‘सड़क 2’ का ट्रेलर 12 अगस्त को रिलीज हुआ और वो तुरंत ही अब तक का दूसरा सबसे ज्यादा नापसंद किया जाने वाला ट्रेलर बन गया. लेकिन इस इंटरनेट ट्रोलिंग का जो भी कारण रहा हो, मैं ये कहना चाहती हूं कि जो सड़क 2 के खिलाफ 'सड़क' पर आ गए थे, उन्हें इस फिल्म को खराब बताने की जरूरत नहीं है. ये काम 'सड़क 2' खुद ही कर देती है. सोच भी नहीं सकते, उतनी खराब.
महेश भट्ट ने 1991 में 'सड़क' बनाई थी. ये फिल्म एक टैक्सी ड्राइवर और देह व्यापर के धंधे में धकेली गई पूजा भट्ट की कहानी थी. फिल्म के विलेन सदाशिव अमरापुरकार ने अपनी एक्टिंग से इसे रोमांचक बनाए रखा था.
'सड़क 2' में बूढ़े हो चुके संजय दत्त हैं, जो अपने यंग अवतार की तरह इसमें भी उतने ही गुस्सैल हैं. इस फिल्म से डायरेक्शन में एक तरह से वापसी कर रहे महेश भट्ट ने शायद सोचा होगा कि नॉस्टेल्जिया से शायद बात बन जाएगी. ओरिजिनल फिल्म के कुछ सीन इस नई फिल्म में भी डाले गए हैं, जिससे कि लोग एकदम से फिल्म को छोड़ न दें.
लेकिन इसे पूरा देखना एक चुनौती है.
जिस तरह मेंटल इलनेस और सुसाइड को इसमें दिखाया गया है वो आपत्तिजनक है. रवि (संजय दत्त) ने पूजा (पूजा भट्ट) को कुछ महीने पहले ही खोया है और उसके पास अब सिर्फ अपनी टूर एंड ट्रेवल कंपनी बची है, जो उसने पूजा के साथ शुरू की थी. पूजा ने जो आखिरी बुकिंग की थी, वो रवि के दरवाजे पर आती है. ये अमीर बिजनेस परिवार की आर्या (आलिया भट्ट) है. वो कैलाश जाना चाहती है और धीरे-धीरे फेक और ढोंगी बाबाओं का पर्दाफाश करने के अपने मिशन का खुलासा करती है. लोगों से अंधविश्वास में भरोसा न करने की बात कहने के लिए वो पैम्फलेट बांटती है. और जल्दी ही अपने बॉयफ्रेंड आदित्य रॉय कपूर के साथ खुद को अपनी मां की आखिरी इच्छा पूरा करने के लिए कैलाश मानसरोवर की रोड ट्रिप पर पाती है.
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