ADVERTISEMENTREMOVE AD
i

‘सूरमा’ रिव्‍यू: स्पोर्ट्स पर बनी ये फिल्म दिल नहीं जीत पाती है

दिलजीत दोसांझ और तापसी पन्नू ने अपने हर किरदार को पूरी ईमानदारी से निभाया है

छोटा
मध्यम
बड़ा

सूरमा- स्पोर्ट्स पर बनी एक कमजोर फिल्म

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बॉलीवुड में बायोपिक का दौर जारी है. अभी कुछ दिन पहले 'संजू' फिल्म आई थी. इस हफ्ते ‘सूरमा’ आई है. सूरमा हॉकी स्टार संदीप सिंह की जिंदगी की सच्ची कहानी पर आधारित है. बायोपिक की असली कहानी लोग पहले से ही जानते हैं.

‘संजू’ फिल्म में संजय दत्त को निर्दोष दिखाने की कोशिश की गई है. फिल्म में उनकी गलतियों पर पर्दा डाला दिया गया. लेकिन दूसरी तरफ ‘सूरमा’ में कहानी पेश करने में ईमानदारी बरती गई है.

'सूरमा' भारतीय हॉकी के एक बेहतरीन खिलाड़ी की कहानी है, जो गनशॉट से शुरू होती है. इससे संदीप के सुनहरे करियर पर कई सवाल खड़े हो जाते हैं. लेकिन 6 महीने पैरालिसिस से जूझने के बाद उन्होंने शानदार वापसी की और देश के लिए शानदार प्रदर्शन किया.

ये फिल्‍म संदीप सिंह की इच्छाशक्ति और मेहनत दर्शाती है. हालांकि डायरेक्टर शाद अली ने फिल्म की छोटी-छीटी कड़ियों को जोड़ने में बहुत सारा वक्त बर्बाद किया है.

जोशीले और बेबाक संदीप को खड़ूस कोच के अंडर ट्रेनिंग करना गवारा नहीं था, लेकिन फिर एंट्री होती है एक खूबसूरत हॉकी प्लेयर की, जिसके कारण संदीप वापस हॉकी की तरफ रुख करते हैं.

लेकिन पूरी फिल्म में कोच की भूमिका इतनी बुरी क्यों है, इस बात का जवाब फिल्म के आखिर तक नहीं मिलता. फिल्म चलती जाती है, लेकिन हम उस किरदार से जुड़ा हुआ महसूस नहीं कर पाते.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

दिलजीत और तापसी की शानदार एक्टिंग

दिलजीत दोसांझ और तापसी पन्नू ने अपने हर किरदार को पूरी ईमानदारी से निभाया है. हरप्रीत से तापसी हॉकी टीम में सेंट्रल फॉरवर्ड के तौर पर खेलती हैं और नेशनल टीम का हिस्सा बनना चाहती हैं. लेकिन वो संदीप के लिए पीछे हटने का फैसला लेती हैं, ताकि हर किसी का ध्यान उन पर केंद्रित रहे.

नरम-गरम है फिल्म

‘सूरमा’ की स्क्रीनप्ले थोड़ा नरम-गरम नजर आता है, जिसे जबरदस्ती खींचा गया मालूम पड़ता है. किरदार भी फिल्म के हिसाब से खिंचते नजर आते हैं. गानों की लगातार बौछार के कारण फिल्म में स्‍पोर्ट्स की अहमियत और अहसास, दोनों खत्म होते नजर आते हैं.

अंगद बेदी ने फिल्म में दिलजीत दोसांझ के भाई का किरदार निभाया है. रोल अच्छा है, लेकिन इनके किरदार को बहुत छोटा कर दिया गया. विजय राज ने दिलजीत के कोच का किरदार निभाया है. फिल्म का अंत उन असली फुटेज के साथ होता है, जब संदीप सिंह को अर्जुन अवॉर्ड मिला था.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×