ADVERTISEMENT

Women's Day: पीकू से कायरा तक.. महिलाओं ने जब स्क्रीन पर दिखायीं 'असली महिलाएं'

Women's Day Special: हम बात करेंगे उन महिला किरदारों की, जिन्हें महिला स्क्रिप्टराइटर्स ने लिखा है.

Published
Women's Day: पीकू से कायरा तक.. महिलाओं ने जब स्क्रीन पर दिखायीं 'असली महिलाएं'
i
Like
Hindi Female
listen

रोज का डोज

निडर, सच्ची, और असरदार खबरों के लिए

By subscribing you agree to our Privacy Policy

'मेन रिटन बाय वीमेन' - सोशल मीडिया पर ये लाइन काफी हिट है, जहां यूजर्स अपने उन पसंदीदा पुरुष किरदारों के बारे में बताते हैं, जिन्हें महिला स्क्रिप्टराइटर्स ने लिखा है. ये पुरुष संवेदनशील होते हैं, महिलाओं की बात सुनते हैं और उनके हक के लिए खड़े होते हैं. लेकिन आज महिला दिवस पर हम इन पुरुषों की बात नहीं करेंगे, हम बात करेंगे उन महिला किरदारों की, जिन्हें महिला स्क्रिप्टराइटर्स ने लिखा है. इन महिला स्क्रिप्टराइटर्स-डायरेक्टर्स ने न केवल संजीदा महिला किरदारों को गढ़ा है, बल्कि इनके जरिये ये भी दिखाने की कोशिश की है कि आज भी महिलाएं कितनी चुनौतियों के साथ जीने को मजबूर हैं.

ADVERTISEMENT
एक तरफ महिलाएं जहां 'डियर जिंदगी' की कायरा की तरह कमजोरियों को स्वीकार कर अपनी जिंदगी की डोर अपने हाथ में ले रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर 'दिल धड़कने दो' की आयशा की तरह वो अपना बिजनेस तो चला रही हैं, लेकिन पितृसत्ता आज भी कहीं न कहीं उनके पैरों की बेड़िया बनकर बैठा है.

इन महिला स्क्रिप्टराइटर्स-डायरेक्टर्स के गढ़े ऐसे कुछ शानदार किरदार.

ADVERTISEMENT

पीकू

पीकू के जरिये जूहि चतुर्वेदी ने उन लड़कियों की कहानी भी बतायी

"ये पानी है, ये आग है... प्यार की खुराक सी है पीकू..." जूहि चतुर्वेदी की लिखी पीकू वाकई ऐसी ही है. पीकू एक तरफ अपने बूढ़े पिता का खयाल रखती है, और दूसरी तरफ एक सफल बिजनेस चलाती है. पीकू में समझदारी है, तो गुस्सा भी है और प्यार तो है ही. पीकू के जरिये जूहि चतुर्वेदी ने उन लड़कियों की कहानी भी बतायी है जिनके माता-पिता उनपर निर्भर हैं. और मां-बाप का खयाल रखना सिर्फ बेटों की जिम्मेदारी थोड़े ही न है!

ADVERTISEMENT

डियर जिंदगी

डियर जिंदगी में शाहरुक और आलिया

'मॉडर्न इंडियन वीमेन' के नाम पर दर्शकों को महिलाओं के कई रूप परोसे गए हैं, लेकिन 'डियर जिंदगी' की कायरा में गौरी शिंदे ने वाकई एक मॉडर्न इंडियन वीमेन की कश्मकश को बयां किया है. डेटिंग लाइफ, करियर गोल्स, अपने अतीत के साथ जारी लड़ाई, कमजोर पड़ना और कमजोर पड़ने पर मदद मांगना... कायरा के जरिये गौरी शिंदे ने तमाम लड़कियों को ये एहसास दिलाया कि जिंदगी की इस दौड़ में थोड़ा रुककर खुद की मदद करना कुछ बुरा नहीं है.

ADVERTISEMENT

लिपस्टिक अंडर माय बुर्का

अलंकृता श्रीवास्तव की फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का'

"क्या सिगरेट पीने और सेक्स करने से ही महिलाएं आजाद हैं?" — जब अलंकृता श्रीवास्तव की फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' रिलीज हुई थी, तब इसपर खूब हो-हल्ला हुआ था और कई लोगों ने सोशल मीडिया पर ये सवाल किया था. नहीं. महिलाओं की आजादी का मतलब सिगरेट पीना और सेक्स करना नहीं है, लेकिन अपने लिए खुद फैसले लेना उनकी च्वाइस है. और यही बात अलंकृता श्रीवास्तव ने अपनी चार महिला किरदारों के जरिये कहने की कोशिश की थी. उन्होंने बताया कि 50 साल की उम्र पार कर चुकी एक महिला की यौन इच्छाएं गलत नहीं हैं, और न ही वो लड़की गलत है जिसे हिजाब पहनने के लिए मजबूर किया जा रहा है.

ADVERTISEMENT

दिल धड़कने दो

'दिल धड़कने दो' की नीलम, आयशा और फराह के जरिये दोनों ने अलग-अलग बैकग्राउंड की अलग-अलग कहानियों को पर्दे पर दिखाया

जोया अख्तर और रीमा कागती बॉलीवुड के उन चुनिंदा स्क्रिप्टराइटर्स में से एक हैं, जिन्होंने काफी कॉम्प्लैक्स फीमेल कैरेक्टर्स लिखे हैं. 'दिल धड़कने दो' की नीलम, आयशा और फराह के जरिये दोनों ने अलग-अलग बैकग्राउंड की अलग-अलग कहानियों को पर्दे पर दिखाया. नीलम में जहां मॉडर्न चोले के पीछे छिपी रूढ़ीवादी मां की झलक दिखती है, तो वहीं आयशा अपने पैरों पर खड़ी होने के बावजूद अपने लिए फैसले लेने में असमर्थ दिखती है. हालांकि, फिल्म का क्लाइमैक्स आते-आते अख्तर-कागती की जोड़ी ने दोनों किरदारों को आजाद कर दिया है. वहीं, फराह एक आजाद रूह है, जो अपने सपनों के लिए सभी बंदिशें तोड़ने को तैयार है.

ADVERTISEMENT

करीब करीब सिंगल

'करीब करीब सिंगल' एक विधवा महिला की कहानी है, जो फिर से प्यार के समंदर में गोता लगाने के लिए कोशिश कर रही है.

तनुजा चंद्रा की लिखी और उनके डायरेक्शन में बनी 'करीब करीब सिंगल' एक विधवा महिला की कहानी है, जो फिर से प्यार के समंदर में गोता लगाने के लिए कोशिश कर रही है. एक वक्त था जब समाज में विधवा औरतों का रहना दुश्वार कर दिया जाता था, पति की मौत के बाद उनकी जिंदगी जैसे खत्म हो जाती थी. हालांकि, वक्त बदला है, लेकिन विधवा महिला के दोबारा प्यार और शादी को पूरी तरह से स्वीकार होने में अभी भी लंबा वक्त लगेगा. 'करीब करीब सिंगल' की जया के रूप में तनुजा चंद्रा ने ऐसी तमाम महिलाओं की कहानी को बड़े ही संवेदनशील तरीके से दिखाया है.

ADVERTISEMENT

गली बॉय

जोया अख्तर और रीमा कागती का एक और कॉम्प्लैक्स किरदार 'गली बॉय' की सफीना है. अख्तर और कागती ने सफीना के किरदार को किसी सांचने में ढालने की कोशिश नहीं की है. उसका मुस्लिम होना या हिजाब पहनना कोई आउट-ऑफ-द-बॉक्स बात नहीं है. वो मुंबई की एक लड़की है, जो वहां की आम भाषा बोलती है, जिसके अपने सपने हैं और उन सपनों के लिए लड़ने के लिए उसके अंदर वो आग भी है.

एक सीन में जब सफीना को लड़के वाले देखने आते हैं और लड़के की मां उससे पूछती है कि क्या उसे कुकिंग आती है, तो वो कहती है, "नहीं, लेकिन अगर सब कुछ सही रहा, मैं आपका लीवर ट्रांसप्लांट कर सकती हूं." वहीं, एक दूसरे सीन में वो खुद पर यकीन कर मुराद को कहती है, "तेरे को जो करने का है तू कर, मैं सर्जन बनने जा रही हूं, अपन मस्त जीएंगे."

ADVERTISEMENT

इंग्लिश विंग्लिश

वैसे तो होममेकर्स की कहानियों को पर्दे पर कई बार दिखाया गया है, लेकिन अक्सर वो सिर्फ इस जोक तक ही सीमित रह जाती थीं कि "तुम दिन भर घर पर करती ही क्या हो?" लेकिन गौरी शिंदे ने इस कहानी को उस होममेकर के नजरिये से दिखाय जिसका बार-बार मजाक उड़ाया गया. इंग्लिश न जानने के कारण उसकी बेटी उससे शर्मिंदा रहती है, उसका पति उसके काम की इज्जत नहीं करता. जब अपने ही आप पर हंसने लगें, तो एक महिला को कैसा लगता है. 'इंग्लिश विंग्लिश' की शशि गोडबोले इन सभी परेशानियों से जूझती है, और फिर एक-एक कर इनसे पार पाती है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
और खबरें
×
×