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'लूप लपेटा' : थ्रिलर-ह्यूमर कॉम्बिनेशन से दर्शकों को बांधे रखते हैं तापसी-ताहिर

आकाश भाटिया की फिल्म 'लूप लपेटा' में ताहिर राज भसीन भी नजर आ रहे हैं.

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थ्रिलर-ह्यूमर कॉम्बिनेशन से दर्शकों को बांधे रखते हैं तापसी-ताहिर

फिल्म लूप लपेटा (Looop Lapeta) की शुरुआत मोबाइल स्क्रीन पर एक मैसेज के फ्लैश होने से होती है. फिल्म देखने के दौरान आपको यह लगेगा कि 'अनुभव के आधार पर ही बेहतर निर्णय लिये जा सकते हैं, लेकिन अनुभव खराब निर्णय लेने की वजह से ही होता है.' लेकिन वह क्या है जो हमें एक दृढ़ निर्णय लेने के लिए प्रेरित करता है? क्या यह स्वतंत्र सोच है या सब कुछ पूर्व निर्धारित है? क्या वाकई में एक क्षण या पल की वजह से हमारी जिंदगी पूरी तरह से बदल सकती है?

जिस तरह से इस फिल्म की कहानी को पिरोया गया है. यह हमें एक गहरे दार्शनिक अर्थ की तलाश करने और मौके की भूमिका व स्वतंत्र इच्छा के महत्व पर चिंतन करने के लिए मजबूर करेगी. लेकिन, लूप लपेटा को पूरी तरह से इंजॉय करने के लिए आपको फिल्म की विविध भावनाएं और रवैये के आगे खुद को समर्पित कर देना होगा.

यह जर्मन एक्सपेरिमेंटल थ्रिलर 'रन लोला रन' का बहुत सटीक रूपांतरण नहीं है. मूल फिल्म 80 मिनट की कसी हुई थ्रिलर फिल्म थी, जबकि इसे ज्यादा लंबा खींचा गया है. आकाश भाटिया द्वारा निर्देशित यह फिल्म लगभग 2 घंटे लंबी है, फिल्म को अपने आधार को बनाने में समय लगता है और इसके बाद फिल्म तीन अलग-अलग परिदृश्यों में चलती है.

सावी (तापसी पन्नू) को उसके प्रेमी सत्या (ताहिर राज भसीन) का फोन आता है, जिसने 50 लाख रुपये गंवाए हैं. उसे अपनी मौत का डर सताता, क्योंकि खोया हुआ पैसा उसके निर्दयी, क्रूर मालिक का था. सावी को अपने साथी को मरने से बचाने के लिए 50 मिनट में 50 लाख रुपये की चाहिए होते हैं. इसके बाद जब सावी पैसों की तलाश में सड़कों पर भागती रहती है तब फिल्म में बार-बार उसके साथी के मरने के ख्याल को दिखाया जाता है.

हर सेकंड मायने रखता है, इसलिए यह बहुत अहम होता है कि हम उस अहम समय या क्षण में क्या कुछ चुनते हैं. जैसा कि कहानी को 30 मिनट के टुकड़ों में छोटे बदलावों और बार-बार होने वाले मूल रूपांकनों व पात्रों में दर्शाया गया है और इससे पता लगाता है कि कैसे एक छोटे से बदलाव का बड़ा प्रभाव हो सकता है और यह परिणाम को पूरी तरह से प्रभावित कर सकता है या बदल सकता है.

यश खन्ना के बेहतरीन कैमरा वर्क ने फिल्म के नरैटिव स्ट्रक्चर को काफी प्रभावित किया है. एनिमेशन, स्प्लिट स्क्रीन मोंटाज और एक गहरे रंग पैलेट का उपयोग फिल्म की तेज गति और तात्कालिकता के अनुकूल है. राहुल पेस और नरीमन खंबाटा के बैकग्राउंड स्कोर ने भी अनुकूल परिणाम की दिशा में काम किया है.

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तापसी पन्नू के फ्री-स्प्रिटेड परफॉर्मेंस और पूरी प्रतिबद्धता ने उनके कैरेक्टर उन परिस्थियों में भी एक वास्तविक शक्ति प्रदान करने का काम किया जो असंभव सी प्रतीत हो रही थीं.

जहां तक ह्यूमर की बात है तो राजेंद्र चावला और उनके बेटों, माणिक पपनेजा और राघव राज कक्कड़ ने ज्वैलरी स्टोर के मालिक का किरदार निभाया है, ये कैरेक्टर जोर से हंसने के भरपूर अवसर प्रदान करते हैं. यह लूप लापेटा का हास्य है जो अंततः सफल होता है, हालांकि अगर इसकी और अच्छे से एडिटिंग होती तो इसके प्रभाव को बढ़ाया जा सकता था.

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