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के एल सहगल: एक गायक जिनकी थी यही चाहत, उनके जनाजे में बजे गाना

आज भारतीय सिनेमा जगत के पहले ‘सूपर स्टार’ कहे जाने वाले के एल सहगल का जन्मदिन है.

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"जब दिल ही टूट गया, हम जी कर क्या करेंगे" ये गाना अक्सर दर्द में डूबे आशिक के म्यूजिक प्ले लिस्ट में या फिर उसके मुंह से सुनने को मिल जाती है. ये गाना 72 साल पहले हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के पहले सुपरस्टार कहे जाने वाले के एल सहगल ने गया था. जी हां, आज भारतीय सिनेमा जगत के पहले ‘सुपर स्टार’ कहे जाने वाले के एल सहगल का जन्मदिन है.

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जम्मू में 11 अप्रैल 1904 को जन्मे कुंदनलाल सहगल ने अपने सिनेमा करियर में 185 गीत गाये और उनके गीत आज भी लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं. उन्होंने हिंदी, उर्दू, बंगाली, पंजाबी, तमिल और पर्शियन भाषाओं में गीत गाए.

गानों में था मैसेज

के एल सहगल ने ‘एक बंगला बने न्यारा, रहे कुनबा जिसमें सारा..' से रिश्तों को एक सूत्र में पिरोया तो दूसरी ओर अपनी आवाज में दर्द को बयान करते हुए ‘हाय हाय ये जालिम जमाना' से दुनिया की कड़वी सच्चाई को सामने रखा.

‘बाबुल मोरा नैहर छूटो जाए' से जहां उन्होंने घर छूटने के गम को सुनाया तो ‘बालम आये बसो मेरे मन में' से मुहब्बत की किलकारियों को गूंज दी.

‘जब दिल ही टूट गया’

1946 में नौशाद साहब ने फिल्म शाहजहां का संगीत तैयार किया, लेकिन आवाज के एल सहगल की थी. एल सहगल का गाना ‘जब दिल ही टूट गया' को लेकर एक किस्सा बहुत मशहूर है. कहते हैं कि सहगल साहब बिना पिए गाते नहीं थे, लेकिन फिल्म शाहजहां के लिए ‘जब दिल ही टूट गया' गाना था तब के एल सहगल ने बिना पिए गया. यही नहीं ये गाना पहली बार में ही सबको पसंद भी आया. के एल सहगल ने इस गाने के बाद कहा था कि मेरे जनाजे में 'जब दिल ही टूट गया...' गाना बजना चाहिए. और हुआ भी ऐसा ही.

गूगल ने डूडल बनाकर किया याद

गूगल ने दिग्गज गायक-अभिनेता को आज उनके 114वें जन्मदिन पर एक शानदार डूडल बनाकर याद किया है. आज का डूडल विद्या नागराजन ने बनाया है, जिसमें सहगल को कोलकाता की पृष्ठभूमि में गाना गाते हुए दिखाया गया है.

आज भारतीय सिनेमा जगत के पहले ‘सूपर स्टार’ कहे जाने वाले के एल सहगल का जन्मदिन है.

फिल्म में भी आजमाया हाथ

के एल सहगल ने ‘मोहब्बत के आंसू', ‘जिंदा लाश' और ‘सुबह का सितारा' जैसी फिल्मों में अभिनय भी किया. उन्होंने साल 1935 में पी सी बरुआ की फिल्म ‘देवदास' में मुख्य किरदार निभाया. इसमें गाये उनके गीत ‘बालम आये बसो..' और ‘दुख के दिन अब बीतत नाही' को भारतीय सिनेमा में ‘मील का पत्थर' कहा जाता है. ‘प्रेसीडेंट' को उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक कहा जाता है जिसका गीत ‘एक बंगला बने..' इतिहास के पन्नों में अमर हो गया. इसकी कामयाबी के बाद वह बतौर गायक शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे.

भजन की दुनिया में भी किये जाते हैं याद

उनकी मां धार्मिक कार्यक्रमों के साथ-साथ गीत-संगीत में भी काफी रूचि रखती थी. सहगल अक्सर अपनी मां के साथ भजन-कीर्तन जैसे धार्मिक कार्यक्रमों में जाया करते थे और अपने शहर में हो रही रामलीला में भी हिस्सा लेते थे.

‘मधुकर श्याम हमारे चोर’, ‘सिर पर कदम्ब की छैयां’ (राग भैरवी), ‘मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो’ जैसे यादगार भजनों ने उन्हें खूब इज्जत दिलाई.
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रेलवे की नौकरी से सिनेमा तक सफर

उन्होंने जीवन यापन के लिए रेलवे में साधारण सी नौकरी भी की. साल 1930 में कोलकाता के न्यू थिएटर के बी एन सरकार ने सहगल को अपने यहां काम करने का मौका दिया. वहां उनकी मुलाकात आर सी बोराल से हुई जो सहगल की प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए. धीरे-धीरे सहगल अपनी पहचान बनाते चले गए. आखिरकार साल 1947 में 42 साल की उम्र में सहगल ने दुनिया को अलविदा कह दिया और उनके प्रशंसकों का ‘जब दिल ही टूट गया....'

इनपुट- भाषा

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