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इंदु सरकार रिव्यू: इमरजेंसी पर बनी इस फिल्म में कुछ खास नहीं

इंदु सरकार एक काल्पनिक ब्लेक एंड वाइट ड्रामा है 

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इंदु सरकार उन चुनिंदा फिल्मों में से है जिन्हें मूवी थिएटर तक पहुंचने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा. मधुर भंडारकर की इस फिल्म ने रिलीज होने से पहले ही दर्शकों में उत्सुकता जगा दी. लेकिन जब आप फिल्म देखेंगे तो इसके चारों ओर घूम रही कहानी आपको आश्चर्य में जरूर डालेगी.

और हां फिल्म में 'इंदु' इंदिरा गांधी नहीं हैं. फिल्म में कीर्ति कुलहरी के किरदार को यह नाम दिया गया है. इंदु की शादी एक महत्वाकांक्षी सरकारी नौकरी करने वाले नवीन सरकार (तोता रॉय चौधरी) से होती है. वो नेताओं के साथ मिल इमरजेंसी के हर फायदे को उठाने की कोशिश करता है.

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बहुत सी अच्छी फिल्मों के खिताब जीतने के बाद मधुर भंडारकर ने इंदु सरकार के जरिए जिन्दगी का एक नया नजरिया दिखाने की कोशिश की है. इंदु के हकलाने के कारण कोई उसे अपनाने को तैयार नहीं था. उसके अकेलेपन और दुख उसकी लिखी कविताओं में रंग भर देता है.

फिल्म में इंदु ने एक अच्छी पत्नी का किरदार निभाया है. यहां तक कि अपने पति के बॉस की पार्टी में हिचकिचाती-शर्माती इंदु ने अपनी कविता से सब लोगों के दिलों को छू लेती है.

फिल्म की कहानी शुरू होती है, 27 जुलाई 1975 से, एक पुलिस जीप दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर के पास एक बस्ती में रुकती है. एक पुलिस वाला (जाकिर हुसैन) बस्ती में सभी आदमियों को वैन में भर कर जबरदस्ती नसबंदी कराने के लिए ले जाने के ऑर्डर देता है. ये देख पूरी बस्ती में चीख-पुकार मच जाती है. यहां सारे किरदारों ने ओवरएक्टिंग की है.

इसके बाद फिल्म में तुर्कमान गेट का हादसा सामने आता है.इसमें पूरी की पूरी बस्ती को जला दिया जाता है. कईयों की क्रूरता से हत्या कर दी जाती है. कई बेघर हो जाते हैं.

इसी बीच इंदु दो अनाथ बच्चों से मिलती है. तब इमरजेंसी की कड़वी और डरावनी सच्चाई से उसका सामना होता है.

इंदिरा गांधी के आदेश पर लगाई गई इमरजेंसी ने एक आम इंसान से लेकर प्रेस तक की आजादी को पूरी तरह खत्म कर दिया था. उस काले इतिहास की कहानी बहुत डरावनी थी लेकिन फिल्म में ऐसा कुछ नया देखने को नहीं मिला.

बल्कि भंडारकर ने इंदु के परिवार पर हो रही तानाशाही जैसे मुद्दों पर ज्यादा फोकस किया है. इंदु और उसके पति के बीच फिल्माए गए कुछ सीन बहुत ही एंगेजिंग हैं.

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नवीन एक महत्वाकांक्षी इंसान है जो अपने सपनों के बीच किसी को नहीं आने देता. तोता रॉय चौधरी का किरदार फिल्म में पूरी ईमानदारी से निभाया गया है. लेकिन फिल्म पूरे भारत पर इमरजेंसी के प्रभाव को दर्शाने में नाकामयाब रही.

फिल्म का क्लाइमेक्स एक लंबे भाषण के साथ खत्म होता है. यह फिल्म एक बॉलीवुड कोर्ट-रूम ड्रामा है. लेकिन फिल्म की हिरोइन कीर्ति कुलहरी ने ‘पिंक’ की तरह ‘इंदु सरकार’ में भी जबरदस्त एक्टिंग की है.

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नील नितिन मुकेश ने बेहतरीन तरीके से संजय गाधी के किरदार को निभाया है. इंदु सरकार एक काल्पनिक ब्लैक एंड वाइट ड्रामा है. इस फिल्म में कीर्ति कुलहरी और नील नितिन मुकेश की ईमानदार कोशिश के अलावा और कुछ भी नहीं है.

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