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दृश्यम 2 रिव्यू: फिर वही रोमांच, क्या किसी ने देखा था छिपाते लाश?

पहली फिल्म से उलट, मोहनलाल की ‘दृश्यम 2’ आपको शुरुआत से ही पकड़कर रखती है.

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Drishyam 2

‘दृश्यम 2’ रिव्यू: फिर वही रोमांच, क्या किसी ने देखा था छिपाते लाश?

(चेतावनी: दृश्यम 2 के इस रिव्यू में कुछ बातें आपका मजा किरकिरा कर सकती हैं. हालांकि, इस रिव्यू में सावधानी बरतने की कोशिश की गई है. ये चेतावनी उन लोगों के लिए है, जिन्हाेंने अभी तक फिल्म नहीं देखी है और वह ऐसी कोई नई जानकारी नहीं चाहते, जो उनका फिल्म देखने का आनंद खराब करे.)

हमने ‘दृश्यम’ को उस विश्वास के साथ खत्म किया था कि जॉर्जकुट्‌टी ने अपने परिवार को बचाने के लिए एक दुर्भाग्यपूर्ण हत्या को साफ तरीके से छिपा दिया है, लेकिन क्या उसने कोई सुराग छोड़ दिए थे, जो वापस लौटकर उसे और उसके परिवार को दिक्कत देंगी?

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हालांकि, इस ब्लॉकब्लास्टर मूवी की अगली कड़ी बनाना आसान काम नहीं था. जब ‘दृश्यम’ के डायरेक्टर और राइटर जीतू जोसफ की पहली फिल्म 2013 रिलीज हुई थी, तब यह बॉक्स ऑफिस पर मलयालम सिनेमा की सबसे ज्यादा पैसा लूटने वाली फिल्म थी. उस वक्त तक यह पहली ऐसी फिल्म थी, जिसने टिकट बिक्री से ही 50 करोड़ रुपए कमाए (हालांकि, मोहनलाल की दूसरी फिल्में जैसे ‘पुलीमुरुगन’ (2016) और ‘ल्यूसिफर’ (2019) ने नए रिकॉर्ड बनाए हैं).

जोसफ कहते हैं कि उन्होंने कई सालों तक ‘दृश्यम’ फिल्म के सीक्वल बनाने के आइडिया का विरोध किया था. जब तक कि उनके पास ऐसी स्क्रिप्ट न हो, जो पहली फिल्म के साथ न्याय कर सके और अब सात साल बाद इंतजार खत्म हो गया है.

जॉर्जकुट्‌टी और उसका परिवार

‘दृश्यम 2’: एक डरावनी रात के सीन से शुरुआत होती है, जिसमें जॉर्जकुट्‌टी (मोहनलाल) एक डेडबॉडी को दफ्न कर रहा है. इसके साथ ऐसा अतीत जुड़ा है जिसे वह और उसका परिवार भूलना चाहता है, लेकिन एक शख्स जॉर्जकुट्‌टी के इस काम का गवाह बन जाता है और इस तरह छह साल बाद फिर से केस खुल जाता है.

पहली फिल्म के विपरीत ‘दृश्यम 2’ आपको शुरुआत से ही पकड़कर रखती है. इंस्पेक्टर जनरल गीता प्रभाकर के लापता बेटे वरुण का छह साल बाद अनसुलझा केस, जिसमें जॉर्ज और उसका परिवार फंसा हुआ है. जॉर्जकुट्‌टी का छोटे कस्बे जो थोडुपूजा के पास है में काफी कुछ बदल गया है. जॉर्जकुट्‌टी पहले केबल टीवी का बिजनेस करता था, लेकिन अब वह एक लोकल सिनेमा थियेटर का मालिक है और खुशहाल जिंदगी जी रहा है.

कस्बे में बने नए पुलिस स्टेशन में भी काम पूरी मुस्तैदी से शुरू हो चुका है, लेकिन जॉर्जकुट्‌टी और उसके परिवार की वरुण के मर्डर से जोड़ने वाली कहानियां अभी भी कस्बे के लोगों के जुबान पर हैं- “क्या तुम्हें पता है कि उसकी लड़की के उस लड़के से संबंध थे?” “क्या तुम जानते हो जॉर्जकुट्‌टी ने दोनों को आपत्तिजनक हालत में देख लिया था और फिर वह अपना आपा खो बैठा था?” कस्बे के लोग दबी जुबान में इस तरह की बातें करते हैं.

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निरंतरता और परिवर्तन

फिल्म देखते हुए समझ आता है कि जॉर्जकुट्‌टी और उसके परिवार के साथ स्थानीय लोगों को जो हमदर्दी थी, वह धीरे-धीरे कम हो चुकी है. अब लोग जॉर्ज की सफलता और खुशहाल जिंदगी से लगातार जल रहे हैं. इसी बीच, जॉर्ज और उसका परिवार हमेशा केस के खुल जाने के डर में जी रहा है. उसकी बड़ी बेटी अंजू (अंसिबा) बीमार रहती है. वह उस भयावह रात और पुलिस की दर्दनाक यादों को भुला नहीं पा रही है.

इसके अलावा जॉर्जकुट्‌टी के अब नए पड़ोसी साबू और सरिता (अंजली नैयर) हैं, उनकी शादीशुदा जिंदगी भी अच्छी नहीं चल रही है. साबू एक शराबी है और जॉर्जकुट्‌टी के साथ उसका झगड़ा रहता है.

‘दृश्यम 2’ के पहले भाग में, डायरेक्टर जीतू ने कहानी को जॉर्ज, रानी और उनकी दोनों बेटियों अंजू और अनु के जीवन के आसपास बुना है. ये सारी नाटकीयता कहानी को धीरे-धीरे पकाती है, देखने वालों के मन में उत्सुकता और डर पैदा करती है, लेकिन कहानी में मामला तब कमजोर पड़ जाता है, जब साजिश का खुलासा होता है.
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एक योग्य दावेदार

‘दृश्यम 2’, ओरिजनल फिल्म के सामने बेहद दमदार तरीके से खड़ी होती है. ये शुरुआत से आपका ध्यान आकर्षित करती है और ढाई घंटे के दौरान पूरा मनोरंजन करती है. जैसा कि मैंने कहा कि सीक्वल बनाना हमेशा से ही मुश्किल काम है. जो एक सफल ऑरिजनल के साथ रहता ही है- और इस केस में लेखक और डायरेक्टर के सामने बड़ी चुनौती थी कि उन्हें पहले से ही बुनी स्टोरी के प्लॉट के अंदर रहकर काम करना था. यह निश्चित रूप से उन सीक्वल्स में से एक नहीं हाे सकता है, जहां कहानी का हमारा मुख्य नायक जॉर्जकुट्‌टी, नए साहसिक पात्रों के साथ एक नई दुनिया में कूदता है. इस सीमित स्टोरी प्लॉट के बावजूद ‘दृश्यम’ के पात्रों और कहानी को देखते हुए जीतू जोसफ ने सीक्वल के लिए बेहद प्रभावशाली और पेचीदा कहानी तैयार की.

ऐसा बिल्कुल नहीं है कि फिल्म में कोई खामियां न हों. कई बार लगता है कि डायरेक्टर को क्लाईमैक्स पहले से कुछ और सीक्वेंस जोड़ने चाहिए थे. शायद जॉर्जकुट्‌टी की चालों में दर्शकों को हमराह बनाते तो शायद आखिर में और मजा आता.

फिल्मों में जॉर्जकुट्टी की रुचि और फिल्ममेकर बनने की उनकी इच्छा को अगली कड़ी में अच्छी तरह से पिरोया गया है. उनके स्क्रिप्ट राइटर विनयचंद्रन (साईकुमार) और पुलिस से जुड़े सीन अस्‍वाभाविक लगते हैं. कोर्ट के सीन बहुत ज्यादा फंक्शनल होने के बजाय बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष के बीच तीखी जिरह होतीं तो अच्छा लगता.

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दृश्यम 2 के रील और रियल हीरो

मोहनलाल ने एक बार फिर जॉर्जकुट्‌टी को उसकी जटिलताओं के साथ भरपूर जिया है. ऊपर से बेहद शांतप्रिय दिखता है, लेकिन किसी भी खराब परिस्थिति का बहादुरी से सामना करने के लिए तैयार है. एक्टर के नपे-तुले शब्द, उसकी खामोशी और झलक असाधारण रूप से उसे सामान्य व्यक्ति के रूप में चित्रित करती है जो दबाव में भी नहीं टूटता.

वह दृढ़तापूर्वक अपने कैरेक्टर की नैतिक हद को प्रदर्शित करता है और जिस दुविधा से वह गुजर रहा है उसे हर कोई देखकर समझ सकता है. वह एक बार फिर से अपने गलत काम काे शानदार तरीके कवरअप कर सकता है, लेकिन वह गीता प्रभाकर और उनके पति सिद्दिकी के साथ आंखों में आंखें न डाल पाने के लिए समान रूप से दोषी है.

फिल्म के बाकी कलाकारों ने अपने किरदार अच्छे से निभाए हैं, मुरली गोपी आईजी थॉमस बैस्टिन के रूप में बेहद दमदार लगे हैं.

‘दृश्यम 2’ के रियल हीरो जीतू जोसफ हैं- राइटर और डायरेक्टर, जो फिल्म की सफलता के बाद भी नहीं रुके. 2013 में ‘दृश्यम’ से 2021 में ‘दृश्यम 2’ के दरम्यान उन्होंने सात फिल्म और की. उन्हें इस खोज के लिए शुक्रिया. दर्शकों को जॉर्जकुट्‌टी और उनके कभी हार न मानने वाले रवैये के साथ एक और सवारी का हिस्सा बनने का मौका मिला है.

रेटिंग: 5 में से 4 क्विंट्स

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