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एक चीनी छात्र की नजर से चीन में ‘अंधाधुन’ की कामयाबी का राज

चीन में अंधाधुन के लोकप्रिय होने की एक वजह चीन में सस्पेंस फिल्में का पॉपुलर होना भी है

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सबसे पहले ये बताना जरूरी है कि श्रीराम राघवन की फिल्म ‘अंधाधुन’ को चीन में रिलीज करने से पहले, WeChat और Weibo पर जमकर उसका प्रचार किया गया. चीन में ये फिल्म ‘प्यानो प्लेयर’ के नाम से रिलीज हुई है. फिल्म के रिलीज से पहले दो बिन्दुओं पर चर्चा होती थी-

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  • सबसे पहले कि अंधाधुन 14 मिनट की एक फ्रेंच शॉर्ट फिल्म की नकल है (L'Accordeur). इस फिल्म को खींचकर 2 घंटे का बनाया गया है. चीन के फिल्म समीक्षकों ने बताया कि शॉर्ट फ्रेंच फिल्म की काफी प्रशंसा हुई थी. लिहाजा भारतीय फिल्म की कहानी भी बेहतरीन होने की उम्मीद थी, जिसके कारण चीन में फिल्मों के दीवानों में उत्सुकता और दिलचस्पी पैदा हुई.
  • दूसरी बात, ये मानकर चला जा रहा था कि ओरिजिनल फ्रेंच फिल्म की तुलना में इस फिल्म में कई भारतीय पहलू शामिल किए जाएंगे, ताकि फिल्म ज्यादा आकर्षक बने. निश्चित रूप से अंधाधुन ने इन सभी कयासों को सही ठहराया है.
अंधाधुन के लोकप्रिय होने का एक कारण ये भी है कि रिलीज होने के बाद नॉर्थ अमेरिका में इसे अच्छी रेटिंग मिली. चीन में कई आर्टिकल्स में जिक्र किया गया कि IMDB ने इसे 8.8 की रेटिंग दी है.

ये बात ना सिर्फ फिल्म के गुणों का बखान करती है, बल्कि ये भी साबित करती है कि नॉर्थ अमेरिकी बाजार में भारतीय फिल्मों की पूछ बढ़ रही है.

चीनी अपनी पारंपरिक संस्कृति और विचारों का प्रचार-प्रसार फिल्मों के जरिए करने की कोशिश करते हैं, और इसके लिए हमेशा अंतरराष्ट्रीय रास्ता अख्तियार करते हैं. ये बात दूसरी है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में शायद ही कोई चीनी फिल्म कामयाब हुई हो. विशेषकर सस्पेंस और थ्रिलर फिल्म. लिहाजा नॉर्थ अमेरिका में अंधाधुन की प्रशंसा से चीन के फिल्मी दीवानों के कान खड़े होने ही थे.

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खास बात थी कि अंधाधुन के चीन में रिलीज होते ही चीन की फिल्म रेटिंग वेबसाइट Maoyan ने इसे 9.2 की ऊंची रेटिंग दे डाली. इससे भी अच्छी बात ये हुई कि ज्यादा सख्त पैमानों वाली Douban ने फिल्म को 8.3 की रेटिंग दी. गौर करने वाली बात है कि 8 या उससे ज्यादा की रेटिंग बेहतरीन मानी जाती है.

चीन में अंधाधुन के लोकप्रिय होने की कुछ और भी वजहें हैं: चीन में सस्पेंस फिल्में काफी लोकप्रिय हैं, लेकिन चीन में बनी कई सस्पेंस थ्रिलर फिल्में दर्शकों की भूख नहीं मिटा पातीं. ज्यादातर चीनी थ्रिलर फिल्में सिर्फ अलग दिखने के लिए कुछ अलग करती हैं. कुछ अलग करने की कोशिश में फिल्म की खूबसूरती खत्म हो जाती है और स्क्रिप्ट उलझ जाती है. नतीजा ये निकलता है कि फिल्म खत्म भी नहीं होती, कि दर्शकों का जमावड़ा थियेटर के बाहर निकल जाता है.

किसी ने कहा, “फिल्म अंधाधुन का अंत, अंत नहीं, बल्कि सोच की शुरुआत है.” थ्रिलर फिल्म अपने पीछे कई सवाल छोड़ जाती है और क्रेडिट रोल चलने के बाद भी दिमाग में उथल-पुथल मचा रहता है.

हीरो (आयुष्मान खुराना) समेत फिल्म अंधाधुन का हर किरदार, मानों किसी व्यक्ति की स्वाभाविक परछाईं है. संगीत सीखने के लिए हीरो अंधा होने का ढोंग रचता है. फिर धीरे-धीरे नैतिक रूप से अंधा हो जाता है. पड़ोस का मतलबी बच्चा, जिसे दीन-दुनिया से कोई मतलब नहीं. पुलिस अधिकारी (मानव विज) निर्दयी, ताकतवर और भ्रष्ट समाज का अक्स, हीरो की गर्लफ्रेंड (राधिका आप्टे), जो समाज के उस तबके को रिप्रेजेंट करती है, जो आसानी से किसी के कहे में आ जाता है.फिल्म में शरीर का अंग बेचने का टुकड़ा भी भारत में शरीर के अंगों के अवैध कारोबार को सामने लाता है. सामाजिक ग्रुप और सरोकार के ये अक्स किसी न किसी रूप में चीनी समाज का भी हिस्सा हैं.

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पिछले कुछ सालों में 3 इडियट, पीके और दंगल जैसी भारतीय फिल्मों को चीन के दर्शकों ने काफी पसंद किया है. दर्शकों में भारतीय फिल्मों की समझ भी विकसित हुई है. पहले चीनी दर्शक यही सोचते थे कि भारतीय फिल्में नाच-गाना और मिर्च-मसालों से भरी होती हैं. बाद में उन्हें लगने लगा कि भारतीय फिल्में मानवीय पहलुओं को दिखलाने वाली भावुक फिल्में भी होती हैं. अब बेहतरीन सस्पेंस थ्रिलर फिल्म अंधाधुन ने एक बार फिर चीनी दर्शकों का दिल जीता है.

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बताया जा रहा है कि अंधाधुंन ने भारत से ज्यादा चीन में कमाई की है. हो सकता है कि इसकी वजह चीन में भारत की तुलना में टिकट की औसत कीमत ज्यादा होना हो.

उदाहरण के लिए साल 2016 में भारत में फिल्म के टिकट की औसत कीमत 47 रुपये थी, जो चीन के 33 युआन की तुलना में काफी कम थी. 33 युआन भारत के 330 रुपये के बराबर है.

ये भारतीय फिल्मों की लोकप्रियता का ही नतीजा है कि चीनी नागरिकों में अपने पड़ोसी देश के प्रति नई समझ विकसित हो रही है. चीन में डिस्ट्रिब्यूशन और भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन की बढ़ती तादाद के बाद चीन के दर्शक भारतीय फिल्मों के प्रशंसक बन रहे हैं और अपनी स्वीकार कर रहे हैं. इसके साथ ही भारतीय फिल्म उद्योग को भी अपनी फिल्मों के लिए सरहद पार एक नया बाजार मिल रहा है.

(हू जियाओवेन, इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज़, यूनान यूनिवर्सिटी, चीन में शोधकर्ता हैं.)

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