क्या आप हर्जाने के तौर पर 20 हजार रुपये खर्च करना चाहेंगे या फिर इसके बदले में मेंटल असायलम जाना पसंद करेंगे?
लेकिन ‘जजमेंटल है क्या’ की एक्ट्रेस बॉबी (कंगना रनौत) ने इस फैसले को लेने में पलक झपकाने तक का वक्त नहीं लिया और उनका जवाब था कि‘’ मैं कंफर्टेबल हूं’’. उसका कहना है कि जब वो अपने बॉयफ्रेंड वरुण (हुसैन दलाल) के साथ होती हैं तो उनके रिश्ते में आई दूरी साफ दिखाई देती है और वरुण अक्सर उनसे पूछा करता है कि कहीं ‘हम भाई-बहन तो नहीं’?
बॉबी एक डबिंग आर्टिस्ट है, जो कई तरह की अवाजें निकालने में माहिर है. देखा जाए तो वो इन किरदारों को जीती है, खुद को उन फिल्मों के पोस्टर में फोटोशॉप करवाती है, जिनके लिए वह आवाज दे रही है. और हर एक के साथ उसका अलग रिश्ता है.
ये फिल्म इस बात की भी याद दिलाती है कि कैसे घरेलू हिंसा और बचपन की कड़वी यादें एक अच्छे खासे इंसान के दिमाग पर कितना बुरा असर डाल सकती हैं और वो किस तरह अपना मानसिक संतुलन खो सकता है.
कनिका ढिल्लन की बेहतरीन स्क्रिप्ट और प्रकाश कोवेलामुदी के कमाल के डायरेक्शन में बनी ये फिल्म ‘जजमेंटल है क्या’ एक अलग ही आवाज उठाती है. यकीन मानिए कुछ ही पल लगेंगे ये समझने में कि बॉबी के दिमाग में किया चल रहा है.
ये एक ऐसे नशे में डूबी हुई कहानी का सफर है जो किसी ऐसे इंसान की आखों से दिखाने के कोशिश की है जिसने इस दर्द को सहन किया है, जो असाधारण है. लेकिन फिर भी उसका नजरिया इतना सही और विश्वसनीय कैसे है. यही वो सवाल है जो दर्शकों को पूरी फिल्म के दौरान बांध के रखेगा.
बॉबी का किरदार कंगना के अलावा शायद ही कोई और कर पाता. फिल्म में कई ऐसे पल नजर आते हैं कि जब कहानी में कंगना और बॉबी के बीच की लाइनें एक दम धूुधली हो जाती हैं. फिल्म में बॉबी की सभी तस्वीरों में एक खास झलक कंगना की खुद की फिल्म क्विन की नजर आई.
निराश और हताश बॉबी को फिल्म में काम न मिलने पर ये चिल्लाते सुना जा सकता है कि ‘’कैसे कैसे लोगों को यहां काम मिल जाता है. ये सुनकर बॉलीवुड में कंगना के नेपोटिज्म पर तीखी बायानबाजी और मुंहफट अंदाज को याद किया जा सकता है.
सच पूछो तो कंगना बॉबी को अपना बना लेती है - कभी ओवरबोर्ड नहीं जाती और साधारण अंदाज में दर्शकों को कंवेंस कर लेती हैं.
बॉबी का किरदार (मेंटल डिसॉर्डर दिमागी बीमारी से ग्रस्त है. जो कि वास्तविकता और
कल्पना के बीच में झूल रहा है. यहीं हमारी मुलाकात होती है एक क्यूट कपल, केशव (राजकुमार राव) मेघा ( अमायरा दस्तूर) से जो कि बॉबी के पड़ोसी हैं. यहीं से आता है कहानी में ट्विस्ट, जब बॉबी और केशव के तार एक दूसरे से टकराते हैं, तो फिर एक ही चीज संभव है और वो हैं,’तूफान’.
इंटरवल के बाद फिल्म रफ्तार पकड़ लेती है और एक नये किरदार की एंट्री होती है. जो कि पौराणिक कहानियों के रावण-सीता हैं. फिल्म में कंगना के इस सीन को बार-बार दोहराया जाता है जिसमें उन्हें अपने दिमाग में आवाजें सुनाई देता हैं. ये झेलना दर्शकों के लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है.
कंगना और राजकुमार राव की बेहतरीन जुगलबंदी ने फिल्म को एक नया फ्लेवर दिया है. अपनी एक्टिंग में मंझे हुए इन दोनों कलाकारों ने ये तो साबित कर दिया है कि आप स्क्रीन से अपनी नजरें नहीं हटा पाएंगे.
फिल्म के दूसरे किरदार हुसैन दलाल, अमायरा दस्तूर, अमृता पुरी, सतीश कौशिक और ललित बहल, जिम्मी शेरगिल ने अपने-अपने किरदारों को बखूबी निभाए हैं. घरेलू हिंसा और मानसिक प्रताड़ना पर उठाए गए इस सवाल पर फिल्म सटीक बैठती है और इस फिल्म देखना तो बनता है.
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