5 नवंबर 2013 को इसरो ने श्रीहरिकोटा से मंगलयान लॉन्च किया था. उस यान ने 24 सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा में पहुंचकर इतिहास रच दिया था. इसके साथ ही भारत मंगल की कक्षा में यान पहुंचाने वाला पहला एशियाई देश और पहले ही प्रयास में पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बना गया.
इंडियन साइंटिस्ट ने इसे डेवलप और डिजाइन करने में कई नायाब तरीके अपनाए, जो कि कारगर साबित हुए. ये मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) सबसे सस्ते इंटरप्लेनेटरी मिशनों में से एक है, जो कि 4.5 बिलियन रुपये में बनाया गया. तब पीएम मोदी ने भी मजाक में कहा था कि रियल लाइफ मार्टियन एडवेंचर की लागत हॉलीवुड फिल्म 'ग्रेविटी' से कम है.
अगर बात करें फिल्म की, तो इसमें पहले से ही देशभक्ति के फ्लेवर का तड़का लगा हुआ है, जो कि जज्बे, ड्रामा और हर तरह के इनोशन से लबरेज है. इसे पर्दे पर उतारने के लिए अक्षय कुमार की ही जरूरत थी, क्योंकि जिस तरह से वेे राष्ट्रवादी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए फिल्में बनाते हैं, शायद ही इस किरदार को कोई और निभा पाता.
तो आपको मिलेंगे- इसरो साइंटिस्ट राकेश धवन ( अक्षय कुमार) जो कि एक नाकाम मिशन के बाद 'मिशन मंगल' पर काम कर रहे हैं. अक्षय के अलावा डिपार्टमेंट के हर मेंबर को पता है कि ये मिशन इंपॉसिबल से कम नहीं है. लेकिन उन्हीं की टीम की प्रोजेक्ट डायरेक्टर तारा शिंदे ( विद्या बालन) को अचानक पूरी तलते-तलते ये खयाल आया कि ये मिशन संभव हो सकता है.
इसके बाद देखते ही देखते साइंटिस्ट की एक पूरी टीम तैयार दिखाई देती है. ईका गांधी (सोनाक्षी सिन्हा), कृतिका अग्रवाल ( तापसी पन्नू),नेहा सिद्दीकी (कीर्ति कुल्हारी), वर्षा पिल्लई (
निथ्या मेनन), परमेश्वर नायडू ( शरमन जोशी) और अनंत अय्यर.
ये साइंस की हाई-फाई अंधेरी और फौलादी दुनिया नहीं, बल्कि एक रियल, इमोशनल स्टोरी है. एक साइंटिस्ट के पूरे ग्रुप की कहानी, जो तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद एक मिशन में लगे हुए हैं, जिसकी ख्वाहिश चांद की परिक्रमा की है.
इस फिल्म को जगन शक्ति ने डायरेक्ट किया है. आर. बाल्की, निधि सिंह धर्मा और साकेत कोंडीपर्थी ने इसे लिखा है, जो कि पर्दे पर एकदम साफ दिखाई देता है. खास तौर पर ये फिल्म उन पर भी फोकस करती है, जो मिशन का नेतृत्व कर रही साइंटिस्ट हैं. फिल्म में जब हम हरेक की पर्सनल लाइफ को देखते हैं, तो इन किरदारों की कहानियां और भी खूबसूरत नजर आती हैं.
हमेशा की तरह इस बार भी विद्या बालन (तारा) अपने किरदार में एकदम परफेक्ट दिखी हैं. वे अपने परिवार और काम के बीच तालमेल बिठाने की कोशिश करती रहती हैं. यही नहीं, इनके पास सभी मुसीबतों का हल है. उनके पति के किरदार में संजय कपूर भी शानदार हैं. लेकिन अगर तारा के किरदार की बात करें, तो ये कहना गलत नहीं होगा कि विद्या बालन फिल्म की बैकबोन हैं.
तापसी पन्नू, सोनाक्षी सिन्हा, कृति और विद्या के बेटे के किरदार ने अपनी एक्टिंग से स्क्रीन पर एक छाप छोड़ दी है.
विद्या एक सीन में पूरी टीम को याद दिलाती हैं कि पहली बार उन्होंने कब साइंटिस्ट बनने की बात सोची थी. ऐसे और भी कई इंस्पिरेशनल मोमेंट हैं, जो आपको फिल्म से बांधकर रखेंगे. लेकिन कई बार ये सब एक ड्रामा भी लगता है, जो रियल स्टोरी पर हावी होते दिखाई देता है.
फिर भी फिल्म में सबकुछ ठीक नजर आता है, खासतौर पर सभी किरदारों की एक्टिंग और इमोशंस, जिसने फिल्म को और भी शानदार बना दिया. इसलिए मिशन मंगल को देखना तो बनता है.
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