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रिव्यू: हुमा कुरैशी की ‘लीला’ भ्रम की दुनिया से बाहर निकालती है

‘लीला’ कहानी है एक मां की जो अपनी बेटी को बचाने के लिए आर्यवर्त राज्य के खिलाफ बगावत के लिए तैयार है 

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कई बार, आप किसी शो को देखते हैं, तो आप एक तो उसकी कला की तारीफ करतें हैं, दूसरा उसके अंदर छुपे मैसेज की. प्रयाग अकबर के नॉवेल पर बेस्ड और हुमा कुरैशी स्टारर नेटफ्लिक्स का नया शो 'लीला' जो एक अलग ही दुनिया के बारे में है, जहां लोग धर्म के नाम पर किसी की भी बलि चढ़ाने को तैयार रहते हैं. यह एक ऐसा शो है, जिसे आप अपने दोस्त के रूप में पसंद करेंगे.

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यह एक ऐसा शो है, जो आपको भ्रम की दुनिया से निकालेगा और आपके आसपास की चीजों की वास्तविकता को लंबे समय तक याद रखने में आपकी मदद करेगा. उनको अपने अंदर समाने के लिए, उनको महसूस करने के लिए, उनसे डरने के लिए. एक ऐसी चेतावनी जो आपने कभी नहीं सुनी होगी. 'लीला' हमें याद दिलाती है कि हमारी सच्चाई क्या बन सकती है और कैसे धीरे-धीरे, हम इसकी ओर चले जा रहे हैं.

'लीला' कहानी है शालिनी (हुमा कुरैशी) की, जिसने आर्यवर्त राज्य में एक मुस्लिम आदमी से शादी कर ली है. यहां लोग पानी, साफ हवा के लिए लड़ रहे हैं और सरकार की तरफ से सामुदायिक स्वच्छता अभियान भी चलाया जा रहा है. हम देखते हैं कि शालिनी अपनी बच्ची और पति के साथ पूल में इंज्वॉय कर रही है, जबकि शहर को लोग पीने के पानी और सांस लेने के लिए ताजी हवा को तरस रहे हैं. आर्यवर्त के गार्ड घर में घुसते हैं और शालिनी को उसके लग्जरी घर से निकालकर शुद्धिकरण कैंप ले जाते हैं. उसके पति को मर्डर कर दिया जाता है और उसकी बेटी 'लीला' को उससे अलग कर दिया जाता है.

शालिनी की अधिकारों वाली रियलिटी रेंत की तरह उसकी उंगलियों से फिसल जाती है. वह जल्द ही आर्यवर्त में एक गुलाम बन जाती है, एक ऐसा इंसान जिसका दुनिया से कोई वास्ता नहीं है और जिसको वापस जाने के लिए अपनी “पवित्रता” साबित करनी होगी.

इस कैंप में महिलाओं को आर्यवर्त कंट्रोल करते हैं. उनका जीवन सिर्फ आर्यवर्त को समर्पित नहीं था, बल्कि ऐसा बन गया है. वो हर वक्त उनकी प्रशंसा में नारे लगाते रहते हैं. उन्हें उनके नाम, उनके जीवन, उनके स्वाभिमान, उनकी आशाओं और सपनों को छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है ताकि वो पूरी तरह खुद को राज्य के लिए समर्पित कर दें.

हुमा कुरैशी बेहतरीन हैं, उनका शो में होना उतना ही रियल है जैसा स्क्रीन पर दिखता है. उसके इमोशन और संवेदना, उनका गुस्सा और डर, उसकी जीने की चाह.... हर एक्ट आपको अपनी प्रजेंट रियालटी से जोड़ेगा और आपको ये सोचने को मजबूर कर देगा- "क्या होगा अगर मैं ये सब खो दूं?"

शो में हुमा एक दर्शक की तरह है, वह आपका पार्ट निभाती हैं, वीडियो गेम के पहले कैरेक्टर की तरह. वह एक ऐसा व्यक्ति है जो दुनिया में गरीबी और दर्द से दूर, अपने विशेषाधिकार के बुलबुले में जी रहा था- जब तक सब कुछ बदल नहीं गया.

जब वह वहां से भागने की ठान लेती है, हम शालिनी को अपनी बेटी लीला को वापस लाने का संकल्प लेते हुए देखते हैं. यह शो का मेन प्लॉट बन गया है जो बाकि के तीन एपिसोड में पता चलेगा.

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अपनी बेटी को वापस लाने की शालिनी की ये लड़ाई आजादी की, सम्मान की और स्वतंत्रता की लड़ाई बन जाती है. फोर्स के खिलाफ एक छोटा सा विद्रोह जो वह मुश्किल से अपनी आंखों में देख पाती, यह उसका खुद को तलाशने का तरीका बन जाता है.

एक्टर सिद्धार्थ, जिसने आर्यवर्त के लेबर गार्ड का रोल प्ले किया है, वह शानदार है. वो अपनी ड्यूटी निभाता है, वह हेल्प नहीं कर सकता, लेकिन आप उसको शालिनी की तरफ हमदर्दी भरी नजरों से एक झलक देखते हुए नोटिस कर सकते हैं. इससे कहानी और दिलचस्प हो जाती है- क्या वह आखिरकार उसकी मदद करेगा या अपने आदर्शों से ही चिपका रहेगा?

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धर्म और सरकार एक दूसरे में मिल गए हैं. यह पुरुष प्रधान वर्ल्ड सोसाइटी के कमजोर लोगों को दबाने में लगा रहता है, लोगों का पानी के लिए खून कर दिया जाता है. बोलने की आजादी तो जैसे है ही नहीं, परिवार के लोग राज्य में अपनी वफादारी साबित करने को लिए एक दूसरे को मारने लगते हैं.

राज्य की हवा में सिर्फ डर है - शो का वंडर्फुल डायरेक्शन और टॉप प्रोडक्शन पूरे शो को रोमांचक बनाता है. आप मदद नहीं कर सकते, लेकिन हमारी आस-पास की चीजों को उनके जैसा मान सकतें हैं और फिर शो आपको ये सोचने पर मजबूर कर देगा कि क्या सही है, क्या गलत. सभी के लिए पानी और साफ हवा की कमी आपको कहां ले जा सकती है, ये भेदभाव वाला समाज जीवन को कैसे बदल सकता है और आखिरकार, हमें इसके लिए क्या करना चाहिए.

यह शो एक्सट्रीम सिचुएशन पर प्रेजेंट किया गया है, लेकिन यह आपको ये सोचने पर मजबूर कर देगा कि हम इसे अपनी रियेलिटी बनाने के कितने करीब पहुंच गए हैं. हम इसकी तरफ धीरे-धीरे नहीं बल्कि तेजी से बढ़ रहे हैं. कुछ भी हो, 'लीला' ग्राउंड ब्रेकिंग है, जो बिल्कुल मिस नहीं करनी चाहिए.

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