पिछले कुछ सालों से अक्षय कुमार अपनी हर फिल्म में कुछ न कुछ सामाजिक संदेश देने का काम कर रहे हैं. टॉयलेट: एक प्रेम कथा में जहां अक्षय ने ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों की दिक्कत को फिल्म के जरिए सामने रखा था, वहीं अब पैडमैन में वो सैनिटरी पैड जैसे मुद्दों को लेकर आए हैं.
ये अरुणाचलम मुरुगनाथम की असली जिंदगी पर बनी फिल्म है, जिन्होंने सस्ते सैनेटरी पैड बनाकर देश की करोड़ों महिलाओं की जिंदगी को बेहतर बनाने का काम किया है.
ऐसे देश में जहां अब भी 'पीरियड' जैसी चीजों पर बातचीत करने में लोग संकोच करते हैं, अरुणाचलम की कहानी एक मिसाल जैसी है जिसे बताने के लिए अक्षय कुमार और फिल्म की पूरी टीम ने खूब मेहनत की है. आर. बाल्कि के कसे हुए डायरेक्शन में बनी इस फिल्म में सच्ची कहानी को फिल्मी स्टाइल में बड़े ही सलीके के पेश किया गया है. अक्षय कुमार की अदाकारी फिल्म की जान है.
पैडमैन में अक्षय कुमार ने लक्ष्मीकांत चौहान नाम के किरदार को निभाया है, जो मध्यप्रदेश के एक गांव का रहने वाला है. हालांकि, असली कहानी जिन अरुणाचलम पर बनी है वो कोयंबटूर के रहने वाले हैं. ऐसा बदलाव हिंदी दर्शकों को ध्यान में रखते हुए किया गया है. सेट पर खास ध्यान रखा गया है जिससे कहानी साल 2001 की लगे, कीचड़ और गोबर से सने रास्ते इसे असलियत के करीब दिखाते हैं. फिल्म के डायलॉग में अक्षय ने अपनी फिल्म टॉयलेट: एक प्रेम कथा का भी पूरा खयाल रखा है जैसे-टॉयलेट है...पैड्स नहीं है??
असली कहानी लक्ष्मीकांत चौहान की शादी के बाद शुरू होती है. लक्ष्मी को पीरियड्स और महिलाओं की परेशानियों के बारे में पता चलता है. वो अपने परिवार की दूसरी महिलाओं और पत्नी को किफायती सैनेटरी पैड दिलाने के लिए जुट जाता है, धीरे-धीरे ये लक्ष्मी का जुनून बन जाता है. इस दौरान पत्नी समेत पूरा परिवार उससे छिटकने लगता है और वो अकेला पड़ जाता है.
राधिका आप्टे ने एक पति के जुनून से परेशान पत्नी के किरदार को बखूबी निभाया है. दर्शकों को उनकी परेशानी से जुड़ाव महसूस होता है. फिल्म के दूसरे हाफ में सोनम कपूर की मौजूदगी फिल्म में नया फ्लेवर लाती है. साथ ही सोनम कपूर के किरदार से लक्ष्मी के सफर को नया मुकाम भी मिलता है. दोनों के बीच हुई बातचीत फिल्म का अहम हिस्सा है.
फिल्म में अक्षय कुमार ने दमदार भूमिका निभाई है, कभी अपने हाथ गंदे किए हैं तो कभी मिट्टी तक उड़ेल ली है. ऐसे में फिल्म को पूरी तरह से वास्तविक बनाने में कोई भी कमी नहीं छोड़ी गई है.
पैडमैन का पहला हाफ थोड़ा धीमा है. कुछ झुंझला देने वाले बैकग्राउंड स्कोर, जबरदस्ती का डाला गया लव ट्राएंगल से बचा जा सकता था. हालांकि, पूरी फिल्म की बात करें तो फिल्म ने अपने दिल यानी 'पैड की बात' को बेहतरीन तरीके से पेश किया है.
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