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'हसीन दिलरुबा': प्लॉट में कुछ खामियां, लेकिन कास्टिंग-एक्टिंग दमदार

Haseen Dillruba में ऐसे कई सीन हैं जिसे देखकर लगता है कि कहानी अपना मैसेज देने में खो जाती है.

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Haseen Dillruba

'हसीन दिलरुबा': प्लॉट में कुछ खामियां, लेकिन कास्टिंग-एक्टिंग दमदार

नेटफ्लिक्स की नई फिल्म 'हसीन दिलरुबा' (Haseen Dilruba) रिलीज हो गई है. इस फिल्म में एक किरदार है, जिसका नाम बार-बार लिया जाता है- दिनेश पंडित. ऑडियंस को बताया जाता है कि पंडितजी पल्प फिक्शन राइटर हैं. उनकी क्राइम थ्रिलर्स की काफी फैन फॉलोइंग हैं. "ये छोटे-छोटे शहरों में बड़े-बड़े कत्ल करा देते हैं." इनकी बात में ज्यादा इसलिए कर रही हूं क्योंकि ये फिल्म इंज्वॉय करने का तरीका यही है कि आप खुद को इस दुनिया में सरेंडर कर दें.

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कहानी बेस्ड है ज्वालापुर नाम के एक शहर में हैं. 32 साल के इंजीनियर ऋषभ सक्सेना (विक्रांत मैसी) यंग रानी कश्यप (तापसी पन्नू) से शादी करने जा रहे हैं.

रानी, राइटर कनिका ढिल्लौन द्वारा लिखे गए दूसरे किरदारों से काफी मिलती-जुलती हैं, जैसे 'मनमर्जियां' की रूमी, 'केदारनाथ' की मुक्कू और 'जजमेंटल है क्या' की बॉबी. ये सभी महिलाएं बेबाक हैं और अपने हिसाब से जिंदगी जीती हैं.

'हसीन दिलरुबा' में हम ये सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि रानी जैसी लड़की, जिसका नजरिया साफ है, वो ऋषभ जैसे लड़के से क्यों शादी कर रही है. इस शादी से रानी को क्या मिलेगा? इसी बीच बॉडी वाले नील (हर्षवर्धन राणे) की भी इंट्री होती है. लेकिन फिर हमें जल्द ही पता चल जाता है कि फिल्म इन सवालों का जवाब देने में जरा भी इंट्रेस्टेड नहीं है. कहानी एक मर्डर मिस्ट्री की तरह आगे बढ़ती है, लेकिन फिर साइकोलॉजिकल थ्रिलर का रूप ले लेती है.

अमर मंग्रुलकर का बैकग्राउंड स्कोर और विनिल मैथ्यू का डायरेक्शन सस्पेंस को और मजेदार बनाता है. वो सीन जिसमें रानी को अपने नए ससुराल में एडजस्ट करते हुए दिखाया गया है, अमित त्रिवेदी के म्यूजिक के साथ वो और फिट बैठते हैं.

फिल्म का सबसे मजबूत प्वॉइंट इसकी कास्टिंग है, और यहां मैं सिर्फ मेन किरदारों की बात नहीं कर रही हूं. तापसी की ऑन-स्क्रीन सास के रोल में यामिनी दास ने कमाल का काम किया है. ससुर के रोल में दयाशंकर पांडे, पति के दोस्त के रोल में आशीष वर्मा और पुलिस अफसर के रोल में आदित्य श्रीवास्तव जंच रहे हैं. तापसी पन्नू, विक्रांत मैसी और हर्षवर्धन राणे ने अपने रोल में अच्छा काम किया है.

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फिल्म जहां अटकती है वो है टॉक्सिक रिलेशनशिप को प्यार का नाम देने में. फिल्म में ऐसे कई सीन हैं जिसे देखकर लगता है कि कहानी अपना मैसेज देने में खो जाती है. मुझे लगता है कि उन्हें बेहतर तरीके से हैंडल किया जाना चाहिए था.

ओवरऑल फिल्म इंट्रेस्टिंग है और पूरी कास्ट की परफॉर्मेंस काफी अच्छी है.

5 में से 3.5 क्विंट.

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