हमारे भारत जैसे देश में लोग किताबें पढ़ने से ज्यादा फिल्में देखना पसंद कर करते हैं. इस बात से ये साफ समझा जा सकता है कि 2014 में लिखी गई संजय बारू की किताब ‘'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर'’ को इतनी तवज्जो क्यों नहीं मिली, जितना फिल्म के रिलीज होने से हंगामा मचा है.
संजय बारू की किताब ने राजनीतिक गलियारे में हलचल मचा दी थी. इस किताब में मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुई घटनाओं के जिक्र ने एक बड़े विवाद को जन्म दे दिया था. इसके बाद राजनीतिक गलियारों में उठ रही अफवाहों को काबू करने में मनमोहन नाकाम दिखे. उस दौर में यूपीए सरकार जिस तरह के भष्टाचार के आरोप झेल रही थी, उस माहौल में भी लोगों को लगता था कि डॉ. सिंह ‘वो एक गलत पार्टी में फंसे हुए एक सही इंसान है’.
हालांकि फिल्म का बनना और ट्रेलर के रिलीज होने के बाद ये साफतौर पर समझा जा सकता है कि ठीक इलेक्शन से पहले गांधी फेमिली को ये करारा झटका है. लेकिन एक सवाल जो पूछने लायक है कि ये फिल्म कितनी प्रोपेगैंडा के तहत बनी हुई है.
फिल्म की शुरुआत में ही फिल्म मेकर्स ने अपनी तरफ से सारे जवाब रखने की कोशिश की है. किताब में दिए गए सभी किरदार, घटना और कार्यक्रम को पर्दे पर हू-बू-हू उतारने की कोशिश की गई है. लेकिन फिल्म बनाते समय इस बात की पूरी सावधानी बरती गई है कि किताब में दिए गए तथ्यों से कोई छेड़खानी न की जाए. इसलिए हम सेफ साइट ये कह सकते हैं कि फिल्म में जो भी दिखाया गया है वो मिस्टर बारू की लिखी गई किताब के डायरेक्शन में बनाया गया है.
अब बात फिल्म की जाए तो फिल्म में दिखाए गए पॉलिटिकल पार्ट को किरदारों ने बखूबी निभाया है. ये कहना भी गलत नहीं होगा कि हर शख्स ने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है. असली नाम और घटनाओं के साथ न्यूक्लियर जैसे मुद्दे दर्शकों के जहन में एक दम ताजा हो जाएंगे.
बात अगर अनुपम खेर के किरदार की करें तो मनमोहन की चाल ढाल, तौर तरीके अनुपम ने पर्दे पर इतनी खूबसूरती से उतारे कि उन्हें पहचाना मुश्किल हो गया.
मिस्टर सिंह की पत्नी का किरदार निभाने वाली दिव्या सेठ शाह मिसेज सिंह के किरदार में एक दम फिट बैठ रहीं हैं. सोनिया का किरदार निभा रहीं टी सुजैन बर्नर्ट ने सोनिया गांधी के लहजे और एक्सप्रेशन को पर्दे बखूबी उतारा है. छोटे बालों के साथ प्रियंका गांधी का किरदार निभा रहीं अहाना कुमरा का लुक तो प्रियंका जैसा लगा, लेकिन स्क्रिन पर ज्यादा देर दिखाई नहीं दीं.
राहुल गांधी का रोल प्ले कर रहे अर्जुन माथुर, मीठी मुस्कान के साथ ठीक तो लगे. लेकिन अपने किरदार के साथ दर्शकों को स्क्रीन पर बांध नहीं पाए. लेकिन स्क्रीन पर अटल बिहारी वाजपेयी, एल के आडवाणी और नवीन पटनायक दर्शकों ने काफी पसंद किया.
सिर्फ एक ही शख्स उस किरदार में फिट नहीं बैठ रहा था जो कि स्क्रीन पर संजय बारू की तरह दिख भी नहीं रहा था. वो थे अक्षय खन्ना. सीधे तौर पर कहा जाए तो, मनमोहन की फिल्म में अक्षय कहीं से भी फिट नहीं बैठ रहे थे.
'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' को एक खास पार्टी और लोगों के द्वारा ज्यादा पसंद किया जा सकता है. लेकिन इसे देखने में भी कोई हर्ज नहीं है. अगर किसी ने किताब पढ़ी हैं तो वो इससे ज्यादा जुड़ा हुआ महसूस कर सकता है. इसी के साथ मैं इसे दे रही हूं 3 क्विंट. और उम्मीद करती हूं की आगे ऐसे बोल्ड पॉलिटिकल सब्जेक्ट पर और फिल्में बनाई जाएंगी जहां उन्हें बिना किसी विवाद के रिलीज किया जा सकेगा.
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