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‘GOLD’ में कई यादगार लम्हे तो हैं, लेकिन चमक नहीं

15 अगस्त को देश भर में रिलीज हो गई है ‘गोल्ड’

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फिल्म रिव्यू: ‘गोल्ड’ कई यादगार लम्हें तो हैं, लेकिन चमक नहीं

जब भी कोई स्पोर्ट्स की फिल्म देखता है, खासतौर पर हॉकी की तो उसे साल 2007 में आई 'चक दे इंडिया' याद आ जाती है. जो कई मुद्दों को छूती है. जैसे महिला हॉकी की विजयी कहानी है और अंदरूनी विवाद. और आखिर में गोल्ड चक लिया जाता है.

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'गोल्ड' को रीमा कागती ने डायरेक्ट किया है जिन्होंने पहले ‘हनीमून ट्रैवल्स’ और ‘तालाश’ जैसी फिल्म बनाई हैं. गोल्ड में देशप्रेम है, जिससे अक्षय कुमार के लिए ये घर की बात जैसा हो गया.

राजेश देवराज का स्क्रीनप्ले हमें एहसास दिलाता है, जैसे 'गोल्ड' को कोई फिक्शनल मूवी हो. जबकि ये कहानी 1948 की है जब समर ओलंपिक्स में अपने होम ग्राउंड पर आजाद भारत ने अपना पहला गोल्ड जीता था.

फिल्म की रियल कहानी ही बताने के लिए काफी है, लेकिन फिर भी इसे ज्यादा ड्रैमेटिक करने की कोशिश की गई है.

फिल्म की शुरुआत 1936 के बर्लिन ओलंपिक्स से शुरू होती है, जब भारत चैंपियन बनता है, लेकिन ये जीत अपनी नहीं लगती, क्योंकि जीतने के बाद यूनियन जैक यानी इंग्लैंड का झंडा फहराया जाता है.

भारत पर अंग्रेजों का राज था. लेकिन एक सनकी जूनियर टीम मैनेजर तपन दास (अक्षय कुमार) आजाद भारत में ओलंपिक्स का गोल्ड लाने का सपना देखता है.

आखिरकार भारत को आजादी मिलती है, लेकिन ओलंपिक्स के नेशनल टीम बनाकर गोल्ड लाना किसी सीधी चोटी पर चढ़ने से कम नहीं था.

फिल्म में कई लम्हें हैं जो छू जाते हैं. जैसे बर्लिन ओलंपिक्स में ब्रिटिश एंथम बज रहा होता और तपन दास सीने में छुपाए हुए तिरंगे की झलक दिखाता है. जीत तो हो जाती है, लेकिन टीम के मेंबर अपनी धरती को जीत का श्रेय देते हैं. हालांकि सबके अंदर आजाद भारत में खेलने का सपना छिपा होता है लेकिन कोई कुछ नहीं बोल पाता.

इसके अलावा भारत के पार्टिशन होने पर जब पुराने दोस्त और टीम के मेंबर अलग हो जाते हैं, तब उस समय का दर्द भी बहुत ही बखूबी से दिखाया गया है.

ये ‘चक दे’ वाले खास लम्हें ही ‘गोल्ड’ को स्पेशल बनाते हैं.

इसके बाद जब दोबारा टीम बनाई जाती है, जिसमें अलग -अलग जाती-वर्ग के लोग इकट्ठा होते हैं उसे भी काफी अच्छे तरीके से पेश किया गया है.

रघुबीर प्रताप सिंह का रोल कारोबारी अमित साध ने किया है. वहीं, हिम्मत सिंह का किरदार सन्नी कुशल ने निभाया है, जोकि फिल्म के लिए सरप्राइज पैकेज है.

कुणाल कपूर और विनीत सिंह ने भी अपने किरदार को बखूबी निभाया है, जिसे देखकर उनसे सहानूभूति होती है.

फिल्म भीड़ इक्टठा कर सकती है, उत्साही है लेकिन वो पंच वाली बात नहीं है. अक्षय कुमार और उनकी ऑनस्क्रीन पत्नी मौनी रॉय के बीच रोमांस दिखाया गया है, लेकिन वो बिल्कुल भी नहीं जमता.

लेकिन इन कमियों के बावजूद आप अपने आपको गोल्ड के आगे आखिरकार सरेंडर कर ही दोगे.

आखिरी के 30 मिनट में आपको सीट से हिलने का मन नहीं करेगा. फील्ड पर हॉकी को काफी अच्छे से कॉरियोग्राफ किया गया है. गोल्ड कहीं न कहीं आपके दिल को छू लेगी. अगर आपके अंदर थोड़ा सा भी देशभक्ति वाला जज्बा है तो वाकई में गोल्ड को कुछ असली पलों के लिए देखिए.

5 में से 3 क्विंट.

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