“शायद आखिर में जिंदगी जाने देने का ही नाम है. लेकिन सबसे ज्यादा दर्द तब होता है जब कोई अलविदा कहने के लिए भी नहीं रुकता.”‘लाइफ ऑफ पाई’ के आखिरी सीन में इरफान खान का डायलॉग
फिल्म 'लाइफ ऑफ पाई' के रुला देने वाले आखिरी सीन में ये बात खुद इरफान खान ने ही कही थी, जो आज हम सब महसूस कर रहे हैं. इरफान, एक गजब के एक्टर थे, जिनके टैलेंट की कोई सीमा ही नहीं थी.
7 जनवरी, 1967 को पैदा हुए, साहिबजादे इरफान खान नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पढ़े हुए थे. बाद में, वो मुंबई आए और 'चाणक्य' और 'चंद्रकांता' जैसे TV सीरियल्स में एक्टिंग की.
उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत मीरा नायर की फिल्म 'सलाम बॉम्बे' से की थी. इरफान को 'द्रष्टि' और 'द वॉरियर' जैसी फिल्मों में एक एक्टर के तौर पर नोटिस किया गया लेकिन उन्हें अपना बड़ा ब्रेक मिला शेक्सपियर की मैकबेथ पर आधारित फिल्म 'मकबूल' से. 2004 में फिल्म 'हासिल' के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट विलेन अवॉर्ड मिला और इरफान, एक के बाद एक, अच्छी परफॉरमेंस से सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए. साथ ही उन्होंने कई फिल्में की जैसे कि 'द नेमसेक', 'द लंचबॉक्स', 'हिंदी मीडियम', 'पीकू' और 'पान सिंह तोमर' जिसके लिए उन्हें नेशनल फिल्म अवॉर्ड भी मिला.
वो डैनी बॉयल की फिल्म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' का भी हिस्सा रहे और 'इनफर्नो' और 'लाइफ ऑफ पाई' जैसी हॉलीवुड फिल्मों में टॉम हैंक्स और एंग ली के साथ काम किया. कला में अपने योगदान के लिए, इरफान को 2011 में पद्म श्री से नवाजा गया. अपने 30 साल के करियर में, इरफान की आखिरी फिल्म 'अंग्रेजी मीडियम' थी. 2018 में इरफान ने कैंसर से अपनी लड़ाई के बारे में ट्विटर पर लिखा था, "मुझे भरोसा है, मैंने सरेंडर कर दिया है."
इरफान खान का जाना एक ऐसा नुकसान है, जिसकी भरपाई नहीं हो सकती. उनके आखिरी समय में, उनका परिवार उनके साथ मौजूद था.
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