शकुन बत्रा के डारेक्शन में बनी 'गहराइयां' का लंबे समय से इंतजार हो रहा था और अब फिल्म आखिरकार अमेजन प्राइम पर रिलीज हो गई है. करीब दो घंटे से ऊपर की इस फिल्म को देखने के बाद हम आखिर में कुछ महसूस नहीं करते. 'गहराइयां' हमें बहुत कुछ दिखाने की कोशिश करती है, लेकिन महसूस कुछ नहीं कराती. फिल्म का टाइटल है 'गहराइयां', लेकिन फिल्म में इसी की कमी है.
शकुन बत्रा से ये धोखा सा लगता है, क्योंकि उन्होंने हमें 'कपूर एंड संस' जैसी शानदार फिल्म दी थी, जो एक परिवार और उसके प्यार और परेशानियों के बारे में थी. वो फिल्म असल लोगों की असल जिंदगी के बारे में थी, लेकिन 'गहराइयां' के साथ ऐसा नहीं है. फिल्म के ट्रेलर ने ऑडियंस को काफी उम्मीदें बंधा दी थीं. खूबसूरत एक्टर्स और सुंदर लोकेशन्स, लेकिन फिल्म यहीं तक सीमित रह गई.
'गहराइयां', प्यार और बेवफाई से ज्यादा, उन लोगों के बारे में है जो अपने अतीत से लड़ रहे हैं.
'गहराइयां' उन लोगों के बारे में जिनका बचपन मुश्किलों भरा रहा और बचपन की इन्हीं कड़वी यादों ने उन्हें आज भी जकड़े हुआ है. फिल्म में दो कपल हैं- अलीशा और करण (दीपिका पादुकोण, धैर्य कर्वा) और टिया और जैन (अनन्या पांडे, सिद्धांत चतुर्वेदी). फिल्म में चारों के बारे में ज्यादा बैकग्राउंड नहीं दिया गया है और ऊपरी-ऊपरी बताया गया है कि वो अपने रिश्तों के किन मोड़ पर खड़े हैं.
अलीशा एक योगा इंस्ट्रक्टर है, जो अपना ऐप बनाने की कई कोशिशें करती है. उसके बॉयफ्रेंड ने किताब लिखने के लिए एडवर्टाइजिंग में अच्छे पैकेज वाली नौकरी छोड़ दी है. टिया और जैन एक हैप्पी कपल लगते हैं. जहां टिया, जैन के प्यार में डूबी दिखती है, तो वहीं जैन अपने रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में ज्यादा इंट्रेस्टेड दिखता है.
'गहराइयां' सिर्फ दीपिका पादुकोण की फिल्म है. वो फिल्म के लगभग हर सीन में हैं, और उनका कैरेक्टर भी ध्यान से लिखा गया है. वहीं, बाकी किरदारों पर इतना ध्यान नहीं दिया गया. धैर्य कर्वा के किरदार में और बारीकियां जोड़ने की जरूरत थी. अनन्या पांडे ने अभी तक का सबसे बेहतर काम किया है, लेकिन उनके किरदार को भी आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया गया.
दीपिका पादुकोण जैसी शानकार एक्टर के ऑपोजिट एक दमदार एक्टर की जरूरत थी. सिद्धांत चतुर्वेदी उनके ऑपोजिट कुछ खास नहीं जमते. नसीरुद्दीन शाह के साथ दीपिका पादुकोण के सीन दमदार हैं.
डायरेक्टर शकुन बत्रा ने आयशा ढिल्लों और सुमित रॉय के साथ मिलकर फिल्म का स्क्रीनप्ले लिखा है. सिनेमैटोग्राफी में DOP कौशल शाह का काम सुंदर लगता है, लेकिन कमजोर स्क्रीनप्ले फिल्म को उसकी गहराइयों में डुबा देती हैं.
'गहराइयां' को 5 में से 2.5 क्विंट!
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