ये बात तो सच है कि 'दबंग' फ्रेंचाइजी ने सलमान के सबसे मजेदार कैरेक्टर्स में से एक दिया है- चुलबुल पांडे. उनकी पंचलाइन, उनका स्वैग, उनका एक्शन... लेकिन 'दबंग 3' और कुछ नहीं, बस लेजी फिल्ममेकिंग है. अगर मेकर्स को लगता है कि एक ही बाउल में सब डालकर एक अच्छी फिल्म बनाई जा सकती है, तो इसमें हैरानी की बात नहीं कि फिल्म ऐसी निराशजनक निकलेगी.
इस फिल्म के हर फ्रेम में सलमान खान हैं. उन्होंने डायरेक्टर प्रभुदेवा और आलोक उपाध्याय के साथ मिलकर फिल्म का स्क्रीनप्ले भी लिखा है.
फिल्म की फ्रेंचाइजी में रॉबिनहुड पांडे अब तक कमजोर लोगों के लिए लड़ते आए हैं... और इस फिल्म में भी वो यही करते हैं. कभी महिलाओं के लिए, कभी भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ लड़ते हैं. फ्रेंचाइजी की पहली फिल्म में सोनाक्षी सिन्हा को डेब्यू करने का बड़ा प्लैटफॉर्म दिया गया था, लेकिन इस बार महेश मांजरेकर की बेटी, सई मांजरेकर उतना स्क्रीनटाइम नहीं मिला है.
साउथ के एक्टर सुदीप फिल्म में विलेन बने हैं. दोनों के बीच का फाइट सीन क्लाइमैक्स के लिए बचा के रखा है, और सही बताएं तो वो बेहद खराब है. खराब सीजीआई और स्लोमोशन उसे बर्बाद कर देते हैं.
फिल्म में महिलाओं और उनकी पसंद का सम्मान करने का मैसेज दिया गया है... और इसपर बस हंसी आती है.
फिल्म में पांडे जी (सलमान खान) इतने अच्छे बने हैं कि वो दहेज लेने की बजाय दहेज देने की जिद करते हैं. पांडे जी, खुशी (सई मांजरेकर) की फोटो देखते ही उससे प्यार में पड़ जाते हैं. फिर वो उसका 'रखवाला' बन जाते हैं, लेकिन तब भी फिल्म को बचा नहीं पाते.
अगर ये फिल्म नहीं भी बनती, तो भी दुनिया अच्छी तरह से ही चलती. आप अगर सलमान खान के फैन भी हैं, तो भी आप निराश होंगे.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)