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बॉलीवुड फिल्मों में किस तरह बदलते गए समलैंगिक किरदार

बॉलीवुड फिल्मों में होमोसेक्शुएलिटी कोई नई चीज नहीं है.

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बॉलीवुड फिल्मों में होमोसेक्शुएलिटी कोई नई चीज नहीं है. कई फिल्मों में समलैंगिक किरदारों को दिखाया गया है, लेकिन अक्सर वो किरदार केवल मजाक के पात्र बनकर उन फिल्मों में रह गए.

दीपा मेहता की फिल्म ‘फायर’ में शबाना आजमी और नंदिता दास ने लेस्बियन का किरदार निभाया था. इस फिल्म को पूरी संवेदनशीलता के साथ बनाया गया, लेकिन फिल्म रिलीज होने के बाद इस पर काफी बवाल हुआ. इसके बाद आई बॉलीवुड फिल्मों में ऐसा लगा कि गे कैरेक्टर्स केवल ‘एंटरटेनमेंट’ के लिए हैं.

फिर चाहे वो शाहरुख खान और सैफ अली खान की ‘कल हो न हो’ हो या फिर साल 2007 में आई अभिषेक बच्चन और जॉन अब्राहम की ‘दोस्ताना’. इन फिल्मों में होमोसेक्सुअल किरदार केवल हंसी-मजाक के लिए थे.

लेकिन वक्त बदला, तो साथ-साथ बॉलीवुड फिल्में भी बदलीं. 'बॉम्बे टॉकीज', 'मार्गरिटा विद अ स्ट्रॉ' 'कपूर एंड संस' में संवेदनशीलता के साथ दिखाई गई थी होमोसेक्शुएलिटी. ‘कपूर एंड संस’ में जिस तरह से फवाद खान का कैरेक्टर दिखाया गया था, उसकी खूब तारीफ भी हुई थी.

फिर हाल ही में आई सोनम कपूर की फिल्म 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' में समलैंगिकता मेनस्ट्रीम सिनेमा में दिखाई गई. इस फिल्म में सोनम और रेजिना लेस्बियन बनी हैं. एक बड़ी बॉलीवुड सेलेब्रिटी का यूं मेनस्ट्रीम फिल्म में लेस्बियन प्ले करना बड़ी बात है.

इससे पता चलता है कि वक्त के साथ-साथ बॉलीवुड अब वाकई बदल गया है. अब फिल्मों में होमोसेक्शुअल्स किरदार, सिर्फ मजाक के लिए नहीं हैं!

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