कंगना फिर टीवी पर हैं. नेशनल टीवी पर. होंठ लरज रहे हैं. चेहरा तमतमा रहा है. गालों की सुर्खी पूरे चेहरे पर फैल रही है. आंखों की कोर पर आंसू के कुछ कतरे ठहरे हुए हैं. लगता है कि बस अगले सवाल के जवाब में गालों तक एक बूंद ढुलक आएगी. सवाल तूफानी हैं. जवाब बवंडर हैं. सवालों और जवाबों के बीच वो शख्स है जिसे कंगना के कहे मुताबिक उन्होंने टूटकर प्यार किया. ऋतिक रोशन.
लेकिन ये कहानी न तो ऋतिक के बारे में है. न कंगना और ऋतिक के रिश्ते के बारे में. ये कहानी कंगना और बॉलीवुड के बड़े परिवारों के टकराव के बारे में भी नहीं.
सच पूछिए तो ये कहानी उस लड़की के बारे में है जिसने 17 साल की उम्र में घर छोड़ दिया. जिसने तय किया कि जिंदगी में अपना कुछ हासिल करना है. अपने दम पर करना है. और उसने किया. और दुनिया ने इस कामयाबी के लिए उसे सलाम भी किया. बीते कुछ सालों में मंडी की लड़की ने मुंबई में अपने पांव मजबूती से जमा दिए हैं. वो बढ़ती ही जा रही है. शायद इसलिए कंगना अपनी आने वाली फिल्म सिमरन के ट्रेलर में कहती भी हैं:
मुझे लगता है जैसे मेरी पीठ से तितली की तरह दो छोटे-छोटे पंख निकल रहे हैं और फिर वो फैलने लगते हैं.
आजादी से जीने में यकीन
अपनी कई महत्वाकांक्षाओं के साथ कंगना ने मायानगरी मुंबई में कदम रखा था. शुरुआती नाकामी के बावजूद कदम टिकाए रखे. दिक्कत फिल्म इंडस्ट्री में आने के बाद से ही नहीं शुरू हुई. दिक्कतों से जूझते हुए ही वो यहां तक पहुंचीं भी.
घर के माहौल में सख्ती थी. हर मिडिल क्लास फैमिली की तरह ही उन पर भी पढ़ाई का दबाव था. लेकिन पढ़ाई के बाद लड़कियां अपना करियर बनायें इसपर जोर न देकर अच्छे घर में शादी हो जाए इसे लेकर बातचीत होती थी. उन्हीं के शब्दों में मानो बस पैकेज की डिलिवरी करनी हो.
कंगना कई इंटरव्यू में कह चुकी हैं-
मैं बचपन से बहुत जिद्दी और हर चीज के लिए बहुत रिबेल थी. यही वजह थी कि मेरे पापा जब मेरे भाई को अगर कोई लड़कों जैसा खिलौना लाकर देते और मुझे लड़कियों वाला तो मैं वो खिलौना लेती ही नहीं थी.
यानी सिर्फ लड़की होने की वजह से उनके साथ ऐसा बर्ताव हो, बंदिशें लगाई जाएं ऐसा कतई पसंद नहीं था. इसलिए 12वीं में कंगना जब किसी सब्जेक्ट में पास नहीं हो पाई तो घर पर बिना बताए कुछ अलग करने की धुन के साथ दिल्ली की ओर निकल पड़ीं.
एक्टिंग को करियर के तौर पर चुनने के फैसले से परिवार से दूरी बढ़ गई थी. नए शहर में कंगना की पहचान बस इतनी थी- एक पहाड़ी लड़की जिसके पास दांव पर लगाने के लिए कुछ नहीं था.
करियर और अवाॅर्ड्स
दिल्ली में कंगना एक मॉडलिंग एजेंसी के साथ जुड़ीं और फिर मशहूर थिएटर आर्टिस्ट अरविंद गौड़ के साथ उन्होंने रंगमंच में हाथ आजमाया. फिल्म में काम मिलना आसान नहीं था. फिल्म इंडस्ट्री में एंटर करने के बाद अच्छी अंग्रेजी न बोल पाने की वजह से कई जगह से रिजेक्शन झेला. 17 साल की उम्र थी, जब अनुराग बासु से उनकी मुलाकात हुई, और फिर लगभग 20 ऑडिशंस के बाद उन्हें गैंगस्टर (2006) के लिए फाइनल किया गया. 17 साल की उस लड़की के भीतर की हिम्मत समझनी तो सिर्फ इस बात से समझिए कि उतनी उम्र में उन्होंने आदित्य पंचोली पर परेशान करने के लिए न सिर्फ केस दर्ज कराया बल्कि उसे कामयाबी से अंजाम तक भी पहुंचाया.
कंगना ने अपनी पहली ही फिल्म के लिए बेस्ट फीमेल डेब्यू का ग्लोबल इंडियन फिल्म अवार्ड्स 2006 में हासिल किया.
उसके बाद कंगना फैशन, क्वीन, तनु वेड्स मनु, रिटर्न्स जैसी एक के बाद एक बेहतरीन फिल्में देती रहीं और अवाॅर्डस बटोरती रहीं.
कंगना ने फैशन (2008) के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवार्ड जीता था जबकि क्वीन (2014) और तनु वेड्स मनु रिटर्न्स (2015) के लिए उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल अवॉर्ड मिला था. इसके अलावा वो चार बार फिल्मफेयर अवाॅर्ड भी जीत चुकी हैं.
बहन को बनाया ‘फाइटर’
कंगना मुश्किल हालातों में जिस तरह अपनी बहन का सहारा बनीं उसमें दर्द और गर्व दोनों छिपा है. दरअसल, कंगना ने एक फेयरनेस क्रीम का एड करने से ये कहते हुए इंकार कर दिया था कि- उनकी बहन सांवली और खूबसूरत है , ऐसे एड करके वो उनका और उन जैसी कई लड़कियों का मनोबल नहीं गिरा सकतीं.
वहीं से पूरी दुनिया का ध्यान उनकी बहन रंगोली और कंगना पर गया और उनके जीवन की एक बिलकुल ही नई कहानी लोगों के सामने आई. कंगना की बहन एक एसिड अटैक सर्वाइवर हैं. कंगना उस समय संघर्ष कर रही थीं जब उनकी बहन पर एसिड अटैक हुआ.
एक इंटरव्यू में रंगोली ने कहा था-
‘ये ताकत इतनी आसानी से नहीं आती. मेरे माता पिता वही फिल्मी ड्रामा करने में व्यस्त थे कि अब इससे कौन करेगा शादी, इसका क्या होगा.’
ये ताकत कंगना थीं. उन्होंने अपनी बहन के खोते जा रहे आत्मविश्वास को बचाया. ट्रीटमेंट के दौरान उसके साथ रहीं. अपने साथ काम करने के लिए मोटिवेट किया. साल 2014 से ही वो कंगना के मैनेजर के तौर पर काम कर रही हैं.
कांट्रोवर्सी भले ही कंगना की लाइफ का हिस्सा बन गया हो पर कंगना जानती हैं कि उनके पास सिवाय काम के और कुछ भी नहीं है साबित करने को. इसलिए वो बस काम किए जा रही हैं उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि उनके निजी जीवन-संघर्ष के बारे में जानकर दुनिया उन्हें किस तरीके से जज करेगी या कर रही है.
आप में से कई लोग मुझे लड़ाकू, बागी और ना जाने क्या-क्या समझते और कहते होंगे, मगर अब मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. मैं अपना हक हासिल करने में यकीन करती हूं. फिर चाहे मुझे उसे लड़कर ही क्यों ना हासिल करना पड़े.कंगना रनौत
ऐसी ही है कंगना--बेलौस, बेबाक, बेसाख्ता. जो बोलने से पहले सोचती नहीं. दिल में जो आता है वो जुबां पर उतरने में देर नहीं लगती.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)