''जब 100 नंबर डायल करते हैं लोग, कहीं न कहीं मदद की उम्मीद होती है लोगों में'' ये बात सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर निखिल सूद ने मुंबई स्थित पुलिस के इमरजेंसी कंट्रोल रूम में एक परेशान कॉलर से बात करते हुए कही, रेंसिल डी सिल्वा के निदेशन में बनी डायल 100 एक ऐसी ही धीमी गति से चलने वाली थ्रिलर की तरह होती है.
अनुज राकेश धवन का कैमरा हमें निखिल सूद के कंट्रोल रूम में ले जाता है. एक महिला की अजीब सी फोन कॉल इंस्पेक्टर निखिल के पास ट्रांसफर होती है और रुटीन कामों में उलझे इंस्पेक्टर की व्यस्तता एकदम से टूट जाती है.
महिला की आवाज में एक पूर्वाभास महसूस होता है. जैसे वो ऐसा कुछ जानती है, जो आगे होने वाला है. महिला पहले तो ये दावा करती है कि वह आत्महत्या करना चाहती है. लेकिन, बाद में अपने सही इरादे जाहिर करती है. निखिल सूद पहले इन सबके पीछे के कारणों का पता लगाने की कोशिश करता है, लेकिन जल्द ही उसे अहसास हो जाता है कि चीजें उसके कंट्रोल से बाहर हो रही हैं.
निखिल सूद अपने दिमाग में अलग-अलग कड़ियां जोड़कर ये समझने की कोशिश कर रहा है कि उसके परिवार का इस महिला से क्या संबंध है, तभी डायल 100 अपनी तरफ हमारा ध्यान खींचती है.
सेटअप एक तरह का तंत्र है, ये समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है कि निर्माताओं ने हर फ्रेम में मनोज बाजपेयी को क्यों रखा. क्लोज-अप वाले फ्रेम्स से समझ आता है कि कैसे वह अपने चेहरे की थकान को दूर कर रहे हैं. मनोज बाजपेयी अपने क्राफ्ट के मास्टर हैं. आवाज और बॉडी लैंग्वेज पर उनका गजब का कंट्रोल मनोज के किरदार को और दिलचस्प बनाता है.
जैसे-जैसे किरदारों की बाकी जानकारी हमारे सामने आने लगती है और हम पजल के बिखरे हुए टुकड़ों को मिलते हुए देखते हैं, थ्रिलर के और ज्यादा रोमांचक होने की इच्छा मन में पैदा होती है.
हालांकि, कहानी के लेखन में कई कमियां भी साफ दिखाई दे रही हैं. न्याय के लिए बदला और अपनों के लिए किसी भी हद तक जाना पहले ही बहुत व्यापक थीम है. कहानी का बेसिक प्लॉट रिवील होते ही सारे किरदार और उनके इरादे समझ आ जाते हैं, इसके बाद लगने लगता है कि फिल्म के पास कहने को कुछ बचा ही नहीं. डायलॉग बोझिल हो जाते हैं और कोई भी समझ सकता है क्या होने वाला है.
निखिल सूद अपनी चिंतित पत्नि (Sakshi Tanwar) को समझाने , अपने बेटे (Svar Kamble) को डिसिप्लिन सिखाने और अनजान महिला की अजीब शंकाओं का जवाब देने में उलझा हुआ है. पूरी फिल्म जहां एक तरह से 'मनोज बाजपेयी शो' लगती है, साक्षी तंवर और नीना गुप्ता भी 100% देते नजर आ रहे हैं. नन्दू माधव और ययेंद्र बहुगुना सीमित स्क्रीन टाइम के बावजूद हर सीन को नोटिस कराने में कामयाब रहे.
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