ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारतीय फिल्मों मे महिलाओं को हमेशा ‘अबला’ ही दिखाया जाता है: तापसी

थप्पड़ फिल्म मे अपने किरदार पर बोली तापसी , इज्जत और खुशियां हर इंसान की जरूरत है

Published
story-hero-img
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

तापसी पन्नू, दीपिका पादुकोण, तिलोतमा शोम और झानवी कपूर का अपनी फिल्मों, थप्पड़ , छपाक , सर और गुंजन सक्सेना मे निभाए अपने किरदारों के बारे मे कहना है कि हमने अपनी मर्यादा और गौरव को अपने किरदारों की ‘स्वयं पर दया’ वाली भावना से बिल्कुल अलग रखा है. हमारा गौरव हमारे किरदारों की भावना से बिल्कुल अलग है. चारों ऐक्ट्रेससेस , फिल्म क्रिटिक राजीव मसनद के शो ‘ऐक्ट्रेससेस राउन्ड टेबल 2020’ का हिस्सा थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भारतीय फिल्मों मे महिलाओं के किरदारों पर तापसी

किसी भी भारतीय फिल्म मे अगर कोई महिला का किरदार है तो उसमे उस महिला का उत्पीड़न जरूर दिखाया जाता है. हम सब हमेशा यही सब देखते हुए बड़े हुए कि फिल्म मे या तो एक महिला ‘अबला नारी’ होगी या फिर वो एक ‘वैम्प’ ( बुरा विचारों वाली ) होगी. शायद ही एसी कुछ चीज़े है जिनके बीच हम फिल्मों मे महसूस करते हैं और वास्तविक लगते है.’

तापसी का कहना ही कि किसी पीड़ित के किरदार की भी एक हद होती है, यह जरूरी है की पीड़ित के अलावा भी उसके किरदार मे और विशेषताएं हों. “जब आप किसी बात या किसी हादसे के शिकार हुए हो, तो आपने उस हादसे से क्या सीखा?” आपको यह पता होना चाहिए की आपके लिए आपका गौरव हो सब कुछ है , तभी आप अपने किरदार को और अच्छे से निभा पाएंगे.

तापसी ने कहा कि, थप्पड़ फिल्म के बारे मे मैं सोचती हूं कि ‘अमृता को सिर्फ इज्जत और सम्मान चाहिए था’ लेकिन हकीकत मे हमने इज्जत के साथ साथ खुशियां भी चाहिए. और मुझे खुशी है कि लोग धीरे धीरे इस बात पर ध्यान दे रहें है.

0

दीपिका बोलीं-

छपाक फिल्म से अपने मालती के किदार पर दीपिका का राजेव से कहना है कि ‘ जब भी कभी गौरव और सम्मान की बात आती है, वो हमेशा से मेरे अंदर है, और मैं उनमें से नहीं हूँ जिन्होंने दया और सहानुभूति हासिल करने के लिए कभी कुछ किया हो. अपने किरदार की जिंदगी को अच्छे से जानने और समजने के लिए मुजे उनके साथ सहानुभूति दिखानी पड़ती है. तो यह को क्यों नहीं समझ जाता ? , हर बार बात ‘दया की भावना’ के साथ ही सामने क्यों आती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

तिलोतमा शोम का भी इस बारे मे यही कहना है, ‘सर फिल्म से अपने रत्ना के किरदार के बारे मे उन्होंने कहा कि रत्ना ‘दया’ नहीं चाहती है क्योंकि वो अपने आप को पीड़ित मानती ही नहीं है और इसलिए वो अपनी ज़िंदगी में बहुत खुश है. तिलोतमा को रत्ना से बहुत कुछ सीखना है. मुझे खुद ही अपने सम्मान और इज्जत पर शक होता है. मुझे एसे किरदारों को निभाना बहुत अच्छा लगता है जनसे मुझे ज़िंदगी जीने की सीख मिलती है.

शोम का कहना है की ‘हमें तो अमीरों पर दया करनी चाहिए जो की एकी छोटी मानसिकता को अपने मन मे बिठाए रखते है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

“जहां तक सम्मान की बात है , यह कोई उनकी जागीर नहीं है. एसे बहुत से लोग है जिनके पास भरपूर पैसा है लेकिन उनकी जरा भी इज्जत नहीं है. इज्जत कमानी पड़ती है. मुझे तो लगता है की अमीरों को अपने ऊपर दया आनी चाहिए कि उन्होंने रत्ना को इस नजर से देखा और कहा कि “वाह ! एक तो यह गरीब काम वाली बाई है और इसके इतने बड़े सपने है”. मुझे तो उनके इस विचार पर दया आती है कि वो यह सोचते है, कौन सपने देखने का हकदार है और कौन नहीं.

“जहां तक सम्मान की बात है , यह कोई उनकी जागीर नहीं है. एसे बहुत से लोग है जिनके पास भरपूर पैसा है लेकिन उनकी जरा भी इज्जत नहीं है. इज्जत कमानी पड़ती है. मुझे तो लगता है की अमीरों को अपने ऊपर दया आनी चाहिए कि उन्होंने रत्ना को इस नजर से देखा और कहा कि “वाह ! एक तो यह गरीब काम वाली बाई है और इसके इतने बड़े सपने है”. मुझे तो उनके इस विचार पर दया आती है कि वो यह सोचते है, कौन सपने देखने का हकदार है और कौन नहीं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

झानवी कपूर का भी अपने गुंजन सक्सेना के किरदार पर यही कहना है कि उनका मकसद भी यही था की वो भी लोगों की इस पुरानी धारणा को खत्म कर दें कि महिलाओं को दया की नजर से देखा जाना चाहिए.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×