ADVERTISEMENT

Mrs Chatterjee Vs Norway Film Review: रानी मुखर्जी, जिम सरभ की गजब एक्टिंग

Mrs Chatterjee Vs Norway किसी डायरेक्टर की रचना नहीं है बल्कि सागरिका चक्रवर्ती की सच्ची कहानी पर आधारित है.

रोज का डोज

निडर, सच्ची, और असरदार खबरों के लिए

By subscribing you agree to our Privacy Policy

ADVERTISEMENT

फिल्म "मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे" (Mrs Chatterjee Vs Norway) की कहानी ऐसी है कि एक भारतीय फैमली बेहतर लाइफ स्टाइल के लिए नॉर्वे जाती है, लेकिन हालात कुछ ऐसे बदलते हैं कि उनका हंसता-खेलता परिवार बिखर जाता है. उनके बच्चों को नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज (बार्नवेर्नेट) द्वारा ले जाया जाता है. यही इस फिल्म का आधार बना.

इस फिल्म की कहानी किसी डायरेक्टर की रचना नहीं है बल्कि मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे, सागरिका चक्रवर्ती की सच्ची कहानी पर आधारित है. (उनकी पुस्तक "द जर्नी ऑफ अ मदर" पर आधारित है)

ADVERTISEMENT

फिल्म में एक सीन के दौरान रानी मुखर्जी खुश नजर आ रही.

(फोटो:यूट्यूब)

ADVERTISEMENT

रानी मुखर्जी फिल्म में एक मां (देबिका) की भूमिका निभा रही हैं, जो अपने बच्चों को फिर से हासिल करने के लिए विदेशी चाइल्ड फोस्टर सिस्टम से लड़ जाती है. फिल्म में रानी अपने रोल को इतनी खूबसूरती से निभा रही हैं कि ऐसा लगता है की रानी ने सागरिका की कहानी और उनकी भावनाओं को परदे पर सबके सामने रख दिया.

देबिका के रूप में रानी मुखर्जी से कई उम्मीदें की जाती हैं, क्योंकि उन्होनें कई सालों तक कैमरे पर अपना जादू बिखेरा है.
ADVERTISEMENT

फिल्म के इमोशनल हिस्से को संभालने की जिम्मेदारी भी रानी के ही कंधों पर है. रानी फिल्म में इमोशनल तड़का लगा रही हैं. ट्रेलर के फसर्ट हाफ में रानी बच्चों के संग हंसती-खेलती नजर आती हैं. वहीं देबिका एक ऐसी मां की झलक है जो देश से दूर होने के बाद भी अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति सीखाना चाहती है.

ADVERTISEMENT

असल में फिल्म में होता यही है कि जब देबिका बच्चे को अपने हाथ से दूध पिलाने लगती है तो कल्चरल डिफरेंससिंस के कारण नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर वाले बच्चों को लेकर जाते है. इसी को नॉर्वे चाइल्ड ऑफिसर मान लेते हैं कि बच्चे उसके संग सुरक्षित नहीं है.

ADVERTISEMENT

डायरेक्टर आशिमा छिब्बर ने फिल्म को दो हिस्सों में बांटा है. मूवी धीरे-धीरे चलती है, पहले हंसते-खेलते परिवार को दिखाया गया है और देबिका से जब उसके बच्चे छीने जाते है तो एक हाउस वाइफ देबिका अपने बच्चों को हासिल करने के लिए जंग पर निकल पड़ती है. सेकेंड हाफ में फिल्म खुद को समेटती है.

फिल्म में रानी के साथ कॉम्प्लिमेंट्री रोल निभाते हुए जिम सर्भ, जो कि नॉर्वेजियन प्रतिनिधि का रोल निभाते नजर आए. वहीं, दानियाल सिंह सिस्पेक दीपिका के वकील का रोल निभा रहे हैं.

ADVERTISEMENT

फिल्म के पहले हाफ में देबिका का किरदार प्रभावशाली लग सकता है लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है तो देबिका का किरदार निभा रही रानी को अपना इमोशनल एंगल दिखाने की आजादी मिलती है. वैसे ही रानी सब कुछ आउट फोक्स कर दर्शकों का सारा ध्यान अपनी ओर खींच लेती हैं और फिर दिखाई देता है कि प्रभावशाली दिख रही देबिका को कितनी अलग- अलग मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

ADVERTISEMENT

फिल्म की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसमें ज्यादातर मुद्दों को सरसरी तौर से छूआ गया है.

ADVERTISEMENT

मिसेज देबिका चटर्जी सिर्फ नॉर्वे के सिस्टम से फाइट नहीं कर रही बल्कि फिल्म ने घरेलू हिंसा को भी छुआ है. देबिका का पति (जिस किरदार को अनिर्बान भट्टाचार्य ने निभाया) एक ऐसा किरदार दिखाया गया है जो ना सिर्फ देबिका पर घरेलू हिंसा करता है बल्कि मानसिक उत्पीड़न करते हुऐ भी दिखाई देता है. फिल्म में दूसरी दिक्कत देबिका की भाषा की दिखाई गई है. उसको नॉर्वे अधिकारियों से बात करने में दिक्कत होती है और कोई भी उसकी मदद के लिए तैयार नहीं होता है.

मिसेज चटर्जी फिल्म की तस्वीर

(फोटो:यूट्यूब)

ADVERTISEMENT

मिस्टर चटर्जी के परिवार और उनकी पत्नी के प्रति उनके व्यवहार ने देबिका को कैसे प्रभावित किया है? क्यों हर कोई फिल्म में इतनी आसानी से देबिका को अपने बच्चों की परवरिश के लिए मानसिक रूप से अस्थिर या अनफिट करार देता है? वो आर्थिक रूप से स्थिर क्यों नहीं है?उसके पास कोई अपनी फाइनेंशियल एजेंसी क्यों नहीं है? वो अपने पति पर क्यों निर्भर है? इन सवालों के जवाब फिल्म के ताने बाने में है मगर इनरे जवाब जनता तक नहीं पहुंचते हैं.

मिसेज चटर्जी फिल्म का एक सीन.

(फोटो:यूट्यूब)

ADVERTISEMENT

फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, दर्शकों की देबिका के लिए संवेदना बढ़ती जाती है. वो विदेश में जंग लड़ती मां से जुड़ने लगते हैं, और देबिका की लड़ाई बढ़ती जाती है. फिल्म में ट्विस्ट की कमी है. नॉर्वे अधिकारियों से लेकर देबिका के ससुराल वालों तक का रिएक्शन इतना प्रेडिक्टेबल बन गया कि दर्शकों के लिए उसमें कुछ नया देखने को नहीं बचा. देबिका के पति का किरदार निभा रहे अनिर्बान,एक बेहतरीन कलाकार है लेकिन स्क्रिप्ट में उनको अपनी कला दिखाने की छूट नहीं मिलती.

ADVERTISEMENT

सिस्पेक को बैकस्टोरी का एक टुकड़ा दिया जाता है लेकिन वो भी फिल्म के चुने हुए संदेश में खो जाता है. सिस्पेक का किरदार भी एक संदेश देता है जो शायद फिल्म में कहीं खो गया मगर उस संदेश को जानना आपके लिए जरूरी है. फिल्म का सारा ध्यान और केंद्र सिर्फ देबिका को रखा गया.

जिम सरभा की तस्वीर 

(फोटो:यूट्यूब)

ADVERTISEMENT

समीर सतीजा, छिब्बर और राहुल हांडा द्वारा लिखी गई फिल्म आधी अधूरी पटकथा सी लगती है, जो एक ही टॉपिक के इर्द-गिर्द घूमती रहती है. फिल्म में बहुत सारे मुद्दों को उठाया है लेकिन उनके साथ न्याय नहीं कर पाई है.

स्टोरी ट्रांसलेशन - शाइना परवीन अंसारी

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

ADVERTISEMENT
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
0
3 माह
12 माह
12 माह
मेंबर बनने के फायदे
अधिक पढ़ें
ADVERTISEMENT
क्विंट हिंदी के साथ रहें अपडेट

सब्स्क्राइब कीजिए हमारा डेली न्यूजलेटर और पाइए खबरें आपके इनबॉक्स में

120,000 से अधिक ग्राहक जुड़ें!
ADVERTISEMENT
और खबरें
×
×