बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार की नागरिकता हमेशा से विवादों में रही है. अब इस पर फिल्ममेकर विशाल भारद्वाज ने भी सवाल खड़े किए हैं. द क्विंट से बातचीत में विशाल भारद्वाज ने पूछा कि अक्षय ने भारतीय नागरिकता क्यों छोड़ी थी?
जब द क्विंट ने उनसे अक्षय और ट्विंकल की अलग-अलग विचारधाराओं को लेकर सवाल किया, तो विशाल भारद्वाज ने कहा,
‘अक्षय और ट्विंकल की बात मुझे काफी सरप्राइज करती है. दो अलग-अलग विचारधारओं के साथ एक ही छत के नीचे रहना, तारीफ के काबिल है. और दोनों की नागरिकता अलग-अलग है. एक कनाडा का नागरिक है और एक भारत की. और ये अद्भुत है जो वो दोनों कर रहे हैं.’
इसके बाद विशाल भारद्वाज ने पूछा, 'आपको क्या लगता है कि उन्होंने भारतीय नागरिकता क्यों छोड़ी? क्या आपको कोई आइडिया है?'
‘वो कौन सा साल था? उन्हें कब अच्छा काम नहीं मिला? मुझे लगता है कि पिछले 20-25-30 सालों से वो बॉक्स ऑफिस पर राज कर रहे हैं. तो लोगों को इसके बारे में पता होना चाहिए. मैं बिल्कुल जानना चाहता हूं. क्योंकि वो, एक कनाडाई नागरिक हमारे पीएम का इंटरव्यू ले रहे हैं, तो देश के नागरिकों को ये जानने का अधिकार है कि उन्होंने अपनी नागरिकता कब छोड़ी या ‘घर वापसी’ हो रही है या नहीं उनकी?’अक्षय की नागरिकता पर विशाल भारद्वाज
बता दें कि एक इंटरव्यू में अक्षय कुमार ने अपनी नागरिकता पर कहा था कि उन्होंने काम के सिलसिले में कनाडा की सिटिजनशिप के लिए अप्लाई किया था. अक्षय ने ये भी कहा था कि उन्होंने भारतीय नागरिकता के लिए अप्लाई कर दिया है. हालांकि, अभी तक एक्टर ने ये साफ नहीं किया है कि उन्हें भारतीय नागरिकता मिली है या नहीं.
‘दो खेमों में बंटा बॉलीवुड’
मुझे लगता है कि बॉलीवुड अब दो खेमों में बंट गया है, क्योंकि इससे पहले सिर्फ एक साइड अपनी बात बोलती थी. अब उन्हें जवाब दिया जा रहा है और मैं इसे लेकर बहुत खुश हूं कि दीपिका पादुकोण जेएनयू गईं और वहां खड़ी रहीं. इसके लिए हिम्मत चाहिए. और मुझे लगता है कि हमें दीपिका जैसे और लोगों की जरूरत है कि वो आगे आएं, खासकर मेल एक्टर्स.विशाल भारद्वाज, फिल्ममेकर
‘शाह-खेर कॉन्ट्रोवर्सी के मजे ले रहे लोग’
नसीरुद्दीन शाह और अनुपम खेर की कॉन्ट्रोवर्सी पर द क्विंट के सवाल पर विशाल भारद्वाज ने कहा, 'लोग इसके मजे ले रहे हैं. जब इस तरह का काम होता है तो आम पब्लिक को तो मजा आता ही है. और मुझे लगता है कि सभी को मजा आ रहा है. वो दोनों दोस्त रहे होंगे. उन दोनों ने एक साथ बहुत काम किया होगा. दिक्कत ये है कि हम असहमति से सहमत क्यों नहीं हो सकते? मौजूदा सिस्टम से मुझे यही परेशानी है कि अगर हम आपसे सहमत नहीं है तो हम कैसे एंटी-नेशनल बन जाते हैं?'
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