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Jaadugar Film Review: कहानी, किरदारों और बैकड्रॉप तक ने बिखेरा जादू

फिल्म जादूगर (Jaadugar Movie) वाकई जादू की तरह दर्शकों पर छा जाती है.

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फिल्म जादूगर (Jaadugar Movie) वाकई जादू की तरह दर्शकों पर छाता है. इस एक क्यूट सी कहानी में कई मुद्दों को छू लिया गया है. और काफी गंभीरता से छुआ है. तलाकशुदा महिला. टीम वर्क. प्यार पाने नहीं, देने का नाम है. और ये सब जिस देसी बैकड्रॉप पर दिखाया गया है वो इसे खास बनाता है.

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फिल्म की टीम ने मीनू, इच्छा, दिशा जैसे पात्रों के नाम रखने में भी खासा वक्त दिया होगा

जादूगर का एक दृश्य इसकी टीम की रचनात्मकता की वजह से दर्शकों के मन में लंबे समय तक जगह लेगा या बहुत से नए प्रेमियों को प्रेम की नई राह दिखाएगा. यह दृश्य संवाद में सिर्फ हिंदी के प्रयोग से ज्यादा प्रभावी बन पड़ा है. दृश्य में जितेंद्र कुमार ,आरुषि शर्मा को उसके घर का रास्ता भूलने पर मदद करते कहते हैं 'घण्टी की धुन पे आप गलत रास्ता पकड़ोगी तो वो बस एक संयोग होगा'

आरुषि शर्मा को उसके घर की बालकनी में बुला कर जितेंद्र कुमार द्वारा जादू दिखाने वाला दृश्य भी बड़ा ही बेहतरीन बन पड़ा है

जितेंद्र कुमार के स्क्रीन पर बेहतर लगने का मुख्य कारण उनके चेहरे का दर्शकों के आम चेहरे जैसा होना ही है उन्हें देख आपके मन में किसी चॉकलेटी अभिनेता का चेहरा नहीं आएगा. इस चेहरे के साथ शुद्ध हिंदी में संवाद अदायगी उन्हें और बेहतर बना देती है. यह बात फिल्म निर्देशक समीर सक्सेना भी अच्छी तरह से समझते हैं इसलिए फिल्म में जितेंद्र आपको 'इंटरवल' की जगह 'अंतराल' बोलते दिखते हैं. जितेंद्र कुमार के लिए फिल्म जादूगर के संवादों को भी जुमलेबाजी के तौर पर लिखा गया है और यही इसको खास बनाती है. 'नाम दिशा है, है दिशाहीन' , 'मैं मीनू रातों की नीदें छीनूं', 'जिसने दलदल में फेंका है, उससे रस्सी फेंकने की उम्मीद तो कर ही सकता हूं' इसके उदाहरण हैं

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निर्देशक इम्तियाज अली की खोज आरुषि शर्मा को इस फिल्म से नई पहचान मिलेगी. वह स्क्रीन पर अच्छी तो दिखती ही हैं, उनके अभिनय में भी सादगी है. एक फुटबॉल कोच और चाचा की भूमिका में जावेद जाफरी ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है. मनोज जोशी और पूरनेंदु भट्टाचार्य जैसे काबिल अभिनेताओं को स्क्रीन पर जितना समय भी मिला उन्होंने बेहतर किया.जितेंद्र के करीबी दोस्त बने राज कुशल भी फिल्म में अपने अच्छे अभिनय से लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने में कामयाब रहे हैं.

आरुषि शर्मा और मनोज जोशी के बीच पिता-पुत्री का रिश्ता ऐसे बुना गया है कि दर्शक उसके लिए अपना दिल निकाल कर रख देंगे. फिल्म के सम्पादन में कहीं कोई कमी नहीं लगती और पटकथा भी कहानी के साथ न्याय करती है. जावेद जाफरी के पात्र को थोड़ा और गहराई से दिखाया जाता तो बेहतर रहता. जादूगर का छायांकन बड़ा ही आकर्षक है अमृतसर और भोपाल की गलियों को कैमरे में बड़ी ही खूबसूरती के साथ उतारा गया है जितेंद्र कुमार की जादूगरी देखने में दर्शक अपनी आंखों के सामने ही जादू होता महसूस करेंगे, फुटबॉल मैच को भी बड़े रोचक तरीके से स्क्रीन पर दिखाया गया है

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'जादूगरी' गीत के बोल दर्शकों के दिमाग में कुछ दिन अपना जादू जरूर बरकरार रखने में कामयाब होंगे. फिल्म के बाकी गीत उसकी कहानी के ही हिस्से जान पड़ते हैं. जादू के दौरान बैकग्राउंड में बजता पार्श्व संगीत दर्शकों के दिल की धड़कनें बढ़ाने में कामयाब रहा है और फुटबॉल मैच के दौरान भी यह संगीत कमाल दिखाता है.

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