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फिल्म रिव्यू: 'रश्मि रॉकेट' हमें फिनिश लाइन तक बांधे रखती है

Rashmi Rocket| रश्मि रॉकेट' को आप जी5 पर 15 अक्टूबर से देख सकते हैं

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'रश्मि रॉकेट' हमें फिनिश लाइन तक बांधे रखता है

नन्ही रश्मि इतनी तेज दौड़ती है कि लोग उसे 'रॉकेट' कहकर बुलाते हैं. 'रश्मि रॉकेट' भी ऐसी ही ऊंची उड़ान भरती है. ट्रेलर की एक झलक से हम जान जाते हैं कि वह असाधारण रूप से प्रतिभाशाली है. वह नए रिकॉर्ड बनाती है, नेशनल टीम का हिस्सा बनती है, और देश के लिए मेडल जीतती है.

हालांकि, जब वह लिंग परीक्षण (Gender Test) में फेल हो जाती है तो सब कुछ एक डरावने पड़ाव पर आ जाता है.
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लिंग परीक्षण की इस पुरानी और विवादास्पद प्रथा के कारण दुनिया भर में महिला एथलीटों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है. इसने सामाजिक कलंक, डिप्रेशन को जन्म दिया है और लोगों के करियर को बर्बाद किया है.

हाल ही में भारतीय धावक और एथलीट दुती चंद को हाइपरएंड्रोजेनिज्म (Hyperandrogenism) के लिए प्रतिबंधित होने के बाद प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए संघर्ष करना पड़ा था. जबकि 'रश्मि रॉकेट किसी' विशेष एथलीट पर आधारित नहीं है, ये लिंग परीक्षण के मुद्दे को गंभीरता से लेती है.

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तापसी पन्नू (Taapsee Pannu) रश्मि का किरदार निभा रही हैं. शुरुआत के लिए वो अभिमान के साथ फिनिश लाइन तक दौड़ती दिखती है. कठोरता और शारीरिक मेहनत का असर दिखता है.

रश्मि (Rashmi) कभी बेचारी या कमजोर नहीं होती, वह हर फ्रेम को कमांड करती है. इसका श्रेय अभिनेता को जाता है कि हमें उससे नजरें हटाना मुश्किल लगता है. क्योंकि इसकी पूरी प्रक्रिया उन्हें बेहोश कर देती है. यह फिल्म उन अंधेरे कोनों में नहीं जाती है लेकिन फिर भी इसे प्रभावी ढंग से संभालती है.

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ऐसा लगता है कि निर्देशक आकर्ष खुराना (Akarsh Khurana) और पटकथा लेखक अनिरुद्ध गुहा (Anirudh Guha) ने फिल्म को उत्साहित रखने के लिए एक सचेत विकल्प चुना है और यह फिल्म के पक्ष में काम करता है.

जब रश्मि ट्रैक जीतने वाली दौड़ में होती है तब वह अधिकतर घर पर होती है . लेकिन फिल्म का एक बड़ा हिस्सा कोर्ट रूम ड्रामा के रूप में भी चलता है. सुप्रिया पिलगांवकर और अभिषेक बनर्जी की उपस्तिथि फिल्म में संतुलन बनाए रखते हैं और हास्य को पर्याप्त रखते हैं ताकि मुद्दे की गंभीरता के साथ समझौता न किया जा सके.

एक्टर्स का अच्छा पहनावा भी फिल्म के दृश्यों को उत्साहित रखता है. टीम के कोच के रूप में मंत्र और रश्मि की मां के रूप में सुप्रिया पाठक का अभिनय तारीफ के काबिल है.

रश्मि रॉकेट के बारे में एक सराहनीय बात यह है कि यह कभी भी रश्मि को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में नहीं रखती है जिसे "बचाया" जाना चाहिए. उसे एक मामूली धक्का और समर्थन की आवश्यकता हो सकती है लेकिन रश्मि आखिर में अपनी जीत की योजना खुद बनाती है.

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शायद यही कारण है कि मेजर ठाकुर (प्रियांशु पेन्युली द्वारा अभिनीत) और रश्मि के बीच का रिश्ता इतना प्यारा और सच्चा लगता है. प्रियांशु पेन्युली ने शानदार अभिनय का प्रदर्शन किया.

कुल मिलाकर दो घंटे के अपने रनटाइम के साथ रश्मि रॉकेट हमें फिनिश लाइन तक बांधे रखने का अच्छा काम करती है. इसे देखें और आपको इसे देखने का पछतावा नहीं होगा.

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