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Jayeshbhai Jordaar मूवी रिव्यू: रणवीर की एक्टिंग 'जोरदार', कहानी 'बोर-दार'

'जयेशभाई जोरदार' में रणवीर सिंह और शालिनी पांडे मुख्य भूमिका में हैं

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Jayeshbhai Jordaar

Jayeshbhai Jordaar मूवी रिव्यू: रणवीर की एक्टिंग 'जोरदार', कहानी 'बोर-दार'

बॉलीवुड स्टार रणवीर सिंह (Ranveer Singh) की फिल्म जयेशभाई जोरदार (Jayeshbhai Jordaar) सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. इस फिल्म में रणवीर सिंह की एक्टिंग 'जोरदार' हैं, लेकिन अपने सभी आकर्षण और गंभीर प्रयासों के बावजूद फिल्म 'बोर-दार' है. शायद ही कभी अच्छे इरादों से महान फिल्म बन पाती है.

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क्या है फिल्म की कहानी?

फिल्म में जयेशभाई (Ranveer Singh) के परिवार को वारिस के तौर पर एक लड़का चाहिए. वहीं, गर्भवती बहू मुद्रा बेन (Shalini Pandey) बिस्तर में डरी हुई पड़ी रहती है और उसके ससुराल वाले अजन्मे बच्चे के लिंग का निर्धारण करने के लिए उसके चारों ओर मंडराते रहते हैं.

डायरेक्टर दिव्यांग ठक्कर की सबसे बड़ी चुनौती है, कन्या भ्रूण हत्या और घरेलू शोषण जैसे गंभीर विषय पर एक मनोरंजक और मास ऑडियंस के लिए फिल्म बनाना. इस फिल्म के साथ एक और समस्या यह है कि डायरेक्टर यह नहीं तय कर पा रहे हैं कि कहानी कैसे दिखानी है.

फिल्म के अंत तक हम व्यंग्य, डार्क कॉमेडी से लेकर मेलोड्रामा और समाज की बुराइयों का यथार्थवादी आकलन जैसी विपरीत शैलियों के बीच झूलते रहते हैं.

नतीजा यह होता है कि हम फिल्म और उसके पात्रों को पूरी तरह संदेह की नजर से देखते हैं. बेशक रणवीर सिंह ने जयेशभाई के किरदार को पूरी प्रतिबद्धता के साथ निभाया है, जो सराहनीय है. फिल्म में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि कैसे 'पितृसत्ता' पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए दमघोंटू है. फिल्म में रणवीर सिंह और शालिनी पांडे ने इस खूबसूरती के साथ प्रदर्शित किया है. लेकिन फिल्म में इसका दायरा बहुत सीमित है और पूरा न्याय नहीं करती है.

फिल्म में बोमन ईरानी (Boman Irani) और रत्ना पाठक शाह (Ratna Pathak Shah) को ठेठ रूढ़िवादिता निभाने के लिए छोड़ दिया गया है. वह एक जिद्दी बाप के किरदार में है, जिसकी भौंहें हमेशा चढ़ी होती है. वहीं रत्ना पाठक शाह एक सख्त सास के रोल में है. जिया वैद्य अपनी एक्टिंग से ध्यान आकर्षित करती हैं.

घरेलू शोषण और कन्या भ्रूण हत्या जैसे विषयों पर व्यंग्य की एक सीमा है. रचनात्मक लेखन के अभाव में फिल्म खुद को एक ऐसे स्तर तक तक ले जती है, जिससे कहानी बचकानी लगती है और किरदार कैरिकेचर की तरह लगते हैं.

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