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रेप के मुद्दे पर बहस करती फिल्म Section 375 में कितना हुआ इंसाफ?

फिल्म ‘सेक्शन 375’ की कहानी सीधी और सरल है. 

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Section 375

रेप के मुद्दे पर बहस करती फिल्म Section 375 में कितना हुआ इंसाफ?

(चेतावनी: इस समीक्षा में स्पॉइलर्स शामिल हैं.)

लड़के दोषी है या नहीं? लड़की दोषी है या नहीं? कोर्टरूम पर आधारित फिल्म निर्माता अजय बहल की फिल्म सेक्शन 375 इन्हीं सवालों के इर्द-गिर्द घूमती है. ये फिल्म शुक्रवार को रिलीज होने वाली है. मनीष गुप्ता की लिखी ‘सेक्शन 375’ में अक्षय खन्ना, ऋचा चड्ढा, मीरा चोपड़ा और राहुल भट्ट सशक्त किरदारों में हैं. लिहाजा दर्शक पेचीदे आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच अपना आकलन करने और सोच बनाने को मजबूर हो जाते हैं. इन आरोपों-प्रत्यारोपों में सबकुछ है - मानवीय रिश्ते, संबंध, वर्किंग प्लेस की उठा पठक, अहंकार, लालच और बेवफाई.

फिल्म ‘सेक्शन 375’ के शुरू में ही हाई प्रोफाइल वकील तरुण सलूजा के रूप में अक्षय खन्ना फिल्म की थीम स्पष्ट कर देते हैं. लॉ छात्रों के बीच भाषण देते हुए वो उदाहरण के लिए निर्भया केस का जिक्र करते हैं. छात्रों से कहते हैं, “इंसाफ खयाली होता है, जबकि कानून हकीकत.”

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बलात्कार के दोषी को भी कानूनी डिफेंस का अधिकार है. ये तरुण की दलील होती है, जब उसकी पत्नी उससे रोहन का केस लड़ने पर सवाल करती है, जबकि रोहन को निचली अदालत दोषी ठहरा चुकी है.

बाकी फिल्म में सच और झूठ का रोचक घालमेल

फिल्म ‘सेक्शन 375’ की कहानी सीधी और सरल है. फिल्म निर्माता रोहन खुराना (राहुल भट्ट) पर अपने घर में जूनियर कॉस्ट्यूम असिस्टेंट, अंजली डांगले (मीरा चोपड़ा) के साथ बलात्कार करने का आरोप है. मौके पर मिले सभी सबूत उसके खिलाफ हैं. निचली अदालत रोहन को दोषी करार देते हुए 10 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाती है. रोहन की पत्नी मुंबई हाई कोर्ट में केस लड़ने के लिए नामी-गिरामी वकील तरुण सलूजा (अक्षय खन्ना) से संपर्क करती है. दबंग हीरल गांधी (ऋचा चड्ढा) दोषी के खिलाफ वकील है. एक ऐसा केस, जिसमें पहली नजर में कोई दम नहीं दिखता, बाकी फिल्म में सच और झूठ का रोचक घालमेल बन जाता है.

कहानी और पटकथा लेखक मनीष गुप्ता और अजय बहल (अतिरिक्त पटकथा लेखक) एक के बाद एक दर्शकों को घटनाओं की कड़ी, बयानों के संदर्भ, कबूलनामा और गवाहों के बयान के जरिये नए-नए अनुमान लगाने पर मजबूर करते हैं. दर्शक कल्पना करने लगते हैं कि रोहन और अंजली की मुलाकात में यही हुआ होगा.

मजबूती के अलावा सेक्शन 375 में कुछ खामियां भी हैं. फिल्म के दोनों मुख्य किरदार वकील हैं (अक्षय और ऋचा), जो दोषी के पक्ष में और विरुद्ध बहस करते हैं. एक खामी इनमें है.

“बलात्कार के दोषी को भी कानूनी डिफेंस का अधिकार है.” तरुण की पत्नी पूछती है कि जब निचली अदालत ने रोहन को दोषी ठहरा दिया गया, तो तरुण ने उसका केस हाथ में क्यों लिया? इस सवाल पर यही तरुण का जवाब होता है. इसके बाद वो एक-एक कर रोहन पर लगाए तमाम आरोपों का जवाब देता है. इस प्रक्रिया में कई ग्रे एरिया हैं, जो मुकदमे को दिलचस्प बनाते हैं.

अक्षय का किरदार बिल्कुल साफ है. उसका बैकग्राउंड, परिवार, घर के बारे में स्पष्ट दिखाया गया है. वो स्मार्ट तरीके से कमबैक करता है. लेकिन हीरल के रूप में ऋचा शायद ही ऐसा कर पाती हैं.

दोषी का केस लड़ रहे तेज-तर्रार अक्षय की पत्नी की अपनी सोच है, लेकिन वो अपने पति के पक्ष में है. ऋचा एक महत्त्वाकांक्षी वकील है और महिलाओं के अधिकारों के प्रति सचेत है. प्रोग्रेसिव ब्वॉय फ्रेंड से उसका ब्रेकअप हो जाता है (जो ब्रेक अप के बाद भी उसकी मदद करता है). कभी-कभी मुंबई हाई कोर्ट के सामने प्रदर्शन भी जरूरत से ज्यादा लगने लगता है.

सेक्शन 375 जैसी फिल्म के वजूद पर सवाल नहीं उठाना चाहिए. फिर भी थोड़ा अटपटा लगता है जब फिल्म का एक किरदार कहता है “जो कानून महिलाओं के संरक्षण के लिए बने हैं, ये केस उन्हीं कानूनों को अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का क्लासिक केस है.” MRAs को स्टैंड पर #MenToo का हल्ला मचाते साफ सुना जा सकता है. जबकि वास्तविक रेप और यौन शोषण की संख्या झूठे मामलों की तुलना में कहीं ज्यादा है.

लेकिन जैसा तरुण फिल्म सेक्शन 375 के अंत में कहता है, “हम यहां इंसाफ के कारोबार में नहीं हैं. हम यहां कानून का धंधा कर रहे हैं.” तो क्या मुकदमे के अंत में कानून असरदार तरीके से लागू हुआ? हां. क्या इंसाफ मिला? इसका फैसला आपपर छोड़ा जाता है.

द क्विंट की रेटिंग: साढ़े तीन सितारे.

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