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गुरुदत्त: बॉलीवुड का वो सितारा, जो जिंदगी भर ‘प्यासा’ ही रह गया

10 अक्टूबर 1964 को महज 39 साल की उम्र में गुरुदत्त ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.

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गुरुदत्त वो नाम, जिसके बिना सिनेमा के इतिहास का जिक्र अधूरा है. प्रोड्यूसर, एक्टर, डायरेक्टर, साथ ही एक ऐसा इंसान, जिसके बारे में हम सोचते हैं, तो जेहन में वो बेहतरीन फिल्में आती हैं, जिनके बिना हिंदी सिनेमा अधूरा है. लेकिन अफसोस, वो सितारा सिर्फ 13 साल के लिए हिंदी सिनेमा के आसमान पर जगमगाया था.

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कर्नाटक के मैंगलोर में 9 जुलाई 1925 को पैदा हुए गुरुदत्त का पूरा नाम शिव शंकर पादुकोण था. गुरुदत्त की मां के बारे में एक किस्सा मशहूर है कि जब वो 4 साल के थे, तब गांधी जी उनके गांव आए थे. गांधी के भाषण को सुनकर उनका मां इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने गांधी जी को चिट्ठी लिखकर खुद को देश सेवा के लिए समर्पित करने का फैसला किया.

देश सेवा के लिए गुरुदत्त को छोड़ना चाहती थीं मां

गुरुदत्त की मां ने गांधी जी को खत लिखा कि मेरा एक छोटा बेटा है और मेरा पति है, लेकिन मैं ये सबकुछ छोड़कर आपके आंदोलन से जुड़ना चाहती हूं. गांधी जी ने उनके खत के जवाब में लिखा कि अगर देश की सेवा करना चाहती हो, तो अपने बच्चे की परवरिश करो और उसे बड़ा इंसान बनाओ. गांधी का ये आशीर्वाद ही था कि गुरुदत्त हिंदी सिनेमा के इतने बड़े स्टार बने थे.

मैंगलोर में पैदा हुए गुरुदत्त का बचपन कोलकाता की गलियों में बीता. बचपन से ही गुरुदत्त का मन स्कूल की किताबों में नहीं लगता था. उन्हें डांस का शौक था. डांस के लिए गुरुदत्त के पैर शुरू से ही बेचैन रहा करते थे. कोलकाता में एक समारोह में उनकी मुलाकात नृत्यकार उदय शंकर से हुई.

उदय शंकर से ली नृत्य की ट्रेनिंग

नृत्य के प्रति उनके जुनून को देखकर उदय शंकर ने उन्हें अल्मोड़ा आने का निमंत्रण दिया, जहां उदय शंकर, नृत्य प्रशिक्षण संस्थान का संचालन करते थे. गुरुदत्त उनके पास पहुंच गए और साल भर उनसे नृत्य सीखते रहे.

उदय शंकर की संस्था ने इप्टा के साथ मिलकर कुछ फिल्में बनाई थीं. गुरुदत्त की किस्मत धीरे-धीरे उन्हें बॉलीवुड की तरफ ले जा रही थी. अल्मोड़ा में ही उन्हें पुणे की कंपनी से ऑफर मिला. वहां उन्हें फिल्मों में कोरियोग्राफर की नौकरी मिल गई. पुणे में गुरुदत्त को जिस कमरे में रहने का मौका मिला, उसमें उनके साथ रहते थे देवानंद. यहीं से इन दो महान कलाकारों की दोस्ती शुरू हुई.

देवानंद, और गुरुदत्त ने एक दूसरे से वादा किया था कि जब भी उन्हें काम का मौका मिलेगा, तो एक-दूसरे को याद रखेंगे. जब देवानंद ने फिल्म बाजी बनाने का फैसला किया, तो निर्देशन की कमान गुरुदत्त को ही सौंपी. फिल्म सुपरहिट रही. बाजी के बाद की गुरुदत्त की निर्देशित दो फिल्में जाल और बाज फ्लॉप रहीं. बाज में गुरुदत्त हीरो बनकर पर्दे पर उतरे थे.

इसके बाद गुरुदत्त ने अपनी फिल्म कंपनी बना ली और 1954 में पहली फिल्म आर पार बनाई. इसके बाद गुरुदत्त ने मिस्टर एंड मिसेस 55 बनाई. ओपी नैयर के संगीत से सजी इस फिल्म के गाने बेहतरीन थे. वहीं गुरुदत्त की फिल्म चौदहवीं का चांद तो हिंदी की दस सर्वश्रेष्ठ म्यूजिकल फिल्मों में से एक है.

इसके बाद 1957 में आई गुरुदत्त की क्लासिक फिल्म प्यासा, फिर कागज के फूल और साहब बीवी गुलाम. ये फिल्में हिंदी सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर बन गईं.

वहीदा रहमान और गुरुदत्त की नाकाम मोहब्बत

बॉलीवुड के इतिहास के पन्नों में कई ऐसी प्रेम कहानियां दफ्न हैं, एक साथ काम करने वाले हीरो-हिरोइन में अफेयर होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन बॉलीवुड में कई ऐसे रिश्ते भी बने, जो आज भी याद किए जाते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है गुरुदत्त और वहीदा रहमान की है. जब वहीदा ने बॉलीवुड में एंट्री की तो उस वक्त गुरुदत्त शादीशुदा थे. उनकी पत्नी का नाम गीता दत्त था, दोनों की जिंदगी खुशहाल चल रही थी.

गुरुदत्त ने जब वहीदा को देखा, तो उनकी खूबसूरती के कायल हो गए. गुरुदत्त और वहीदा की नजदीकियां बढ़ने लगीं, तो गीता दत्त की परेशानी भी बढ़ गई. पति-पत्नी के रिश्ते में दरार पड़ गई. गुरुदत्त अपनी पत्नी को छोड़ वहीदा के साथ ही रहने लगे. दोनों ने एक साथ कागज के फूल नाम की फिल्म की, दो बुरी तरह फ्लॉप हो गई.

फिल्म के फ्लॉप होने पर गुरुदत्त निराशा में डूब गए. गम में गुरुदत्त ने खुद को शराब में डुबो लिया. एक तरफ फिल्म का फ्लॉप होना, तो दूसरी तरफ रिश्तों को लेकर भ्रम 10 अक्टूबर 1964 को उन्होंने जरूरत से ज्यादा नींद की गोलियां खा लीं और उनका निधन हो गया.

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