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Review: अच्छी एक्टिंग, लेकिन खराब राइटिंग का शिकार हुई ‘मर्दानी 2’

2014 में आई ‘मर्दानी’ का सीक्वल है ‘मर्दानी 2’

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अच्छी एक्टिंग, लेकिन खराब राइटिंग का शिकार हुई ‘मर्दानी 2’

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2014 में आई 'मर्दानी' के सीक्वल, 'मर्दानी 2' में रानी मुखर्जी, इंस्पेक्टर शिवानी रॉय का रोल फिर से प्ले कर रही हैं. अपनी पहली फिल्म में वो चाइल्ड ट्रैफिकिंग रैकेट का भंडाफोड़ करती हैं. अब सालों बाद, इंस्पेक्टर शिवानी राजस्थान के कोटा में बतौर एसपी पोस्टेड हैं. इस बार वो एक सीरियल किलर को पकड़ने की कोशिश में हैं, जो महिलाओं का रेप कर उन्हें टॉर्चर करता है.

डायरेक्टर गोपी पुथरन इस सीरियल किलर के बारे में ऑडियंस को बताने में ज्यादा देर नहीं करते. अपराध जघन्य हैं और अपराधी पुलिस से हमेशा एक कदम आगे.

फिल्म का आधार और सेटअप, देश में चल रहे हालातों से काफी मिलता-जुलता है. इसलिए फिल्ममेकर्स पर ये जिम्मेदारी थी कि वो इसे सही तरह से दिखाएं. इसमें वो थोड़े कामयाब भी हुए हैं.

रानी मुखर्जी की इस फिल्म में एक नहीं, बल्कि दो विलेन हैं. एक है एन्टागॉनिस्ट- सनी, पुलिस के साथ चूहे-बिल्ली का गेम खेल रहा है. सभी को मालूम है कि इस विलेन का अंत कैसे होगा, लेकिन हर कोई इसमें पूरी तरह से इन्वेस्टेड है. दूसरा विलेन है- कैजुअल सेक्सिज्म, जिससे शिवानी और उस जैसी सभी महिलाओं का सामना रोजाना होता है. दफ्तर में फीमेल बॉस से ऑर्डर नहीं ले पाने वाले जूनियर मेल कलीग्स से लेकर उनके मजाक तक. फिल्म में इन सभी चीजों को दिखाया गया है.

जेंडर इक्वालिटी पर ये ‘लेक्चर’ जबरदस्ती का लगता है.

फिल्म की स्टारकास्ट अच्छी है. साहसी पुलिस अफसर शिवानी रॉय के रोल में रानी मुखर्जी को सबसे ज्यादा स्क्रीनटाइम मिला है और वो अपने रोल में जम रही हैं. एक टफ एसपी का रोल रानी मुखर्जी ने बखूबी निभाया है.

एक खतरनाक किलर के रोल में न्यूकमर विशाल जेठवा ने अच्छा काम किया है. लेकिन ये स्टारकास्ट भी फिल्म को ज्यादा नहीं बचा पाई. राइटिंग खराब है, जिससे ये फिल्म ज्यादा नहीं चमक पाती है.

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