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मजरूह सुल्तानपुरी: वो शायर जिसे ‘नेहरू’ ने पहुंचाया जेल!

मजरूह वो शायर थे जिन्होंने खुद को अपनी गजलों में जिया...

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(इस आर्टिकल को सबसे पहले 24 मई, 2016 को प्रकाशित किया गया था. क्विंट के आर्काइव से इसे दोबारा पब्लिश किया जा रहा है.)

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एक शायर था. कई हजार फिल्मी गाने भी लिखे. लेकिन, वो अपने गानों को नौटंकी कहता था. सियासत के साथ 36 के आंकड़े ने जेल भी पहुंचाया. लेकिन, मार्क्स और लेनिन को पढ़ने वाला ये शायर सियासतदानों के आगे न झुका. ये शायर था मजरुह सुल्तानपुरी. मजरूह मतलब घायल. और, शायर के इसी घायल दिल से निकले वे शब्द जो अमर हो गए.

मजरूह की रूह में थी सिर्फ गजल

मजरूह सुल्तानपुरी ने गीली मिट्टी की सौंधी खुशबू लिए बाबू जी धीरे चलना से लेकर आज में ऊपर...आसमां नीचे जिंदा गाने लिखे. लेकिन उन्होंने कभी अपने गानों को नहीं सुना.

मजरूह वो शायर थे जिन्होंने खुद को अपनी गजलों में जिया.

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और...नेहरू पर लिखे शेर ने पहुंचाया जेल

ये जश्न-ए-आजादी के दौर की बात है. शहर-शहर, गांव-गांव आजादी का जश्न मनाया जा रहा था. खुद मजरूह सुल्तानपुरी ने सन् 1947 में प्रगतिशील लेखकों के साथ मिलकर आजादी का जश्न मनाने के लिए सड़कों पर नाचते हुए बहुत ऊंचा बांस का कलम बनाया. क्योंकि, उनके अनुसार आजाद मुल्क में कलम की आजादी जरूरी थी. शोषितों के लिए धड़कने वाला मजरूह का दिल इस नए आजाद मुल्क में समानता के अधिकार के लिए जंग चाहता था.

और, एक दिन मजदूरों की एक सभा में मजरूह सुल्तानपुरी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू पर एक शेर सुना दिया.

नेहरू और खादी के खिलाफ लिखे गए इस गीत ने उस दौर की सियासतदानों को आगबबूला कर दिया. मोरारजी देसाई (मुंबई के तत्कालीन गर्वनर) ने उन्हें ऑर्थर रोड जेल में डाल दिया और गीत के लिए माफी मांगने को कहा.

लेकिन, अपने इरादों में यकीं रखने वाले मजरूह ने माफी मांगने से इनकार कर दिया और 2 साल तक सलाखों के पीछे रहे.

लेकिन, जेल की सलाखों के पीछे से भी इस शायर की सफलता का परचम लहरा रहा था. सुल्तानपुरी के गाने देश के बच्चे-बच्चे की जुबां पर लहरा रहे थे. ऐसे में सियासत को थक-हारकर मजरूह को कैद से आजाद करना पड़ा.

बस, इतना सा था पीड़ितों के लिए तड़पने वाले इस शायर की सियासतदानों से जंग का किस्सा.

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