बॉलीवुड का चलन है-पुरानी 'शराब' को नई बोतल में पेश करना या 'कॉकटेल'-'मॉकटेल' बनाकर पेश कर देना. इसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं महेश भट्ट. साथ ही एक बार फिर बतौर डायरेक्टर ‘सड़क 2’ से वापसी कर रहे हैं. पुरानी 'सड़क' पर बेटी पूजा भट्ट, संजय दत्त और सदाशिव अमरापुरकर की बदौलत महेश भट्ट का डायरेक्शन तेजी से दौड़ा था, अब 'सड़क' के सीक्वल में भट्ट साहब की छोटी बिटिया आलिया, आदित्य रॉय कपूर और संजय दत्त नजर आएंगे. 28 अगस्त को OTT प्लेटफॉर्म डिज्नी-हॉटस्टार पर ये फिल्म रिलीज होगी.
खास बात ये है कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद जिस कदर नेपोटिज्म की बहस सोशल मीडिया पर छिड़ी है, फिल्म के ट्रेलर को यूट्यूब पर 70 करोड़ लोग देख चुके हैं, जिसमें से 1 करोड़ 20 लाख लोग डिसलाइक भी कर चुके हैं और सिर्फ 7 लाख लोगों ने लाइक किया है. लेकिन इससे भ्रमित नहीं होना है, ये Youtube लाइक-डिसलाइक वाला फंडा फिल्म के चलने नहीं चलने की गारंटी नहीं देता है. हालांकि, इससे सुर्खियां जरूर बटोरी जा चुकी हैं.
‘सड़क’ किस बात के लिए जानी जाती है?
1991 में आई हिट रोमांटिक थ्रिलर फिल्म ‘सड़क’ की कई खासियत है, जिससे इसकी गिनती आज भी क्लासिकल फिल्मों में होती है. 'तुम्हें अपना बनाने की कसम खाई है', 'जब-जब प्यार पे पहरा हुआ है', 'हम तेरे बिन कहीं रह नहीं पाते' जैसे गाने आज भी आप बजते और गुनगुनाते सुन सकते हैं. गानों और संजय दत्त के अलावा इस फिल्म की एक और बड़ी खासियत है सदाशिव अमरापुरकर, जिन्होंने विलेन का किरदार निभाया है.
अनकंवेशनल टाइप के विलेन बने सदाशिव ने महारानी नाम के एक ट्रांसजेंडर का किरदार निभाया है, जो वेश्यालय चलाते हैं और इनके पास देसी और एक विदेशी टाइप दिखने वाले कमोबेश देसी गुंडे (गैविन पैकर्ड) की लाइनअप है.
फिल्म में सदाशिव के एक डायलॉग है-“अगर रोने-धोने से तकदीर बदलती, तो मैं ना बदल लेती अपनी तकदीर. मैं भी बहुत रोयी थी जब लोगों ने मुझे नामर्द कहा, हिजड़ा कहा.” इस कैरेक्टर के लिए उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट विलेन का अवॉर्ड भी मिला था.
कहानी क्या है?
अब कहानी ये है कि अपने बहन को ढूंढते-ढूंढते मुंबई पहुंचा रवि (संजय दत्त) यहां टैक्सी ड्राइवर के तौर पर काम करने लग जाता है. रवि की बहन गलत हालात में पड़कर वेश्यालय में बेच दी जाती हैं, बाद में उनकी हत्या हो जाती है. इस सदमे को झेल रहे रवि की मुलाकात पूजा (पूजा भट्ट) से होती है और वो भी कुछ हालातों में ऐसा फंसती हैं कि वेश्यालय में बेच दी जाती हैं.
अब रवि की जिंदगी का मकसद पूजा को वहां से आजाद करना होता है. विलेन से लड़ाई-मारपीट कर इसे अंजाम कैसे दिया जाता है, यही फिल्म है. दीपक तिजोरी, संजय दत्त की दोस्त की भूमिका में हैं उन्होंने भी अच्छा काम किया है.
फिल्म की एक और खासियत है, संजय दत्त का स्टाइल. धीर-गंभीर बने संजय दत्त इस फिल्म में कई बार पिटते भी नजर आते हैं, उस दौर की फिल्मों में हीरो का इस तरह मार खाना, शायद दर्शकों को पसंद नहीं आता हो, लेकिन फिल्म में कई बार महारानी के गुंडे उन्हें बुरी तरह पीटते हैं, एक बार तो पीट-पीटकर क्रॉस पर लटका देते हैं. ऐसे में ये थोड़ा अलग था. जैसा उस दौर की कई फिल्मों में हुआ करता था, हीरो एक घूंसे में बदमाशों को हवा में उछाल देता था, ऐसे सीन इस फिल्म में नहीं हैं.
जोरदार कमाई!
फिल्म की एंडिंग हैप्पी-हैप्पी वाली है, महारानी को रवि मार देता है, वेश्यालय में आग लगा देता है. इस दौरान रवि एक के बाद एक अपने दोस्त-साथियों को खो भी देता है. बता दें कि 1976 में मार्टिन स्कॉर्सी की साइकोलॉजिकल ड्रामा फिल्म ‘टैक्सी ड्राइवर’ से इंस्पायर्ड ‘सड़क’ 1991 की सबसे कमाऊ फिल्म थी. वहीं, इस दशक की ये 7वीं सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी.
अब बारी है ‘सड़क 2’की जिसके गाने पहले ही रिलीज हो चुके हैं लेकिन वो ‘सड़क’वाले स्तर के नहीं लगते, लोगों की जुबान पर भी नहीं चढ़ सके हैं. विलेन के तौर पर मकरंड देशपांडे होंगे जिन्हें सदाशिव अमरापुरकर को मैच करना होगा
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