकी टीम के कोच का किरदार निभाया जिसने भारत को साल 1948 में एक स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर अपना पहला ओलंपिक मेडल दिलाया. वहीं साल 2019 में आई फिल्म मिशन मंगल में अक्षय कुमार ने एक रॉकेट साइंटिस्ट का किरदार निभाया, जिसने ISRO Mars Orbiter Mission मंगलयान को लीड किया.
इसके आगे का रास्ता पूरी तरह से साफ था. अक्षय कुमार भारत के इतिहास को खंगाल सकते थे और निभाने के लिए दिलचस्प किरदारों को ढूंढ सकते थे. ये उनकी विरासत होती.
अपने करियर के इस पॉइंट पर अक्षय कुमार स्पष्ट रूप से अपनी पॉपुलैरिटी के शीर्ष पर हैं. और इसका एक कारण यह भी है कि वह समझ गए हैं कि यह एक ऐसा देश है जो एक आम आदमी के रक्षक बन जाने वाली कहानियां देखने के लिए प्यासा है. ये कुछ हद तक इसलिए भी कामयाब हुआ क्योंकि उन्होंने अपनी ऑनस्क्रीन छवि को मल्टीमीडिया के जरिए भी चमकाया.
हर बार वह ऐसे सबसे पहले आदमी होते हैं जो किसी सोशल कॉज के लिए धनराशि देने की बात कहता है और उनके सोशल मीडिया हैंडल्स उन सामाजिक मुद्दों में लग जाते हैं.
उन्होंने इसे भी एक महत्वपूर्ण बिंदु बनाया है जिससे लोगों को बता सकें कि वो अपने देश से कितना प्यार करते हैं. ठीक वैसे जैसा उन्होंने अपनी फिल्मों के जरिए बताने की कोशिश की है.
कुछ लोग इस तथ्य पर भी सवाल कर सकते हैं कि उन्होंने कनाडा के पासपोर्ट के लिए सालों पहले अपनी भारतीय नागरिकता को गंवा दिया था, लेकिन अक्षय कुमार में यकीन रखने वाले लोगों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है. उनके पास वफादार प्रशंसकों और समर्थकों की एक आर्मी है, जो उनके हर कदम का समर्थन करती है.
क्या ये अक्षय के लिए विचार करने का वक्त है?
महामारी का दौर ऐसा जिसमें सुपरस्टार्स की परीक्षा हुई. जहां महामारी के शुरुआती दौर में अक्षय कुमार के प्रधानमंत्री राहत कोष में 25 करोड़ रुपये दान करने की बात हेडलाइंस में रही, यहां सोनू सूद जैसे लोग भी थे, जो सम्मानजनक तरीके से जरूरतमंदों के साथ खड़े नजर आए. ऐसा लगा कि भारत की आबादी की एक बड़ी संख्या ने ये देखना शुरू किया कि सच्चा हीरो उनके बीच है, ऑनस्क्रीन नहीं.
साल 2020 में अक्षय कुमार ने फिल्म लक्ष्मी में एक मुस्लिम का किरदार निभाया था. इस किरदार ने न सिर्फ उनकी दक्षिण पंथी हिंदू ऑडियंस को उनसे अलग कर दिया, बल्कि फिल्म इतनी बेकार साबित हुई कि उनके लिए नए फैन भी नहीं बना पाई.
इसके बाद आई उनकी फिल्में अच्छा नहीं कर पाई, उसके पीछे यही कारण है या नहीं कह नहीं सकते लेकिन इसने अक्षय कुमार की नींद जरूर उड़ा दी.
ये दिलचस्प है कि सम्राट पृथ्वीराज को देखें तो ऐसा पहली बार है जब उन्होंने खुद को ऐसी फिल्म में काम करते हुए पाया है, जो बहुसंख्यकवादी इस्लामोफोबिक नैरेटिव के पक्ष में इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश कर रही है.
ये एक चाल थी जिसने 'द कश्मीर फाइल्स' को इतनी बड़ी सफल फिल्म बनाया और यही चाल अक्षय कुमार की दक्षिण पंथ के चहेते के तौर पर वापसी करवा सकती है.
उन्होंने करीब करीब हर जगह जाकर अपनी फिल्म का प्रमोशन किया और देश के कुछ राजनीतिज्ञों ने भी जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा था, इसे एक मस्ट वॉच फिल्म बताया.
दुर्भाग्य से पृथ्वीराज ने भारत में अपने ओपनिंग वीकेंड में 40 करोड़ रुपये से भी कम की कमाई की और ये मुश्किल लगता है कि फिल्म अपना बजट भी रिकवर कर पाएगी जिसके बारे में ऐसा कहा जा रहा है कि ये कुछ सौ करोड़ रुपये की लागत में बनी है.
क्या ये वो समय है इस मशहूर एक्टर को इस बात का एहसास होगा कि ऑनलाइन ट्रोल आर्मी सिनेमाघरों में पैसे खर्च कर फिल्म देखने वाली भीड़ से अलग है. या ये अक्षय के नए अवतार का वक्त है?
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