‘आर्टिकल 15’ राज्य को धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव करने से रोकता है.
आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘आर्टिकल 15’ जातिगत भेदभाव की कुप्रथा पर एक साफ और सीधी टिप्पणी है. ये फिल्म ऊंची जाति के आधिपत्य और सामाजिक अन्याय को दिखाने से बिल्कुल भी नहीं डरती.
कहानी कुछ ऐसी है कि आईपीएस अयान रंजन (आयुष्मान खुराना) ने सेंट स्टीफन से पढ़ाई की है और हाल ही में विदेश से लौटे हैं. विदेश से लौटने के बाद अपने आस-पास की चीजों को देखकर वो परेशान हो जाते हैं. एक सीन में, पुलिस अधिकारियों से जब उनकी जाति के बारे में पूछताछ की जाती है, तो वे आसानी से सबकुछ बता देते हैं.
ये ऐसे लोग हैं जिनकी पहचान उनकी जाति से आती है और उनकी पूरी दुनिया इसी नजरिए से सोचती है.
‘2014 में हुए बदायूं गैंगरेप और दो लड़कियों की हत्या कर पेड़ पर लटकाने की घटना को याद दिलाते हुए फिल्म दिखाती है कि कैसे कई ताकतें अपराधियों को बचाती और पीड़ितों को परेशान करती हैं.’
ये डायरेक्टर अनुभव सिन्हा और को-राइटर गौरव सोलंकी का टाइट स्क्रीनप्ले है, जो कहानी को इतनी गहराई देती है.
सोचने और सवाल पूछने पर मजबूर करती है फिल्म
फिल्म में कास्टिंग काफी शानदार की गई है. एक सच्चे और ईमानदार पुलिस अफसर के रोल में आयुष्मान खुराना, शहर के लड़के के रोल में जीशान अय्यूब, और बाकी की कास्ट, शायोनी गुप्ता, कुमुद मिश्रा, मनोज पाहवा, ईशा तलवार, आशीष वर्मा और रोनजिनी चक्रवर्ती सभी अपने रोल में शानदार हैं.
'आर्टिकल 15' हाशिए के लोगों को विश्वास में लेने और उन्हें साथ लेकर चलने का संदेश देती है.
ये हमें सोचने, सवाल पूछने और अपने अंदर झांकने के लिए मजबूर करती है. स्टेटस को लेकर हमें थोड़ा असहज बनाती है. एक पॉवरफुल सिनेमा ऐसा ही करता है.
इस फिल्म को 5 में से 4 क्विंट!
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