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‘आग’ से ‘बरसात’ तक, राज कपूर की जिंदगी की अनसुनी कहानियां

जयप्रकाश चौकसे ने राज कपूर की जिंदगी से जुड़े अनूठे किस्से बताए 

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हिंदी सिनेमा के 'शोमैन' राज कपूर ने बॉलीवुड को पर्दे पर जीने का सलीका सिखाया, कैमरे की आंख से जिंदगी को देखना सिखाया. उनकी फिल्में आजाद भारत के समाजवादी सपनों के दस्तावेज के रूप में दर्ज हैं. व्यवस्था के भीतर गरीबों की जिंदगी, उनकी संवेदनाओं को राज कपूर ने अपनी तरह से जिया है.

राज कपूर पर्दे के पीछे भी एक जिंदादिल इंसान थे. उनकी जिंदगी के कई ऐसे राज हैं, जो उनके करीबी दोस्त और मशहूर पत्रकार जयप्रकाश चौकसे ने क्विंट हिंदी से साझा की. 2 जून को राज कपूर की पुण्यतिथि है. इस खास मौके पर आपको बताते हैं उनकी जिंदगी की कुछ अनसुनी कहानियां.

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फिल्म पत्रकार जयप्रकाश चौकसे ने राज कपूर की जिंदगी से जुड़े कुछ ऐसे किस्से बताए, जो बहुत कम लोग जानते हैं.

राज कपूर ने अपनी जिंदगी की आखिरी कहानी ‘रिश्वत’ जयप्रकाश चौकसे को सुबह 5 बजे सुनाई थी. राज कपूर इस कहानी पर एक फिल्म बनाना चाहते थे और इस फिल्म में एक्टिंग करना चाहते थे, लेकिन अचानक उनकी मौत के बाद उनका सपना अधूरा रह गया. जयप्रकाश चाहते हैं कि इस कहानी पर ऋषि कपूर फिल्म बनाएं और खुद एक्टिंग करें.

सबसे बड़े स्टार थे राज कपूर

पुराने दिनों को याद करते हुए जयप्रकाश बताते हैं कि राज कपूर के समकालीन गुरुदत्त, वी शांताराम, विमल रॉय, महमूद सब एक से बढ़कर एक बड़े फिल्ममेकर थे. लेकिन राज कपूर और उन लोगों में एक बड़ा फर्क था, कपूर साहब एक बड़े स्टार थे, उनके जैसा कोई नहीं था. उनकी खासियत थी कि जिस काम को करते थे, उसमें वो अपनी जान डाल देते थे.

1948 में जब उन्होंने फिल्म आग बनाई तो वो कोई बड़े स्टार नहीं थे, लेकिन वो एक अदभुत फिल्म थी. उस जमाने में ये फिल्म 2 लाख में बनी थी और सवा 2 लाख रुपए में बिकी थी, इस फिल्म से 25 हजार रुपए का मुनाफा हुआ था. राज कपूर ने उस पैसे से एक कार खरीदी थी.

फिल्म 'बरसात' हुई सुपरहिट

फिल्म आग से मुनाफा तो हुआ, लेकिन ये फिल्म कोई बहुत बड़ी हिट नहीं थी. राज कपूर ने कड़ी मेहनत की और 9 महीने में ही फिल्म बरसात बनाकर रिलीज भी कर दी. ये फिल्म उनकी जिंदगी की हिट फिल्मों में से एक थी. खास बात ये थी कि इस फिल्म में नरगिस को छोड़कर ज्यादातर लोग नए ही थे.

शंकर जयकिशन, शैलेंद्र और निम्मी की भी ये पहली फिल्म थी. यहां तक कि फिल्म के कैमरामैन की भी ये पहली फिल्म थी. राज कपूर का ही कमाल था कि इतने सारे नए लोगों को लेकर उन्होंने इतनी बड़ी हिट फिल्म बनी दी.

फिल्म फ्लॉप होने पर डबल जोश से करते थे काम

राज कपूर ऐसे इंसान थे, जो फिल्मों के फ्लॉप होने से कभी हतोत्साहित नहीं होते थे, बल्कि दोगुनी जोश के साथ दूसरी फिल्म में काम करने लगते थे. 1953 में राज कपूर ने फिल्म आह बनाई, जो फ्लॉप हो गई तो राजकपूर ने छोटे बच्चों को लेकर एक फिल्म बनाई बूट पॉलिश जो सुपरहिट हुई. ऐसा कमाल तो सिर्फ राज कपूर ही कर सकते थे.

फिल्म मेरा नाम जोकर राज कपूर को बेहद पसंद थी. वो अक्सर कहा करते थे कि मां-बाप को उनका वो बच्चा ही सबसे ज्यादा प्यारा होता है, जो कमजोर होता है. वो कहते थे कि मेरी ये फिल्म फेल हो गई, इसलिए मेरे लिए ये सबसे प्यारी है.

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धर्मेंद्र, मनोज कुमार फ्री में काम करने को थे तैयार

राज कपूर की ड़्रीम प्रोजेक्ट 'मेरा नाम जोकर' के फ्लॉप होने के बाद मनोज कुमार, राजेंद्र कुमार, धर्मेंद्र और दारा सिंह उनके पास गए थे. इन सभी सितारों ने राज कपूर से कहा कि आप हम सब के साथ एक मल्टीस्टारर फिल्म बनाइए और हम लोग कोई फीस नहीं लेंगे. राज कपूर ने ये कहकर इनकार कर दिया कि मैं एक फ्लॉप डायरेक्टर हूं और आप सब कामयाब स्टार, मैं आपके साथ नहीं नए लोगों को साथ फिल्म बनाऊंगा. उन्होंने कहा था कि अगर मेरी फिल्म हिट हुई तो आप लोगों के लेवल में आ जाऊंगा, फिर हम साथ में फिल्म बनाएंगे.

फिर राज कपूर ने फिल्म बॉबी बनाई, जिसमें ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया जैसे बिल्कुल नए और युवा चेहरे को लिया और ये फिल्म सुपरहिट हुई. आज की तारीख में भी ऐसा कोई डायरेक्टर नहीं है, जो इतना बड़ा रिस्क उठाकर नए कलाकारों पर पैसा लगाए, लेकिन ये काम सिर्फ राज कपूर ही कर सकते थे.

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खाने के शौकीन थे राज कपूर

जयप्रकाश चौकसे ने राज कपूर के साथ बिताए लम्हों का जिक्र करते हुए एक किस्सा बताया कि वो एक बार राज कपूर के साथ शादी में शामिल होने कार से सागर जा रहे थे. रास्ते में कार रोककर राज साहब ने सड़क पर चादर बिछाई और बियर पीने लगे और मुझसे पाया खाने की मांग करने लगे. उनको सड़क किनारे बैठा देखकर कई ट्रक वाले वहां रुक गए और रातभर वहां गाना-बजाना चलता रहा.

मैंने उस दिन राज साहब के लिए पाया मंगाया, लेकिन वो नहीं पहुंचा, तो वो नाराज होकर कहने लगे कि मैं अब कुछ भी नहीं खाऊंगा. उसके बाद जब हम लोग मुंबई पहुंचे तो एक दिन मुझे उन्होंने अपने घर बुलाया और किचन से पाया लेकर आए और मुझे कहा कि आपने तो मुझे खिलाया नहीं देखिए मैं आपको ये खिला रहा हूं. मैंने एक बार राज साहब को पाया नहीं खिलाया, तो वो सालों तक जब भी मुझसे मिलते मुझे पाया जरूर खिलाते थे. एक बार हैदराबाद में मैं जिस होटल में ठहरा था, वहां आधी रात को आए और मुझे पाया खिलाने ले गए. 
जयप्रकाश चौकसे

जयप्रकाश चौकसे ने बताया कि राज कपूर फिल्में बनाने के जितने शौकीन थे, उतने ही खाने के भी शौकीन थे. उनकी टेबल पर कई तरह की डिश हमेशा मौजूद रहती थी.

(ये आर्टिकल पहली बार 2 जून 2017 को राजकपूर के पुण्यतिथि पर पब्लिश हुआ था)

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