एक फौजी की नजरें उसकी मां का आखिरी दीदार कर रही है. खुलते दरवाजे की कराहती आवाज के साथ दाखिल होती किरणें... मौत के आगोश में आराम फरमाते उस चेहरे को रोशन कर रही हैं जिसका जिस्म आन बान शान के साथ तिरंगे में सुकून से लिपटा हुआ है. ये जिस्म है कश्मीर की बेटी सहमत खान जिसकी वजह से पाकिस्तान को युद्ध हराने में कामयाबी मिली.
ये उस किताब की सिरहन पैदा कर देने वाली चंद लाइने हैं, जो देश पर मर मिटने का जज्बा रग-रग में भर देती हैं. सहमत... ये नाम उसे रिटायर्ड नेवी ऑफिसर हरिंदर सिक्का ने दिया. ये एक भारतीय अंडरकवर एजेंट की सच्ची कहानी है, जिस पर लिखी किताब ‘कॉलिंग सहमत’ इन दिनों हलचल मचाए हुए है.
फिल्म तलवार के बाद डायरेक्टर मेघना गुलजार एक बार फिर सच्ची घटना पर आधारित फिल्म ‘राजी’ बनाने जा रही हैं. जिसमें आलिया भट्ट अहम भूमिका में नजर आएंगी फिल्म में आलिया सहमत का किरदार निभा रहीं हैं.
देश के लिए मर मिटने वाली कई गुमनाम हस्तियों मैं से एक सहमत ..कश्मीर की वो हिंदुस्तानी बेटी जिसने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दरमियान दुश्मन देश में घुसकर कई ऐसे ऐसे राज पता कर लिए कि पाकिस्तान की साजिश की हवा निकल गई. इसके दम पर यद्धपोत आई एन एस विराट को तबाह करने की नापाक साजिश को कामयाब नहीं होने दिया.
दरअसल पेशे से फौजी रहे लेखक हरिंदर सिक्का कारगिल युद्ध के दौरान सीमा से सटे इलाकों में कवरेज कर रहे थे. सर्द मौसम में भेस बदल कर हमारी सीमा में घुस आए पाकिस्तानी फौजियों की जुर्रत और हमारे इंटेलिजेंस फेलियर पर सिक्का का खून खौल रहा था. उनका मानना था यह लापरवाही कहीं ना कहीं तैनात अफसरों की देशभक्ति की कमी का नतीजा था. इसी दौरान उनकी मुलाकात एक फौजी अफसर से हुई जिसने उन्हेे वो दास्तां सुनाई जो एक गुमनाम बहादुर कश्मीरी लड़की की भारत पर मर मिटने की हैरतअंगेज और सच्ची कहानी है.
क्या है सच्ची कहानी
एक पिता ने वतनपरस्ती की राह में अपनी कॉलेज जाने वाली मासूम बेटी को देश के लिये जान देने के लिए तैयार किया गया था. स्पेशल ट्रेनिंग देकर उसे भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसी ने जासूसी मिशन के लिए तैयार किया. "सहमत" का निकाह पाकिस्तानी सेना के अॉफिसर से कराया गया. उस सैन्य अधिकारी के पाकिस्तानी जनरल याह्या खान से करीबी रिश्ते थे, जिनके आधार पर सहमत जनरल के नाती पोतों को ट्यूशन देने के बहाने उनके घर में दाखिल हुई.
उसका काम खुफिया जानकारी जुटाकर भारत पहुंचाने का था. खास बात ये है उसकी हर जानकारी, इस पार की खुफिया रिपोर्टस से हूबहू मेल खाती थी. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसीज की टॉप सीक्रेट में सेंध लगाने और सटीक रिपोर्टिंग पर इंडियन इंटेलिजेंस के लोग भी हैरान थे.
अपनी कोख में पाकिस्तानी ऑफिसर की संतान को लिए वह भारत लौटी और एक बेटे को जन्म दिया. जो कोई और नहीं खुद हरिंदर सिक्का को ये सच्ची दास्तान सुनाने वाला ईमानदार अार्मी ऑफिसर है .
कितनी हैरत की बात है ना कि जिस उम्र मे लडकियां काजल मेहंदी रचाकर खूबसूरत जिंदगी के सपने पलकों पर सजाती हैं ,उस उम्र में सहमत ट्रेनिंग से लैस ,जान हथेली पर दुशमन देश में दाखिल हो चुकी थी पगपग पर मौत का खतरा तो था ही ,ये भी तय था मरने के बाद पहचान की तस्दीक करने वाला भी कोई नहीं होगा.
सिक्का कहते हैं कि
मैं खुद एक रिटायर्ड सैनिक हूं, मगर सहमत खान की दिलेरी और देशभक्ति मेरे लिए भी बेमिसाल है.
आखिरकार कई सालों की खोज के बाद पंजाब के मलेरकोटला मे बूढ़ी हो चुकी सहमत को ढ़ूंढ निकाला. ये जानकर उनकी आंखें नम हो गईं कि उस औरत ने ये सब कुछ इसलिए किया ताकि शान से अपने घर की छत पर तिरंगा फहरा सके.
यह कहानी मिसाल है एक कश्मीरी मुसलमान परिवार की भारत के प्रति वफादारी और देशप्रेम की. एक जांबाज बेटी की जिसने वतन को फर्ज मानकर हर तकलीफ से गुजरते हुए बलिदान का अमर इतिहास लिखा.
आज सहमत इस दुनिया में नहीं है, मगर बाकी है ये कहानी जो आनेवाले वक्त में वतन के लिए मर मिटने के लिए प्रेरित करती रहेगी लेकिन एक ऐसा सवाल छोड़ गई जो शायद सवाल ही बन कर रह जाएगा कि.. जो तिरंगे की खातिर कुरबान हो गई... उसके असली नाम को ये देश, उसका हक उसका सम्मान कभी दे पाएगा...
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