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‘तेरे नाम’ से ‘कबीर सिंह’ तक, हमेशा महिला ही गलत और बेबस क्यों?

कबीर सिंह जैसी कुछ 8 फिल्में जो महिलाओं के किरदार को दबा हुआ दिखाती है 

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बॉलीवुड में लंबे समय से महिलाओं के खिलाफ फिल्में बनती रही हैं. उनकी कहानियों में औरत का एक परेशान युवती का किरदार निभाना आम बात है, जिसकी जिंदगी पर आदमी का ही कंट्रोल रहता है. उन महिलाओं के साथ अक्सर असंवेदनशील, मजाकिया और आपत्तिजनक व्यवहार किया जाता है. उनके कैरेक्टर में भी कोई खास बात नहीं होती, ऐसा लगता है जैसे उनके किरदार में गहराई की कमी होती है. आदमी उनके साथ गलत व्यवहार करके भी चले जाते हैं, जिसे लोग कभी-कभी 'कूल', 'पैशनेट' और 'हीरोइक' मान लेते हैं.

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एक महिला का पीछा करना उसे गाली देना, उसपर हाथ उठाना और उसका रेप करना हमारे हीरो यही सब तो कर रहे हैं, जिसे सराहा भी जा रहा है. जिसका ताजा उदाहरण शाहिद कपूर की फिल्म 'कबीर सिंह', जिसमें खुल्लम-खुल्ला एक औरत के साथ जबरदस्ती करते हुए दिखाया गया है- लेकिन क्या बॉलीवुड में ये नया ट्रेंड है? बॉलीवुड में हो रहे भेदभाव और लैंगिक असमानता के लंबे इतिहास को ध्यान में रखते हुए हम आपको बताते हैं कुछ और ऐसी ही फिल्मों के बारे में

1. रांझणा (2013)

एक आदमी के लिए बुरा क्या हो सकता है? यही कि वह जिससे प्यार करे वो उसे कोई भाव ना दे. सोनम कपूर स्टारर 'रांझणा' भी कुछ ऐसी ही थी. यह हमें उस कैरक्टर से प्यार करने को मजबूर करती है जो एक लड़की का पीछा करता है. उसके रिक्शे का पीछा करना, उसे तंग करना और अगर वह उस पर कोई ध्यान ना दे तो खुद को जान से मारने की धमकी देना. यह सब कुछ भुला दिया जाता है, क्योंकि "यूपी में लड़की पटाने का यही एक तरीका है". 'रांझणा' एक ऐसा उदाहरण है जो प्यार को गलत तरीके से दिखाता है. फिल्म ये दिखाती है कि एक लड़की को डरा- धमका के, उसे खुद से प्यार करने को मजबूर करना सही है, जो सवाल उठाने लायक है.

2. प्यार का पंचनामा 2 (2011)

फिल्म ‘प्यार का पंचनामा’ में औरतों को इस तरह से दर्शाया गया है कि वो अपने मतलब के लिए मर्दों को बेवकूफ बनाती हैं. इस में सबसे ज्यादा हूटिंग उस पर होती है जब कार्तिक आर्यन लड़कियों को लेकर अपनी एक लंबी सी स्पीच देते हैं. स्पीच में वो यह बताते हैं कि कैसे औरतें आदमियों के साथ बुरा बर्ताव करती हैं, कैसे उन्हें तंग करती हैं. पंचनामा सीरीज की दोनों फिल्मों में औरत का कैरेक्टर झूठा, बात-बात पर बदलने वाला और नफरत करने लायक दिखाया गया है.

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3. कुछ-कुछ होता है (1998)

'कुछ-कुछ होता है' में शाहरुख खान का किरदार एक लड़की से दूसरी लड़की की तरफ भागता रहता है. वह अपनी बेस्टफ्रेंड को इग्नोर करता है, क्योंकि वह उसको खूबसूरत नहीं लगती. फिर बाद में वह उसी के प्यार में पड़ जाता है, जब वो खुले लंबे बालों और साड़ी में लिपटी हुई खूबसूरत अंजली को देखता है.

वह अंजली (काजोल) की ओर आता है जबकि वो उसे कह चुका होता है कि "वह बाकी लड़कियों की तरह नहीं है." जिस पर अंजली जवाब देती है,"हां, क्योंकि बाकी लड़कियां स्टूपिड होती हैं." कॉलेज का प्रिंसिपल लड़कियों को स्कर्ट पहनने से मना करके उनके माता-पिता को बताने की धमकी देता है, क्योंकि इससे वो लड़कों को लुभा रही होती हैं. फिल्म में हर जगह नारी के साथ भेदभाव दिखाया गया है, लेकिन फिर भी हम राहुल को सिंपल मानते हैं, क्योंकि वह हमें यकीन दिला देता है कि वह परफेक्ट है.

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4. तेरे नाम (2003)

ओह मैन, अगर यह फिल्म आपके रोंगटे खड़े नहीं करती तो पता नहीं कौन सी फिल्म करेगी. सलमान का किरदार राधे इस फिल्म में सीधी-सादी सी एक लड़की को धमकाता है,उसे परेशान करता है और उसे डराता है, जबकि यह फिल्म किसी भावुक प्यार को दर्शाने की कोशिश करती है. वह कॉलेज की लड़की का हर जगह पीछा करता है, उसे रोज डराता है, उससे खाना मंगवाता है और वह लड़की चुपचाप उसकी सारी बातें मानती है.

याद है आपको तेरे नाम आने के बाद ढेर सारे युवा बीच की मांग वाली हेयरस्टाइल बनाने लगे थे. लेकिन डरावनी बात ये थी कि ‘राधे’ के फैन्स ने सिर्फ उनकी हेयरस्टाइल ही कॉपी नहीं की, उनके किरदार को भी कॉपी किया.

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5. सोनू के टीटू की स्वीटी (2018)

मिस्टर लव रंजन किसी लड़की को पसंद नहीं करते. ये फिल्म हर टूटे-दिल लड़के को एक सुपर हीरो जैसा होने की फीलिंग दिलाती है, और हर औरत उसे झूठी, मक्कार और विलेन नजर आती है. एक लड़ाई अपने बेस्ट फ्रेंड और दुल्हन के बीच में. बुरा कौन है? अनुमान लगाओ.

मंगेतर बुरी है, एक ऐसी औरत जो उसके दोस्त के साथ लड़ती रहती है, लेकिन उसके सामने भोली और स्वीट बन जाती है. क्या यही उसका असली रूप है? असल में तो नहीं. वह एक प्वाइंट पर बताती है कि कैसे वह अपने मंगेतर को सेक्स के लिए मना लेगी ताकि वह उसको कभी छोड़ के जा ना सके (अगर वह छोड़ कर जाए तो उसे शादी से पहले रेप के जुर्म में अंदर करा दे.) बेसिकली वह ये दिखाना चाहते हैं कि महिलाएं कितनी बुरी होती हैं, जो अपना प्वाइंट साबित करने के लिए कुछ भी कर सकती हैं.

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6. पद्मावत (2018)

एक औरत खुद को और अपने उसूलों को बचाने के लिए आग में क्यों नहीं जल सकती? जबकि फिल्म एक ऐतिहासिक ड्रामा है, लेकिन सवाल ये यह है कि कानूनी तौर पर सती प्रथा पर पाबंदी के बावजूद फिल्म में इसका महिमामंडन क्यों किया गया?

पहले औरतें अपने पति की चिता के साथ सती हो जाती थीं, वैसी ही चीज को यहां बहादुरी और ताकत दिखाया गया है. अंतिम दृश्य को इतना भव्य और सुंदर दिखाया गया है, ऐसा म्यूजिक लगाया गया है कि सबकुछ बहादुरी भरा और बढ़िया लगता है, जैसे कि यह कुछ ऐसा है जो दर्शकों के लिए प्रेरणा हो सकता है.

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7. हैप्पी न्यू ईयर (2014)

'हैप्पी न्यू ईयर' एक ऐसी फिल्म है, जो कोई मायने नहीं रखती, लेकिन वास्तव में फिल्म में उ सेक्सिज्म है. शाहरुख खान इस फिल्म में दीपिका को प्रास्टिटूट बुलाते हैं क्योंकि वह डांस करती हैं. एक बार ही नहीं, बल्कि बार-बार बुलाते हैं. हालांकि फिर वह उसके प्यार में पागल होती जाती है क्योंकि वह इंग्लिश बोलता है और चार्मिंग है. बॉलीवुड का हर बार महिला को कमजोर दिखाने का क्या मतलब है? हम अपनी लीडिंग लेडी को अपने आत्मविश्वास के साथ क्यों नहीं दिखाते? और हम इस तरह के धमाकेदार सेक्सिस्ट चरित्रों को कैसे फिल्म अभिनेता के रूप में, फिल्म निर्माता के रूप में विकसित करना चाहते हैं?

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8. ऐ दिल है मुश्किल (2016)

लड़की लड़के से प्यार नहीं करती तो उसे कैंसर हो जाता है. पूरी फिल्म के दौरान चार्मिंग रणबीर कपूर लड़की को परेशान करते रहते हैं, जवाब न मिलने पर सालों तक उसका पीछा करते रहते हैं ... लेकिन क्या फिल्म यही खत्म होती है? तब तक नहीं, जब तक कि हम गंजी अनुष्का शर्मा को मरते हुए, बेबस ना देख लें, जबकि रणबीर उनके साथ खड़ा है. यह फिल्ममेकर्स के लिए फिल्म में बिना किसी प्यार के दर्शकों को प्रदान करने वाला क्लोजर बन जाता है - अगर वह उससे प्यार नहीं कर सकती, तो उसे मर जाना चाहिए.

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