आजकल की फिल्मों में 50 साल की उम्र से ज्यादा के कुछ सुपरस्टार्स को अपने से आधी उम्र की लड़की से रोमांस करते देखना आम बात है. वक्त और आलोचनाओं के बाद भले ही इन एक्टर्स ने कॉलेज लवर बॉय वाली इमेज छोड़ दी है, लेकिन उनकी पूरी कोशिश यही रहती है कि अपने अपोजिट जिस हीरोइन को कास्ट करें, उसकी उम्र उनसे काफी छोटी रहे.
जब 'दे दे प्यार दे' का ट्रेलर रिलीज हुआ, तो उसमें हमने देखा की अजय देवगन का किरदार अपनी मेच्योर एक्सवाइफ और अपनी 20 साल की यंग गर्लफ्रेंड के साथ बैलेंस बनाने की कोशिश में लगा है. तो इस फिल्म से बहुत उम्मीदें नहीं थीं, लगा की वही पुराने चुटकुले, और डबल मीनिंग वाले डायलॉग्स होंगे.
लेकिन फिल्म देखने के बाद पता चला कि ‘दे दे प्यार दे’ तो वास्तव में एक अच्छी फिल्म है. जो सरप्राइज करती है.
इस फिल्म को लव रंजन ने लिखा है (जिनको अपनी पिछली फिल्मों की बदौलत "महिला-विरोधी" माना जाता है) और इसे अकिव अली ने डायरेक्ट किया है. दोनों मिलकर एक अच्छी रोमांटिक-कॉमेडी फिल्म बनाने में कामयाब रहे.
उम्र में अंतर ही फिल्म का मेन फोकस है और यह आधुनिक समय के रिश्तों पर एक अच्छा टेक है.जब 50 साल का आशीष मेहरा, जो लंदन में अच्छी तरह से सेटल है, यह महसूस करता है कि वह 26 साल की लड़की की ओर आकर्षित हो रहा है, वह स्थिति को ठीक करने के लिए अपने डॉक्टर दोस्त से मदद मांगने जाता है. जावेद जाफरी, अपनी असभ्य शैली में, आमतौर पर जो लोगों की सोच होती है वो बोलते हैं - कि अमीर आदमी जवान लड़कियों के प्यार में फंसते हैं.
फिल्म के फर्स्ट हाफ में अजय देवगन पर चुटकुले हैं. रकुल प्रीत सिंह के किरदार में आयशा जब अपने दोस्त से सलाह मांगती है, तो वो लड़का फिल्म में बार-बार अजय को "अंकल" कहते दिखाया गया है.
और आयशा खुद बोलती है कि अगर वे एक साथ हो जाएं तो कितना अजीब होगा. फिल्म हल्के ढंग से आगे बढ़ती है और गाने आने पर थोड़ी सी रुक सी जाती है.
इंटरवल के बाद, हम आशीष के “प्रतिष्ठित” परिवार और फिल्म के ट्रंप कार्ड, तब्बू से मिलते हैं! तब्बू और अजय काफी पुराने साथी हैं. उनकी साथ में पहली फिल्म 1994 में विजयपथ थी!
यह एक हिट जोड़ी है और तब्बू- जिनके सिर्फ फ्रेम में होने से ही सीन बेहतरीन हो जाता है- यहां भी अपना जादू चला गयीं. फिल्म में तब्बू और अजय की बहुत अच्छी केमिस्ट्री है. वे मेच्योर कपल हैं और अजय- रकुल प्रीत की चहकती और बबली जोड़ी का भी इस फिल्म में स्वागत किया गया है.
रिश्ते में उम्र का गैप होने का मतलब सिर्फ यह नहीं होता कि दोनों में से कोई एक धरती पर पहले आया! विकसित संवेदनशीलता, चीजों और स्थितियों के लिए एक अलग दृष्टिकोण होता है. इस फिल्म में इन सारी चीजों को स्वीकार किया गया है.
फिल्म के अंत का सीन, जिसमें तब्बू बताती हैं कि उनकी शादी क्यों नहीं चल पायी और कैसे सिर्फ एक इंसान को इसके लिए जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता. बहुत ही बखूबी से दिखाया गया है. 'दे दे प्यार दे' ने फिल्म की लंबाई और महत्वकांक्षाओं को ध्यान में रखा है और यह फिल्म के ही पक्ष में काम कर गया.
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