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नहीं रहे संगीतकार खय्याम, 92 साल की उम्र में निधन

अपने 4 दशक लंबे करियर में खय्याम ने एक से बढ़कर एक गाने बनाए.

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भारतीय सिनेमा के दिग्गज संगीतकार खय्याम नहीं रहे. सोमवार देर शाम को 92 साल की उम्र उनका निधन हो गया. पिछले कुछ अरसे से खय्याम बीमार चल रहे थे. पिछले हफ्ते फेफड़ों में संक्रमण के चलते उनको मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जिसके बाद से उनकी हालत में सुधार नहीं आया था, और वे आईसीयू में भर्ती थे. पिछले कुछ दिनों से उनकी हालत नाजुक बताई जा रही थी. डॉक्टर की एक टीम उनकी निगरानी कर रही थी. लेकिन अफसोस कि उन्हें बचाया नहीं जा सका. डॉक्टरों के मुताबिक आज इलाज के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जिससे रात करीब साढ़े नौ बजे उनका निधन हो गया. खय्याम के निधन से बॉलीवुड में शोक की लहर है.

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पीएम मोदी ने जताया शोक

खय्याम के निधन पर शोक जताते हुए पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, "सुप्रसिद्ध संगीतकार खय्याम साहब के निधन से अत्यंत दुख हुआ है. उन्होंने अपनी यादगार धुनों से अनगिनत गीतों को अमर बना दिया. उनके अप्रतिम योगदान के लिए फिल्म और कला जगत हमेशा उनका ऋणी रहेगा। दुख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके चाहने वालों के साथ हैं."

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खय्याम का पूरा नाम मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी था लेकिन फिल्म जगत में वे खय्याम के नाम से मशहूर हुए. अपने 4 दशक लंबे करियर में खय्याम ने एक से बढ़कर एक गाने बनाए. उन्हें 1977 में 'कभी कभी' और 1982 में 'उमराव जान' के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला. साल 2010 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया. इसके अलावा साल 2007 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी, पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. 2011 में उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया.

बॉलीवुड को दिए संगीत के बेमिसाल नग्में

18 फरवरी 1927 को पंजाब के जालंधर जिले के राहों गांव में पैदा होने वाले खय्याम ने संगीतकार के तौर पर अपने करियर की शुरुआत 1948 में फिल्म ‘हीर रांझा’ की थी. 'वो सुबह कभी तो आएगी', 'जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें', 'बुझा दिए हैं खुद अपने हाथों, 'ठहरिए होश में आ लूं', 'तुम अपना रंजो गम अपनी परेशानी मुझे दे दो', 'शामे गम की कसम', 'बहारों मेरा जीवन भी संवारो' जैसे कई गानों में खय्याम ने अपने संगीत से चार चांद लगाए.

खय्याम ने पहली बार फिल्म 'हीर रांझा' में संगीत दिया लेकिन मोहम्मद रफी के गीत 'अकेले में वह घबराते तो होंगे' से उन्हें बॉलीवुड में पहचान मिली. इसके बाद फिल्म 'शोला और शबनम' ने उन्हें संगीतकार के तौर पर स्थापित कर दिया.

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