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'The Kashmir Files'पलायन की दर्दभरी कहानी,हर संवाद से रिसते हैं 3 दशक पुराने घाव

विवेक अग्निहोत्री की फिल्म कश्मीरी पंडितों के तीन दशक पुराने जख्म और अनसुलझे सवालों का एक भयावह चित्रण है.

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'कश्मीर'- एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही लोगों के दिलो-दिमाग में वहां की खूबसूरत तस्वीरें फ्लैश करने लगती है. जितना खूबसूरत कश्मीर है, उससे ज्यादा बदसूरत उसका इतिहास है. उसी इतिहास का एक अध्याय कश्मीरी पंडितों का पलायन भी है. यूं तो कश्मीर पर कई फिल्में बनीं है. लेकिन आज-कल जो सबसे ज्यादा चर्चा में है, वो है डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री की नई फिल्म- The Kashmir Files.

विवेक अग्निहोत्री की फिल्म The Kashmir Files, कश्मीरी पंडितों के तीन दशक पुराने घाव, जो अब तक भरे नहीं हैं और अनसुलझे सवालों का एक भयावह चित्रण है. इस विलक्षण दुनिया में कश्मीर कई विपरीत दृश्यों और भावनाओं को अपने में समेटे हुए है. मनमोहक सुंदरता से लेकर निर्दोष लोगों का दर्द इसका हिस्सा है. आतंकवाद, नरसंहार, मानवाधिकार का उल्लंघन, यहां की प्राचीन संस्कृति के लिए खतरा बने हुए हैं.
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कश्मीर को राजनीति से अलग करना असंभव है. ठीक वैसे ही जैसे, सदियों पुरानी कश्मीर के इतिहास को एक फिल्म में समेटना. The Kashmir Files, कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा और उन घटनाओं पर आधारित है जिसकी वजह से लाखों लोग रातों-रात कश्मीर से बेघर हो गए थे.

फिल्म के एक सीन में IAS ब्रह्म दत्त (Mithun Chakraborty) कहते हैं कि, यह पलायन नहीं बल्कि नरसंहार है. यह लाइन फिल्म में कई बार सुनने को मिलती है. पुष्कर नाथ पंडित (Anupam Kher) भी इस बात का समर्थन करते हैं, जब वह अपने पोते कृष्ण (Darshan Kumar) को यह बताने की कोशिश करते हैं कि उन्हें एक समुदाय और परिवार के रूप में क्या कुछ सहना पड़ा है.

यह फिल्म कश्मीर की सच्ची घटनाओं और उन पीड़ित कश्मीरी पंडितों के जीवन पर आधारित है जिन्होंने अत्याचार और भयावह हिंसा देखी और झेली. यह कोई छोटी-मोटी घटना नहीं थी, जिसकी वजह से कश्मीरी पंडितों को रातों-रात अपना घर छोड़ना पड़ा, बल्कि इसे तत्कालीन सरकार का मौन समर्थन भी था.

फिल्म फ्लैशबैक और वर्तमान में चलती हुई धीरे-धीरे कहानी की भयावहता को दर्शाती है. फिल्म में उदय सिंह मोहिते (Uday Singh Mohite) ने अपनी cinematography से कश्मीर की असाधारण सुंदरता और झकझोर देने वाली हिंसा को बेहतरीन ढंग से फिल्माया है. कुछ दृश्य दिल दहला देने वाले हैं, लेकिन जो बात और भी अधिक परेशान करने वाली है, वह यह है कि ये वास्तविक घटनाओं पर आधारित है.

इंटरवल से पहले फिल्म में 1990 के दशक में कश्मीर में हुई घटनाओं को दिखाया गया है, जिसकी वजह से पंडितों का नरसंहार हुआ और उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा. तो दूसरे में पुष्कर नाथ पंडित (Anupam Kher) के पोते कृष्ण (Darshan Kumar) के दिगाम में चल रही द्वंद को दिखाती है. उसे समझ में नहीं आता है कि कश्मीर को लेकर वो अपने दादा की बातों पर विश्वास करे या फिर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों की बातों पर, क्योंकि दोनों बातें एक दूसरे के विपरीत है.

कश्मीर पर जब भी फिल्म बनेगी वो राजनीतिक होगी, जिसमें दो विरोधाभाषी विचारधाराएं आमने-सामने होंगी. फिल्म में कृष्ण (Darshan Kumar) एक कन्फ्यूज्ड लड़का है जिस न तो अपने और न ही उसके परिवार के इतिहास के बारे में पता है. उसे खुद सच्चाई का पता लगाना होगा.

हम जिस दुनिया में रहते हैं वहां हर चीज राजनीति से प्रेरित होती है. अग्निहोत्री ने बड़ी चतुराई से दोनों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा किया है.

AMU में आजादी के नारे (जो JNU की घटना की याद दिलाते हैं), बेनजीर भुट्टो के वीडियो और फैज की नज्म 'हम देखेंगे' के बहाने निर्देशक आतंकियों और अलगाववादियों के इरादे जाहिर करते हुए नई पीढ़ी की उलझन को सामने लाते हैं.

पुष्करनाथ के दोस्त, IAS ब्रह्म दत्त, DGP हरि नारायण (Puneet Issar), पत्रकार विष्णु राम (Atul Shrivasta) और डॉ. महेश कुमार (Prakash Belawadi) उस दुखद बात की याद दिलाते हैं कि कैसे स्थानीय प्रशासन, पुलिस और यहां तक ​​कि मीडिया मूकदर्शक बना रहा और कश्मीरी पंडितों को बचाने के लिए कुछ नहीं किया गया. प्रोफेसर राधिका मेनन के किरदार में पल्लवी जोशी (Pallavi Joshi) को वामपंथी, अलगाववादियों की हमदर्द के रूप में दिखाया गया है.

The Kashmir Files फिल्म में कुछ बेहतरीन एक्टिंग देखने को मिलती है. बेहतरीन बैकग्राउंड स्कोर से कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार और हिंसा का दर्द छलक पड़ता है.

इस फिल्म में अनुपम खेर (Anupam Kher) का अभिनय हाई पॉइंट है. पुष्कर नाथ पंडित के रूप में अनुपम ऐसे शख्स की पीड़ा को पर्दे पर उतारते हैं, जो अपनी जमीन और घर से बेदखल होने के बाद पूरी जिंदगी फिर से वहां जाने का ख्वाब देखता है. एक्टिंग में चिन्मय मंडलेकर, भाषा सुंबली, पल्लवी जोशी और दर्शन कुमार सभी शानदार हैं.

डल झील के ऊपर शांति से तैरते शिकारा के दृश्य यह याद दिलाते हैं कि आंसूओं और निराशा में डूबे घाटी के लोगों को कैसे राजनीतिक साजिशों ने अनाथ कर दिया. इतने सालों में हमने कश्मीर की खूबसूरती से लेकर लेकर निर्दोषों की हत्या, मानवाधिकारों के उल्लंघन, लापता लोगों और लावारिस शवों तक के कई रंग देखे हैं. कश्मीरी पंडितों को जिस आघात और विश्वासघात का सामना करना पड़ा है वह देखने और समझने के लायक है. आज दुनिया में हर चीज को किसी न किसी विचारधारा के चश्मे से देखा जाता है. कश्मीरी पंडित समुदाय आज भी न्याय का हकदार है. The Kashmir Files कश्मीरी पंडितों की आवाज बुलंद करती है.

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