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भेड़िया, रूही, स्त्री: बॉलीवुड ने ढूंढा हॉरर कॉमेडी को हिट कराने का फॉर्मूला

Bhediya, stri, roohi, Bhool Bhulaiyaa: इन सभी फिल्मों में हॉरर कॉमेडी के अलावा कुछ और सामान्य है

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हाल के वर्षों में बॉलीवुड में हॉरर कॉमेडी की लोकप्रियता में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है. 2022 में ही एक ही श्रेणी (हॉरर कॉमेडी) की तीन फिल्में लगातार एक के बाद एक रिलीज हुई हैं. पहले कार्तिक आर्यन स्टारर भूल भुलैया-2, फिर कैटरीना कैफ की फाेन भूत आई और अब वरुण धवन की भेड़िया. हॉरर-कॉमेडी एक ऐसा सब-जेनर है, जिसकी फिल्में सिल्वर स्क्रीन पर तीन से चार साल में एक बार दिखती थीं लेकिन अचानक से इस श्रेणी की फिल्में एक बड़े दर्शक वर्ग को अपनी ओर खींचने में सफल रही हैं.

इसकी बढ़ती लोकप्रियता के पीछे क्या कारण है, इसे जानने के लिए आइए एक नजर बॉलीवुड में हॉरर कॉमेडी के साल दर साल विकास पर डालते हैं :

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'भूत बंगला' और बॉलवुड में हॉरर-कॉमेडी जेनर का उदय

हम में से कई लोग यह नहीं जानते होंगे कि 1965 में रिलीज हुई भूत बंगला बॉलीवुड की पहली हॉरर-कॉमेडी फिल्मों में से एक थी. इस फिल्म के डायरेक्टर महमूद थे. मूल रूप से इसे एक कॉमेडी-म्यूजिकल फिल्म के तौर पर शूट किया गया था, लेकिन अनजाने में ही इस फिल्म ने हॉरर-कॉमेडी जेनर की सभी जरूरतों को पूरा किया. ये फिल्म जहां एक ओर दर्शकों को हंसाती है, वहीं दूसरी ओर रोंगटे भी खड़े कर देती है. इस फिल्म ने क्लासिक हॉरर फार्मूले को फाॅलो किया : एक भूतिया घर, अस्पष्ट मौतें, अनसुलझी मर्डर मिस्ट्री और अक्सर आ जाने वाला एक भूत.

Bhediya, stri, roohi, Bhool Bhulaiyaa: इन सभी फिल्मों में हॉरर कॉमेडी के अलावा कुछ और सामान्य है

फिल्म भूत बंगला का पोस्टर

फोटो साभार : IMDb

हालांकि उस समय फिल्ममेकर्स और दर्शक, दोनों ने सिनेमाघरों में हॉरर फिल्म्स के ट्रेंड का विरोध किया था. ये विरोध 1970 के दशक में तब तक रहा जब रामसे बंधुओं ने दो गज जमीन के नीचे, पुराना मंदिर, जानी दुश्मन, दरवाजा, तहखाना और वीराना जैसी हॉरर फिल्मों के साथ सिनेमा में प्रवेश किया.

हालांकि रामसे की फिल्में तकनीकी रूप से हॉरर कॉमेडी नहीं थीं, लेकिन उन्होंने हॉरर जेनर को बॉलीवुड में मेनस्ट्रीम के तौर पर स्थापित करने में अहम योगदान दिया. 1985 में तुलसी रामसे और श्याम रामसे ने भारत की पहली 3डी हॉरर फिल्म सामरी बनाई. फिल्म में उन्होंने इस जेनर के लिए हर संभव प्रयास किए और किरदारों की स्किन (चमड़ी) को डरावना बनाने के लिए काफी काम किया. इससे पूरे देश में हॉरर फिल्म की लोकप्रियता बढ़ाने में मदद मिली.

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पुराना मंदिर, सामरी और वीराना फिल्म के पोस्टर 

फोटो साभार : IMDb

लेकिन समय के साथ ही लोग जल्द ही इस जेनर और इसके घिसे-पिटे पुराने एक ही जैसे प्लाॅट्स के साथ ही भद्दे स्पेशल इफेक्ट्स से ऊब गए. चूंकि दर्शकों को बार-बार एक ही कंटेंट परोसा जा रहा था, ऐसे में उनके लिए कोई सप्राइजिंग एलिमेंट नहीं रह गया था. जिसके परिणामस्वरूप जल्द ही सिनेमाघरों में हॉरर फिल्में देखने वालों की संख्या कम होने लगी. यह देखने के बाद कई प्रोड्यूसर इस जेनर में इंवेस्ट करने का जोखिम नहीं उठाना चाहते थे.

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साउथ की फिल्मों का असर

1990 के दशक के अंत में जहां एक ओर बॉलीवुड में हॉरर जेनर की फिल्में संघर्ष कर रही थीं वहीं इसके उलट साउथ का सिनेमा इसकी ओर बढ़ रहा था. टॉलीवुड इंडस्ट्री ने हर साल कम से कम दस से अधिक हॉरर फिल्मों को बनाना शुरु कर दिया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस जेनर के दर्शकों ने इसे काफी पसंद किया था और यह कैटेगरी काफी तेजी से लोकप्रियता हासिल कर रही थी. प्रेम कथा चित्रम, अरुंधति, नागवल्ली, चंद्रमुखी, कंचना, राजू गारी गढ़ी, राजमहल और भागमथी जैसी फिल्मों ने कॉमेडी के साथ-साथ डरावने काल्पनिक किरदारों को समाहित करते हुए एक नए कॉन्सेप्ट और कंटेंट के साथ दर्शकों को प्रभावित किया.

2000 के दशक की शुरुआत में जहां एक ओर बॉलीवुड हॉरर जेनर के लिए अपने गंभीर दृष्टिकोण के साथ प्रयोग कर रहा था, वहीं दूसरी ओर साउथ फिल्म इंडस्ट्री ने सिनेमा में हॉरर कॉमेडी की लोकप्रियता को फिर से जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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(बाएं) मणिचित्राथजु फिल्म के स्टिल शॉट में शोभना; (दाएं) भूल भुलैया के स्टिल शॉट में विद्या बालन

फोटो साभार : IMDb

अक्षय कुमार स्टारर एक साइकोलॉजिकल हॉरर-कॉमेडी फिल्म, भूल भुलैया 2007 में बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त हिट रही थी. यह फिल्म, 1993 की मलयालम हॉरर म्यूजिकल फिल्म मणिचित्राथजू (Manichitrathazhu) की रीमेक थी. इस फिल्म में वो सबकुछ था जिसकी तलाश हिंदी भाषी दर्शक इस जेनर में कर रहे थे. अपनी शानदार कॉमेडी टाइमिंग से लेकर डराने तक, फिल्म ने शुरू से अंत तक अपने दर्शकों के साथ माइंड गेम खेला. इसकी वजह से यह फिल्म दर्शकों को अपनी सीट से बांधे रखने में सफल रही.

लेकिन जिस तरह इस फिल्म ने इस जेनर में अपना दृष्टिकोण दिखाया, उसने इसे अन्य हॉरर फिल्मों से अलग बनाया. भूल भुलैया ने सुपरनेचुरल घटनाओं को एक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाया और इसके साथ ही अपनी आकर्षक स्टोरी-टेलिंग और स्क्रीनप्ले के साथ हॉरर की प्रमाणिकता को बनाए रखने का प्रयास किया.

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(बाएं) कांचना फिल्म का स्टिल शॉट; (दाएं) लक्ष्मी फिल्म के स्टिल शॉट में अक्षय कुमार

फोटो साभार : यूट्यूब

इसके बाद जल्द ही बड़े पर्दे पर हॉरर कॉमेडी उभर कर नियमित तौर पर आने लगी. कई फिल्ममेकर्स ने इस जेनर में अपना हाथ आजमाया. कोई बड़े पर्दे पर दोस्ताना भूत (फ्रेंडली घोस्ट) लेकर आया तो कोई हॉरर फिल्म में रोमांस का एंगल लेकर आया. इसमें से कुछ फिल्में भूतनाथ, डार्लिंग (2007), गैंग्स ऑफ घोस्ट्स, फिल्लौरी, गोलमाल अगेन, भूत एंड फ्रेंड्स, अतिथि भूतो भव: और नानू की जानू आदि थीं. हालांकि, एक फैनबेस को आकर्षित करने के लिए इन फिल्मों में एक असाधारण स्टोरीलाइन या प्लॉट का अभी भी अभाव था.

अक्षय कुमार स्टारर हालिया फिल्म लक्ष्मी, एक और ऐसी हिंदी-भाषी हॉरर कॉमेडी है जिसे दर्शकों ने पसंद नहीं किया. यह फिल्म राघव लॉरेंस की लोकप्रिय कंचना फ्रेंचाइजी से इंस्पायर थी, लेकिन रीमेक फिल्म (लक्ष्मी) ओवर-द-टॉप एग्जीक्यूशन और जबरन की कॉमिक टाइमिंग के कारण बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पायी.

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पश्चिम के सिनेमा का योगदान

बॉलीवुड की हॉरर कॉमेडी केवल दक्षिण की फिल्मों से ही नहीं बल्कि पश्चिमी देशों की फिल्मों से भी प्रेरित रही हैं. रामसे ब्रदर्स से लेकर दिनेश विजान तक कई बॉलीवुड फिल्ममेकर्स ने पश्चिमी देशों की फिल्मों से कॉन्सेप्ट उठाया और अपने दर्शकों को मनोरंजन प्रदान करने के लिए उन्होंने अपनी फिल्म में देसी तड़का लगाया.

सैफ अली खान की गो गोवा गॉन (Go Goa Gone) बॉलीवुड की पहली ऐसी हॉरर कॉमेडी फिल्म थी, जिसमें जॉम्बियों को दिखाया गया था. जबकि हॉलीवुड ने 1968 में फिल्म निर्माता जॉर्ज रोमेरो की नाइट ऑफ द लिविंग डेड के साथ ही अलौकिक प्राणियों (सुपरनेचुरल क्रिएचर्स) का निर्माण करना शुरू कर दिया था. इसके साथ ही हॉलीवुड ने उसी जेनर में पर्याप्त मात्रा में फिल्मों का निर्माण किया है, जिसमें जॉम्बीलैंड फ्रैंचाइजी, शॉन ऑफ द डेड, डेड बिफोर डॉन, आर्मी ऑफ द डेड, राइज ऑफ द जॉम्बी और रेजिडेंट इविल सीरीज सहित अन्य फिल्में शामिल हैं.

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भूत पुलिस, गो गोवा गॉन और फोन भूत फिल्मों के पोस्टर

फोटो साभार : IMDb

हमारे बॉलीवुड के फिल्मकारों ने सिर्फ जॉम्बी से ही नहीं बल्कि फोन भूत (कैटरीन कैफ स्टारर) और भूत पुलिस (सैफ अली खान और अर्जुन कपूर स्टारर) जैसी हालिया रिलीज फिल्मों के माध्यम से भारतीय दर्शकों को हमारे अपने "देसी घोस्टबस्टर्स" से भी रूबरू कराया. हालांकि फिल्म में कहानी के नायक अनिवार्य रूप से वही थे, लेकिन उनको हैंडल या ट्रीट करने का तरीका बिल्कुल ही अलग था.

जहां एक ओर गुरमीत सिंह की फोन भूत दो घोस्टबस्टर्स की कहानी के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक भूत के सामने बिजनेस का प्रस्ताव रखते हैं. वहीं फिल्ममेकर पवन कृपलानी की भूत पुलिस में एक लापता पिता के साथ दो भाइयों की यात्रा को दिखाया गया है. दोनों भाई तंत्र-मंत्र से लोगों के जीवन से भूत-प्रेत के कब्जे के सामान्य मामलों को सुलझाते थे. ये फिल्म सीडब्ल्यू ब्रॉडकास्टिंग के पॉपुलर शो सुपरनैचुरल की ओर इशारा करती हैं. सुपरनैचुरल टीवी शाे में जेन्सेन एकल्स और जेरेड पैडलेकी द्वारा अभिनीत है.

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भेड़िया और जुनून फिल्म का पोस्टर

फोटो साभार : IMDb

हॉरर कॉमेडी की दुनिया में वरुण धवन स्टारर फिल्म भेड़िया नई एंट्री है, इसे फिल्ममेकर दिनेश विजान ने बनाया है. जैसा कि नाम से जाहिर है, यह फिल्म वेयरवोल्फ की पश्चिमी लोककथाओं से प्रेरित है. वेयरवोल्फ एक सुपरनेचुरल क्रिएचर है, जिसे हम ट्वाइलाइट, वैन हेलसिंग, अंडरवॉल्फ, हॉवेल और द सिल्वर बुलेट जैसी हॉलीवुड फिल्मों में देख चुके हैं.

हालांकि, भेड़िया पहली बॉलीवुड फिल्म नहीं है जिसमें वेयरवोल्फ को दिखाया गया है. 1990 के दशक में फिल्ममेकर महेश भट्ट ने पूजा भट्ट और राहुल रॉय स्टारर अपनी फिल्म जूनून में इसे दिखाया था. हालांकि फिल्म में वेयरवोल्फ को नहीं दिखाया गया था, लेकिन इसमें एक ऐसे व्यक्ति को दिखाया गया था जिसे एक शेर काट लेता है और इसकी वजह से पूर्णिमा की रात वह व्यक्ति शेर के रूप में बदल जाता था!

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एक मैसेज के साथ नए दौर की हॉरर कॉमेडी फिल्में

बॉलीवुड में हॉरर कॉमेडी की लोकप्रियता बढ़ने की एक वजह यह भी है कि ये फिल्में अपनी डरावनी कहानियों के साथ-साथ सामाजिक संदेश भी लेकर आती हैं. अमर कौशिक की स्त्री, हार्दिक मेहता की रूही और यहां तक ​​कि भेड़िया भी इस तरह की फिल्मों का बेहतरीन उदाहरण हैं.

राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर स्टारर स्त्री कर्नाटक की नाले बा लोककथाओं पर आधारित है. यह फिल्म उन शारीरिक और मानसिक पीड़ाओं को बड़े पर्दे पर दर्शाती है, जिनका सामना हर दिन महिलाएं अपने जीवन में करती हैं. स्त्री एक सच्ची नारीवादी (फेमिनिस्ट) कहानी है, जिसमें स्त्रियाें (महिलाओं) में व्यापक भय और सुरक्षा की कमी से लेकर समाज में मिलने वाले अपमानजनक व्यवहार तक और हंसी से रोंगटे खड़े करने वाला डर भी शामिल है. इस वजह से इस फिल्म ने मनोरंजन का एक अद्भुत स्रोत बनने के अलावा अपने दर्शकों के साथ एक करीबी नाता भी बना लिया.

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स्त्री फिल्म का एक स्टिल शॉट

फोटो साभार : IMDb

वहीं दूसरी ओर, रूही नारीवाद (फेमिनिज्म) और आत्म-स्वीकृति (सेल्फ एक्सेप्टेंस) की एक शानदार व्याख्या थी. जाह्नवी कपूर और राजकुमार राव स्टारर यह फिल्म एक काल्पनिक गांव की कहानी पर आधारित है, जहां शादी के लिए लड़कियों का अपहरण करना एक आम प्रथा है. रूही में इसी मुद्दे को फोकस किया गया है, फिल्म में एक सामान्य महिला होती है जिसके शरीर में मुदियापैरी नामक एक घातक चुड़ैल की आत्मा आ जाती है. इस महिला का अपहरण एक गुंडे के लिए काम करने वाले दो पुरुषों द्वारा कर लिया जाता है.

मुदियापैरी, उल्टे पैरों वाली एक स्थानीय चुड़ैल है. यह शादी करने की अपनी अतृप्त इच्छा को पूरा करने के लिए हनीमून की रात में युवतियों का अपहरण कर लेती है.

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रूही फिल्म के स्टिल शॉट में राजकुमार राव, जाह्नवी कपूर और वरुण शर्मा 

फोटो साभार : IMDb

फिल्म में रूही को बार-बार आश्वासन दिया जाता है कि शादी करने से वह ठीक हो जाएगी, उसके अंदर की आत्मा निकल जाएगी. ऐसा करने के लिए, अहपहणकर्ता रूही को शहर के सबसे अच्छे ओझाओं और झाड़-फूंक करने वालों के पास ले जाते हैं. लेकिन जो चौंकाने वाली बात सामने निकल कर आती है वह यह कि रूही एक आदमी से शादी करने के बजाय मुदियापैरी के साथ जीवन भर रहने का फैसला करती है. रूही पवित्र अग्नि के चारों ओर सात फेरे पूरा करती है और खुद से शादी करके आत्म-प्रेम को चुनती है.

रूही फिल्म एक महिला के खुद के साथ संबंधों के बारे में एक शक्तिशाली ड्रामा होने के साथ-साथ पितृसत्तात्मक समाज पर एक करारा व्यंग्य भी है, जहां एक महिला को विवाह नामक संस्था द्वारा आंका जाता है. ऑन स्क्रीन राक्षसों के साथ-साथ समाज में मौजूद राक्षस रूपी मुद्दों और समास्याओं के जरिए यह फिल्म अपने दर्शकों को डराने की क्षमता रखती है.

वहीं दूसरी ओर भेड़िया प्रकृति VS विकास की डिबेट में गहराई से डूबी हुई है.

नए दौर वाला यह एप्रोच इस समय बॉलीवुड में हॉरर कॉमेडी जेनर के लिए चमत्कार जैसा साबित हो रहा है. लेकिन चमत्कार कब तक होता रहेगा? यह दर्शक तय करेंगे.

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