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आंसुओं से लड़ते हुए मैंने कहा-चलो अपने ऋषि के लिए श्रद्धांजलि लिखो

ऋषि कपूर की खुशनुमा जिंदगी से जुड़े कुछ खास पलों का किस्सा

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11 मार्च का दिन था जब उन्होंने ट्वीट किया था, “खुद को संभालने की तुम्हारी काबिलियत का क्या हुआ?” लॉकडाउन के दरम्यान यह काबिलयत बनी नहीं रह सकी. तब फोन पर उन्होंने बहुत अधीर होकर पूछा, “क्या चल रहा है दोस्त? कुछ चाहिए तो बस वाट्सएप कर दो.” मैंने मजाक किया कि वाइन की बोतल ही कुछ कर सकती है, उस पर उन्होंने जोर से हंसते हुए कहा, “तुम अब भी वह पेशाब पीते हो? बस किसी को भेज दो, तुम्हारी मर्जी.“

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अब कैसे किसी को ह्यूमर के उस पते पर भेजा जाए, वो बांद्रा का अपार्टमेंट ब्लॉक जहां वो पेंटहाउस में रहते थे और अपने पाली हिल बंगले के दोबारा बनने का इंतजार कर रहे थे? 67 वर्षीय ऋषि कपूर को अगली सुबह चेक-अप के लिए हॉस्पिटल जाना ही था. मुझसे उनके आखिरी शब्द थे,

“संपर्क में रहो केएम, जो कुछ हो रहा है बताऊंगा.”
आज सुबह खबर आई कि उन्होंने एक अस्पताल में अंतिम सांसें लीं. आंसुओं से लड़ते हुए मैंने खुद से कहा चलो, अपने साथी के लिए अपनी श्रद्धांजलि लिखो. दो या तीन कॉल मीडिया हाउस से आए, “आपको कष्ट देने के लिए क्षमा, लेकिन क्या आप...?” सहज रूप में मन ने अंदर से चेताया कि तुम कभी भी उनके साथ न्याय नहीं कर पाओगे, एक कलाकार और एक मित्र के रूप में जिन्होंने कभी तुम्हें गिरने नहीं दिया, चाहे मौसम अनुकूल हो या प्रतिकूल. 

एक और आवाज आयी, नहीं कम से कम तुम्हें कोशिश तो करनी चाहिए. तो मैं कहां से शुरू करूं और कहां खत्म? आंसुओं को छोड़ो, चिन्टू भाई के दोस्त बनो जो तुम थे, तुम अंतिम संस्कार में भाग नहीं ले सकते, जिन शब्दों में पुकारा करते थे, उन्हीं शब्दों में अलविदा कहो. इसे कर दिखाओ. कम से कम अगर वह कहीं हैं तो वह खिलखिलाकर बस हंस देंगे, “मैं तुम्हें वाइन नहीं दे सकता, इसलिए तुम्हारी लेखनी इतनी रूखी-सूखी लग रही है.”

और मैं उदासी के साथ मुस्कुरा देता क्योंकि निराश करने वाले इस खास अंदाज में जो प्यार और गर्माहट थी वह असीम थी. औपचारिक विनम्रता उनके लिए नहीं बनी थी, बल्कि इसे उन्होंने अपने वरिष्ठों के लिए छोड़ रखा था. 

वो तपाक से पूछ बैठते, “क्या उम्र है तुम्हारी?” जवाब में वह चिल्लाते, “जाओ इस मरीन से कहो! तू तो साला सालों से लिख रहा है. जरूर तुम मेरे दादा की उम्र के होगे. बहरहाल, दामिनी की समीक्षा को लेकर नीतू और मुझे हमेशा एक शिकायत रहेगी. तुम्हें पता है कि मेरा रोल कितना मुश्किल था (संयुक्त परिवार में पीड़ित महिला का पति)?” लेकिन तुम सारे तथाकथित आलोचक सन्नी देओल के बारे में बड़बड़ाते रहे क्योंकि उसमें दिखावा अधिक था. फिर इसे देख लो.”

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ऐसे ही एक और मुंहतोड़ जवाब के बाद चिन्टू भाई ने मुझे पाली हिल स्थित अपने कृष्ण राज बंगले पर डिनर के लिए बुलाया, “मुझे पता है आज तुम्हारा जन्म दिन है. हमारे साथ बिताओ.” लेकिन...मैं शिथिल हो गया था. बंगले पर उतरने के बाद पाया कि मेरे प्रति अगाध लगाव दिखाते हुए उन्होंने एक सरप्राइज पार्टी आयोजित कर रखी थी जिसमें इटालियन व्यंजन और इटालियन शराब प्रमुखता से थे. पत्रकारिता से जुड़े करीब एक दर्जन मेरे नजदीकी मित्र वहां पहले से मौजूद थे. उनका पालतू कुत्ता Dudley मेरे इर्द-गिर्द घूमता रहा. इस कलाकार के भरोसेमंद सचिव शांतिजी, जिनके माथे पर नेपोलियन की तरह घुंघराले बाल लटकते रहते, ने आवाज लगायी, “जय, जय, आप ही का इंतजार हो रहा था.”

एक चॉकलेट केक जिस पर महज 18 मोमबत्तियां जल रही थीं. मेरी नम आंखें अचानक एक कार हेडलाइट में पकड़ ली गयीं. मेरी आंखें भर आयीं जैसा कि अक्सर उनकी दयालु भाव के आगे हो जाया करती थीं.

और फिर उन्होंने अपनी म्यूजिक ऑन किया जिससे ‘I Wanna Hold Your Hand’ गाने की तेज आवाज निकली. एक पूरी बोतल खोल दी गयी, उन्होंने जोर देकर कहा, “इसे खत्म करने की जिम्मेदारी तुम्हारी.” मैं नहीं कर पाया. उन्होंने बचे हुए हिस्से को मेरे सहयोगी को सौंप दिया जो उस शाम मेरी कार चला रहा था और आदेश दिया, “वर्ली बांद्रा सी लिंक पर बचा हुआ माल खत्म हो जाना चाहिए.”

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चिंटू भाई के साथ कई सारे पल. उन्होंने कभी चिंटू नाम से पुकारा जाना पसंद नहीं किया. क्यों नहीं तुम मुझे केवल ऋषि कहते हो...ये चिन्टू नाम क्या होता है? अपनी खोती स्मृतियों से बमुश्किल मैं इसे भुला सकता हूं.

अगर मैं शुरुआत कहूं तो वह कोयम्बटूर डॉकयार्ड रोड स्टेशन से हुई, जहां यश जौहर-रमेश तलवार की ‘दुनिया’ फिल्माई जा रही थी. दिलीप कुमार और अशोक कुमार लोकेशन पर थे. ऋषि कपूर न सिगरेट पीते थे (उनका ब्रांड सिल्क कट था जिसे उन्होंने एक दशक पहले छोड़ दिया था) ना ही बीयर लेते थे जिससे भीषण गर्मी में कड़कड़ाती धूप का सामना किया जा सके. उत्सुक होते हुए उन्होंने मुझसे पहला सवाल किया, “हमारी फिल्मों की कहानियां हमेशा एक खांचे में होती हैं. मुझे बस कैमरे के सामने चेहरा बनना होता है. वैसे, आप क्या सोच रखते हैं?” सोच? अब उन्हें इतना भारी भरकम शब्द कहां से मिला?

इस पर उन्होंने जवाब दिया, “ओ..हो...मैंने तो अपने जीवन में एक भी किताब नहीं पढ़ी. स्कूल में भी अंग्रेजी की कक्षाओं में मेरी अंग्रेजी बहुत अच्छी थी. वार्षिक परीक्षा में अपने लेख के साथ मैं इस कदर लगा रहा कि मैंने बाकी प्रश्नों को छुआ तक नहीं. कपूर परिवार की शानदार परंपरा के हिसाब से मैं कभी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया. फिल्में हमारे खून में थीं तो आप क्या उम्मीद रखते हैं?”

जब वे स्कूल में थे तो उन्हें एक परंपरागत पारसी परिवार की लड़की से मोहब्बत हो गयी. जब स्टारडस्ट मैगजीन में एक आर्टिकल छपी कि वे बॉबी की हीरोइन डिम्पल कपाडिया के साथ डेटिंग कर रहे हैं तो उन्हें ठुकरा दिया गया. 
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उन्होंने अपने पहले प्यार के लिए बहुत लंबा टेलीग्राम भेजा, लेकिन कभी उसका उत्तर नहीं मिला. उन्होंने जब मुझे बताया कि मैंने ऋषि नाम के किसी म्यूजिकल थियेटर के लिए सह लेखक बनकर उन्हें धोखा दिया है. कपूर एंड सन्स के कुनूर सेट पर स्क्रिप्ट तकरीबन पूरी हो चुकी थी.

एनसीपीए ने जो बजट इस नाटक के लिए आवंटित किया वह बहुत कम था. उन्होंने कंधे बिचकाते हुए कहा, “कोई बात नहीं. हम फिनान्सर खोज लेंगे या मैं खुद इसके लिए धन की व्यवस्था करूंगा.” जब उन्हें ब्लड कैंसर होने की बात पता चली और वे न्यूयॉर्क के लिए रवाना हुए तो प्रॉजेक्ट खत्म होने लगा. साल भर अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान वे मैसेज किया करते, “चिंता करने की जरूरत नहीं है. हम इसे करेंगे. तुम इसका अंत पूरा करो और मुझे ई-मेल करो.”

आह चिंटू भाई, उस पर मैं क्या कह सकता हूं? लेकिन मुझ पर भरोसा करने के लिए आभार जताता हूं. जैसा कि आपने किया, फिल्म तहजीब में एक रंगीन भूमिका स्वीकार करने के बाद आप इस हद तक गये कि आपने अपने नियमित डिजाइनर कचिन्स को बुलाया और मुझे भारी छूट देने को कहा. “मैं अमीर लड़के की भूमिका निभा रहा हूं, है कि नहीं? मैं धारीदार सूती के शर्ट में शायद नहीं दिख सकता.” उनके साथ चार दिन की शूटिंग आनंदित करने वाला था, उन्होंने अपने लिए क्षण बनाए, एल्विस प्रेसली जेल हाऊस रॉक के छोटे-छोटे कूल मूव्स से लेकर रीमिक्स ट्रैक तक. कहने की बात नहीं कि उन्होंने अपने हिस्से का चेक वापस कर दिया और मुझे भरोसा दिलाया, “जब मैं किसी डायरेक्टर के साथ पहली बार काम करता हूं तो वह मुफ्त होता है. अब दूसरी फिल्म जल्दी बनाओ और मैं बहुत बड़ी राशि वसूलूंगा.”

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समय बीतता गया, लेकिन चिंटू भाई चिंटू भाई ही बने रहे. बिल्कुल नहीं बदले चाहे मैं एक प्रकाशन में संपादक बन गया या फिर बेरोजगार रहा. और वे अवार्ड्स को लेकर बात करने में कभी उत्साह नहीं दिखाते, “तुम्हें पता है कि बॉबी फिल्म के लिए मिले पहले फिल्मफेयर अवार्ड के बदले मुझे पैसे देने पड़े थे? आजकल बेशक इवेंट में दिखावे के लिए या फिर स्टेज पर प्रदर्शन के लिए अवार्ड दिए जाते हैं.”

सहज रहो भाई. मैं जाऊंगा, ट्विटर पर इतना अधीर मत होओ और अपनी सोच अपने तक रखो. “कोई रास्ता नहीं, यहां तक कि नीतू मुझसे ऐसा कहती है. लेकिन मैं लोकतांत्रिक देश में रहता हूं.” वे दोबारा पोस्ट करते, “अगर मैं ट्रोल होऊंगा तो जिस किसी को दिक्कत हैं मैं उन्हें ब्लॉक कर दूंगा.”

बहुत भावुक होकर और जोर देकर एक दिन दोपहर में उन्होंने मुझे यह बताने के लिए कॉल किया कि राज कपूर परिवार ने संयुक्त रूप से यह तय किया है कि एक साथ पवित्र आरके स्टूडियो चलेंगे.

कॉफी पर अप्रत्याशित रूप से उन्होंने बताया कि अब आर्थिक रूप से इस स्टूडियो का रखरखाव कर पाना व्यावहारिक नहीं रह गया है जिसे उनके पिता ने बनवाया था. वहां शूट हो रहे ज्यादातर टीवी सीरीज तयशुदा फीस वहन नहीं कर पा रहे थे. इसके अलावा आरके की यादों से जुड़े स्टॉक आगजनी में भस्म हो चुके थे.

उनके भाई रणधीर और राजीव, मां कृष्णा जो तब जीवित थीं, ने मिलकर ताबड़तोड़ चर्चा के बाद यह फैसला लिया था. उन्हें उम्मीद थी कि प्रतिष्ठित आरके प्रवेश द्वार सुरक्षित रहेगा और शायद विशाल कम्पाउंड में एक सिनेमा मल्टीप्लेक्स की जगह बन जाएगी.

चिंटू भाई पुरानी गीतें सुनने के आदी थे जिनमें से ज्यादातर आरके फिल्म्स से जुड़ी थीं. वे टीवी देखते जहां ब्लैक लेबल स्कॉच भी होता था.

ऐसा एक अध्ययन में सामने आया. उन्होंने कहा था, “मैं तुम्हें वॉर्निंग दे रहा हूं.” “न्यूयॉर्क से लौटने के बाद जब मैंने एक बच्चे की तरह अपना धीरज खो दिया. तुम मुझे बोर करने वाला साथी मान सकते हो. मेरे लिए ग्रीन टी या कॉफी, तुम्हारे लिए सब कुछ हाजिर है.” हां, मैं उदास हो जाता लेकिन मेरे पास तुम्हारे खिलाफ हमेशा कुछ न कुछ रहेगा. तुमने मुझे अपनी आत्मकथा लिखने की इजाजत नहीं दी (खुल्लमखुल्ला), मैं जितना तुम्हें जानता हूं क्या कोई जानता है. उनका चेहरा लाल हो जाता, “यह सब भूल जाओ, मुश्किल यह है कि तुम बहुत जानते हो. और अगर तुमने कुछ ऐसा लिखा कि मैं उससे परेशान हो जाऊं, तो हमारी लड़ाई खत्म हो जाएगी.” पता नहीं मैं इस अध्याय को सही तरीके से खत्म कर पाता.

ऋषि कपूर अपने पिता के बारे में ज्यादा बात नहीं करते थे. मैंने पता लगाया था जब इस घटना का हवाला देते हुए वे शो से देर से लौटा करते, नशे में धुत्त रहते और नहीं जानते कि वे लौट रहे हैं या जा रहे हैं. अगली सुबह चिन्टू भाई अपने पिता के साथ बगल में जागते जो उन्हें प्यार कर रहे होते. डायरेक्टर के तौर पर वे आरके को कठोर अनुशासन वाला इंसान बताते, उनकी खूब खिंचाई होती जब कभी भी मेरा नाम जोकर, बॉबी जिसने इस बैनर की डगमागाती किस्मत को संवारा और प्रेम रोग के लिए संतोषजनक तरीके से वे टेक नहीं दे पाते.

लवर ब्वॉय हीरो के तौर पर उन्होंने कई हिट और फ्लॉप फिल्में देते हुए माकूल ऊंचाई भी हासिल की और बुरे दिन भी देखे. फिर भी टिकट की खिड़की पर कर्ज से ज्यादा किसी और फिल्म ने उन्हें तबाह नहीं किया जिसमें उनका प्रदर्शन न बहुत अच्छा, न बहुत खराब था. ऐसा लगता है कि कर्ज बहुत अच्छा कर रही थी लेकिन फिरोज खान की कुर्बानी ने इसके कलेक्शन को हड़प लिया.

“मैं नहीं जानता कि मुझे क्या हुआ. मैं इतना डिप्रेस हो गया कि बोतल तोड़ दी. यह समझने में मुझे बहुत समय लगा कि शो के बाजार में ऐसा ही होता है.”

वे ऐसे कलाकार थे जिन्हें कभी इस बात का पछतावा नहीं हुआ कि उनकी जोड़ी करियर शुरू करने वाली हीरोइन के साथ बना दी गयी. आरके प्रोडक्शन्स के अलावा जिन फिल्मों को वे लेकर आए जिनसे उन्हें लगाव था उनमें शामिल हैं- लैला मजनूं, रफूचक्कर, सरगम, दूसरा आदमी, कभी कभी, चांदनी, अमर अकबर एंथोनी, कूली और नसीब और यहां तक कम लोकप्रिय हुई खोज जिसमें नसीरुद्दीन शाह ने बदमाश की भूमिका निभाई थी. “मैं मानता हूं कि दर्शक मुझे अच्छे लड़के के रूप में पसंद करते थे, चलो ठीक है. शायद यही वजह है कि तुम्हारे वो आर्ट वालों ने कभी मुझसे संपर्क नहीं किया. मैं श्याम बेनेगल की फिल्म में भूखे किसान की तरह देखा नहीं जा सकता था, क्या ऐसा होता?” वे महसूस करते थे कि उनके फिल्माए दृश्यों में सबसे अटपटा था मनोज कुमार की जय हिंद में एक आतंकी की भूमिका. “लेकिन तब किसी ने मनोजजी को नहीं कहा, तो कर लिया और फ्लॉप भी हो गयी.”

अपने करियर में थोड़ी सुस्ती के बाद उनके सामने ऐसी मजबूत फिल्मों की लाइनें लग गयीं जो एक कैरेक्टर एक्टर के तौर पर उनकी दक्षता को दर्शाती हैं. खास तौर से ऐसी फिल्में हैं- दो दूनी चार, डी-डे, कपूर एंड सन्स, 102 नॉट आउट और मुल्क. फिल्म में लौटने को लेकर ऋषि कपूर बहुत विनम्र रहे और कभी उन्होंने आराम नहीं किया. उन्होंने भरपूर असाइनमेंट स्वीकार किए.

जब कभी आप बातचीत में रणबीर कपूर को ले आते, तो उनका जवाब होता, “मुझसे मत पूछो, उसी से पूछो.” और वे यहां तक आगे बढ़कर सलाह देते कि जूनियर को और अधिक व्यावसायिक फिल्मों में दिखना चाहिए न कि बॉम्बे वेलवेट जैसे प्रयोग करने चाहिए.

ऋषि और नीतू कपूर सिंह बॉलीवुड के आदर्श स्टार दंपती रहे, हमेशा स्वीकार किया कि उन्होंने कम से कम एक बड़ी बाधा वाले दौर का सामना जरूर करना पड़ा. उनके खुशमिजाज व्यक्तित्व के लिए वह शांत भी थीं और संयमित भी. और हां, दोनों ने आलिया भट्ट को अपनी बहू के रूप में मंजूर किया. तब शादी कब होगी, मैंने जानना चाहा. इसके जवाब में आंखें घुमाते हुए उनका कहना होता, “ये उन पर निर्भर है. है कि नहीं?”

किसी तरह मैं ऋषि कपूर को समर्पित अपने विवरण के आखिरी से पहले वाले पैराग्राफ तक पहुंच गया हूं. कुछ पाठकों को अपने पसंदीदा चिंटू की फिल्म से कुछ खोया हुआ लग सकता है, मैं क्षमा मांगता हूं, मैं नहीं कर सकता. बस एक सूची जोड़ दूं, ऐसा नहीं कर सकता. ऋषि कपूर के बारे में बहुत कुछ है मेरे हृदय की गहराई से और दिमाग से भी. हंसी और आंसुओं के तोहफे के साथ वे हम सबमें आत्मसात रहेंगे. जैसा कि उनकी विदाई वाली ट्वीट कहती है, ''खुद को संभालने की तुम्हारी काबिलियत का क्या हुआ?''

मैं आश्वस्त हूं कि आप नहीं चाहते कि आपके मित्र रोएं. आप बेवजह परेशान होंगे. लेकिन इस वक्त मित्र, मेरी आंखों में आंसू हैं.

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