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Review:लेक्चर नहीं देती,जरूरी सवाल उठाती है तापसी की फिल्म थप्पड़

कैसी है तापसी पन्नू की फिल्म ‘थप्पड़’, रिव्यू में जानिए

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Thappad

Review: ‘थप्पड़’ लेक्चर नहीं देती, जरूरी सवाल उठाती है

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अमृता (तापसी पन्नू) का रोज का रूटीन है. वो सुबह उठती है, दूध लेने के लिए घर का दरवाजा खोलती है, अखबार उठाती है, चाय बनाती है, पति का अलार्म बंद करती है, उसे चाय देती है, अपनी सास का खयाल रखती है, चाय पीते वक्त थोड़ा समय अपने लिए निकालती है, फोन से फोटो खींचती है, पड़ोसी की तरफ देखकर मुस्कुराती है, पति के लिए लंच पैक करती है, पति जल्दी में घर से निकल रहा होता है तो उसकी तरफ दौड़ती है, उसका बटुआ, बैग, टिफिन उसे देती है और फिर... चैन की सांस लेती है!

अमृता का रूटीन इतनी बार दिखाया गया है कि आखिर में हमें ये याद हो जाता है. बल्कि, ये रूटीन उस घटना (जब अमृता के पति ने उसे थप्पड़ मारा था) के बाद भी फॉलो किया जाता है. ये थप्पड़ अचानक से होता है. पति किसी बात पर परेशान होता है, तो लोग उसे घेरकर खड़े हो जाते हैं. बाकी लोग हैरान हैं क्योंकि ये सब मेहमानों के सामने हुआ. सभी आगे बढ़ जाते हैं और फिर उन्हें एहसास होता है कि अमृता इस घटना से आगे नहीं बढ़ी है!

'थप्पड़' एक ऐसी महिला की कहानी है जो इसे भूलकर आगे बढ़ने से मना करती है. ये एक ऐसी महिला की कहानी है जो ये मानती है कि ये थप्पड़ सिर्फ गुस्से में किया गया एक फिजिकल एक्ट नहीं, बल्कि इससे ज्यादा है... ये एक टॉक्सिक मेंटालिटी का हिस्सा है जिसमें इन 'छोटी बातों' का शादी पर फर्क नहीं पड़ना चाहिए.

अनुभव सिन्हा के डायरेक्शन में बनी 'थप्पड़' की खासियत उसके शांत लम्हों में है. जब अमृता अपने पति के बर्ताव को सहने से मना करती है, तो उसके फैसले को कई तरह से देखा जाता है. ‘एक थप्पड़? एक थप्पड़ ही तो है.’ अमृता उन सभी को समझाने की कोशिश करती है कि ये कभी इस बारे में नहीं था कि उसे कितनी बार मारा गया या हिंसा कितनी खतरनाक थी, बल्कि ये इस बारे में है कि ये हुआ... इतने नॉर्मल तरीके से.

अनुभव सिन्हा की फिल्म पर अच्छी पकड़ है. ऑडियंस की तरह, अमृता के आस-पास हर कोई धीरे-धीरे स्थिति को समझने और इसपर अपनी प्रतिक्रिया देने की कोशिश करता दिखता है.

तापसी पन्नू का काम फिल्म में शानदार है. इमोशनली और फिजिकली, वो अपने किरदार और उसकी समझ को अच्छे से दिखाती हैं. अपने पिता (कुमुद मिश्रा) के साथ तापसी का रिश्ता और उनके बीच के पल, फिल्म के सबसे खूबसूरत पलों में से एक हैं. खुद एक शानदार परफॉर्मर, कुमुद मिश्रा, पिता के रोल में जंच रहे हैं.

अमृता के पति के रोल में पावेल गुलाटी ने भी अच्छा काम किया है. उसने गलत किया है, लेकिन वो एकदम ब्लैक कैरेक्टर नहीं है, ऐसे में जो परेशानी उन्होंने दिखाई है, वो कैरेक्टर को रिलेटेबल बनाती है. फिल्म की बाकी स्टारकास्ट- माया सरो, रत्ना पाठक शाह, गीतिका विद्या ओहल्यान, तन्वी आजमी, दिया मिर्जा, मानव कौल और रम कपूर की एक्टिंग भी फिल्म में शानदार है.

‘थप्पड़’ लेक्चर नहीं देती; ये बस रोजमर्रा के सेक्सिज्म की सच्चाई को दिखाती है, जिसे हम में से अधिकतर जाने-अनजाने प्रमोट करते हैं.

'थप्पड़' कुछ और जरूरी मुद्दों को लेकर भी सवाल खड़े करती है: एक परिवार को जोड़कर रखने के लिए क्या चाहिए? क्या सभी गलत बातों को चुपचाप सह लेना चाहिए? और क्या इसकी जिम्मेदारी सिर्फ महिला की है?

'थप्पड़' फिल्म खत्म होने के बाद भी आपके साथ रहती है. ये एक मस्ट-वॉच है.

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