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रिव्यू: डराती नहीं, काफी बोर करती है भूमि पेडनेकर की ‘दुर्गामति’

‘दुर्गामति’ तमिल-तेलुगू भाषा में बनी ‘Bhaagamathie’ का रीमेक है.

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Durgamati

डराना तो दूर, काफी बोर करती है भूमि पेडनेकर की ‘दुर्गामति’

क्या कोरोना वायरस महामारी और ये दुखी साल काफी नहीं था, कि हमें अब साउथ इंडियन फिल्मों की खराब रीमेक फिल्मों से गुजरना पड़ रहा है? भूमि पेडनेकर, अरशद वारसी, माही गिल और करण कपाड़िया की 'दुर्गामति' अमेजन प्राइम पर रिलीज हो गई है. ‘दुर्गामति’ तमिल-तेलुगू भाषा में बनी ‘Bhaagamathie’ का रीमेक है. फिल्म के शुरुआती 10 मिनट में ही आपको एहसास हो जाता है कि ये रीमेक बनाकर फिल्ममेकर ने गलती की है.

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फिल्म में कैरेक्टर्स एक-दूसरे से बातचीत करने की बजाय चिल्ला रहे होते हैं, ताकि शायद दर्शक उन्हें बेहतर सुन सकें. फिल्म के बढ़ते-बढ़ते ये डबिंग और अजीब होने लगती है.

फिल्म की स्टोरी, स्क्रीनप्ले और डायरेक्शन, जी अशोक ने किया है. इसलिए फिल्म की खामियों की जिम्मेदारी उनके ऊपर ही ज्यादा है. मैंने ओरिजनल फिल्म देखी नहीं है, इसलिए उससे तुलना नहीं की जा सकती, लेकिन ‘दुर्गामति’ अपने आप में काफी बोरिंग और बकवास फिल्म है. पुरानी हॉरर फिल्मों की तरह, इस फिल्म में भी कुछ ऐसे लोग हैं, जो उसी ‘सुनसान’ हवेली पर जाएंगे, जहां लोगों ने उन्हें जाने के लिए मना किया है. और जाएंगे भी तो वही शाम के समय में, जब अंधेरा छा जाता है.

भूमि पेडनेकर ने जेल में बंद आईएएस अफसर, चंचल चौहान का किरदार निभाया है, जिससे सीबीआई की ज्वाइंट डायरेक्टर सताक्षी गांगुली खाली हवेली (जो कि हॉन्टेड है) पर पूछताछ के लिए ले जाती हैं. फिल्म में माही गिल के बंगाली एक्सेंट को झेलने के लिए ही हमें एक वैक्सीन की जरूरत है. फिल्म में प्राचीन मंदिरों से गायब होतीं मूर्तियां भी हैं, और एक नेता भी, जो किरदार अरशद वारसी ने निभाया है. इन सभी का आपस में एक कनेक्शन है.

फिल्म में जब चुड़ैल और उसके बदले की कहानी को स्थापित किया जाता है, तब तो हद्द ही हो जाती है. चंचल और एक पुलिस अफसर एसीपी अभय सिंह (जीशू सेनगुप्ता) के रिश्ते को दिखाने के लिए फ्लैशबैक का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें हमें एक्टिविस्ट बने करण कपाड़िया भी नजर आते हैं. चंचल पर जब ‘भूत का साया’ दिखाया जाता है, तो वो पूरा सीन डराने की बजाय घर में वर्कआउट का वीडियो लगता है. आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि अरशद वारसी ने ऐसी फिल्म क्यों कि जो उनके टैलेंट को पूरी तरह से निखार कर सामने नहीं ला पाई.

करीब ढाई घंटे लंबी ‘दुर्गामति’ में दर्शकों को परोसने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है. फिल्म का प्लॉट कमजोर है और आवाज बहुत लाउड. आखिर के 30 मिनट में आपको कुछ ट्विस्ट एंड टर्न्स देखने को मिल सकते हैं, लेकिन पूरी फिल्म काफी बोरिंग है.

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