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Mimi रिव्यू: सरोगेट मांओं के दर्द को सही ढंग से नहीं दिखा पाती फिल्म

Mimi Review: इस फिल्म में ड्रामा के साथ-साथ मेलोड्रामा भी भर-भर कर है.

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सरोगेट मांओं के दर्द को सही ढंग से नहीं दिखा पाती 'मिमी' फिल्म

सरोगेसी के मुद्दे पर बनी कृति सैनन (Kriti Sanon) की फिल्म 'मिमी' (Mimi) नेटफ्लिक्स इंडिया पर रिलीज हो गई है. इस फिल्म में ड्रामा के साथ-साथ मेलोड्रामा भी भर-भर कर है. 'मिमी' पूरी तरह से फिल्मी है. वैसे तो फिल्म की पूरी कहानी ही ट्रेलर में बता दी गई है, इसलिए हमें स्पॉयलर्स के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.

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फिल्म की कहानी है 2013 की, जब देश में सरोगेसी को लेकर कड़े कानून नहीं थे. यूपी में कहीं से एक 'डीलर' मिस्टर जॉम (Aidan Whytock) को कॉल करता है और बताता है कि उसके पास, उसे दिखाने के लिए 'नई लड़कियां' हैं. दोनों की ये बातचीत सुनने में अजीब लगती है, लेकिन जैसे-जैसे सीन आगे बढ़ता है तो हमें पता चलता है कि जॉन और उसकी पत्नी, समर बच्चे के लिए एक सरोगेट की तलाश कर रहे हैं.

तब सरोगेट महिलाओं के लिए कानून उतने कड़े नहीं थी और कई तरह से उनका उत्पीड़न भी किया जाता था, लेकिन फिल्म में सरोगेसी में महिलाओं की तकलीफ को सही ढंग से पेश नहीं किया गया है.
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फिल्म में फिर आता है राजस्थान, जहां हमारी मुलाकात 'परम सुंदरी' मिमी (कृति सैनन) से होती है. मिमी डांस करती है, लेकिन साथ ही वो मुंबई जाने के ख्वाब भी आंखों में सजोये बैठी है. मिमी पैसे इकट्ठे कर के मुंबई जाना चाहती है ताकि अपने फेवरेट एक्टर रणवीर सिंह के साथ एक्टिंग कर सके.

टैक्सी ड्राइवर बने पकंज त्रिपाठी की एक्टिंग फिर काबिलेतारीफ है और कृति सैनन भी अच्छी लगती हैं. लेकिन लक्ष्मण उटेकर और रोहन शंकर की स्टोरी और स्क्रीनप्ले मजेदार नहीं है. फिल्म में टैलेंट की कोई कमी नहीं है. मनोज पाहवा और सुप्रिया पाठक दिग्गज एक्टर्स हैं और साईं तमहंकर हमेशा ही छाप छोड़ती हैं, लेकिन इन सभी के लिए करने को ज्यादा कुछ नहीं है.

फिल्म को 5 में से 2 क्विंट.

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